अग्निहोत्र : जनक श्वेतकेतु सोमशुष्य तथा याज्ञवल्क्य संवाद |
यज्ञ की दृष्टि से संवत्सर में १० दिन अधिक महत्त्व के थे। प्रायणीय, उदयनीय, चतुर्दिश महाव्रत, षष्ठया अभिप्लव, अभिजित, विश्वजित और स्वरसाय । इनके परस्पर अनुप्रवेश से यह संख्या नौ आठ, सात आदि और अन्त में एक तक पहुंच जाती है। कौशाम्बी निवासी को सुरिविन्दि उद्दालक आरुणि के पास ब्रह्मचारी के रूप मे निवास करता था । आचार्य ने उससे पूँछा, कुमार तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द ने कहा, विराट दस अक्षरों वाला हैं विराट् ही यज्ञ है।
उद्दालक कुमार तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - नव, प्राण नौ हैं। प्राणों से यज्ञ का वितन्वर होता है।
उद्दालक - कुमार! तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - आठ, गायत्री आठ अक्षरों वाली हैं। यज्ञ गायत्री छन्द वाला है।
उद्दालक - कुमार! तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - सात, छन्द सात हैं। छन्दों से यज्ञ का वितन्वर होता है।
उद्दालक - कुमार तुम्हारे पिता वर्ष मे कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - छः वर्ष मे छः ऋतुये होती हैं। संवत्सर ही यज्ञ है। प्रायणीय तथा उदयनीय दोनो समान हैं।
उद्दालक- कुमार तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - पाँच यज्ञ पाँच है। वर्ष मे ऋतुएँ भी पांच ही हैं। सवत्सर ही यज्ञ हैं। चतुर्विंश महाव्रत दोनो दिन समान हैं।
उद्दालक - कुमार! तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - चार, पशु चतुष्पद होते हैं। पशु ही यज्ञ हैं। षष्ठ्या और अभिप्लव समान।
उद्दालक - कुमार तुम्हारे पिता वर्ष मे कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - तीन, छन्द तीन हैं। तीन ही लोक हैं। यज्ञ तीन सवनो वाला है। अभिजित् और विश्वजित् दोनों दिन समान ही है।
उद्दालक - कुमार! तुम्हारे पिता वर्ष मे कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - दो पुरुष द्विपाद होता है। पुरुष ही यज्ञ है। स्वर सामान के दिन समान।
उद्दालक - कुमार तुम्हारे पिता वर्ष में कितने दिन मनाते थे?
कौसुरिविन्द - एक-एक ही दिन होता है। यह एक दिन संवत्सर ही होता है। यही संवत्सर मीमांसा है।
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