सूर्य-रश्मि-चिकित्सा(Sun-ray therapy ,Medical science in the Atharva Veda: A Study (सूरज कृष्ण शास्त्री) Medical science in atharvveda Atharvveda's m
अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन
Atharvveda's medical science |
सूर्य-रश्मि-चिकित्सा(Sun-ray therapy
सूर्य की किरणें शरीर को सुख देने वाली, शरीर को शक्ति प्रदान करके वृद्धि प्रदान करने वाली और रोगों को नष्ट करने वाली हैं। इसलिये अथर्ववेद काण्ड ८ सूक्त १ में कहा गया है- सूर्य के प्रकाश में रहना अमृत के लोक में रहने के समान है। इससे प्राणशक्ति की वृद्धि होती है।"(इहायम् अस्तु पुरुषः सहासुना सूर्यस्य भागे अमृतस्य लोके । अ. ८.१.१) । इसलिये हे मनुष्य तू इस लोक में अग्नि और सूर्य के दर्शन से स्वयं को विच्छिन्न मत कर। (मा च्छित्था अस्मालू लोकाद् अग्नेः सूर्यस्य संदृशः । अ. ८.१.४)। उदित होते हुए सूर्य की रश्मियों का सेवन करने से सिर का रोग और अंगों की टूटन नष्ट हो जाती है(उद्यन्नादित्य रश्मिभिः शीर्ष्णो रोगम् अनीनशोऽङ्गभेदम् अशीशमः - 9.13(8).22) । सूर्य अदृष्ट क्रिमियों और रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। सबको दीखने वाला, न दीखने वाले कृमियों को नष्ट कर डालने वाला, द्युलोक का वासी सूर्य पूर्व में उदयाचल से कृमिरूपी राक्षसों को नष्ट करता हुआ उदित होता है(उत् सूर्यो दिव एति पुरो रक्षांसि निजूर्वन् । आदित्यः पर्वतेभ्यो विश्वदृष्टो अदृष्टहा ।। अ. ६.५२.१) ।अथर्ववेद में एक स्थान पर सूर्यकिरणों से स्नान और लाल गौओं के बीच में रहने से हृदय के ताप और पीलिया रोग के निवारण की बात कही गई है(अनु सूर्यम् उद् अयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते। गो रोहितस्य वर्णेण तेन त्वा परि दध्मसि ।। अ. १.२२.१)। एक मन्त्र में सूर्य से प्रार्थना की गई है कि 'इस मनुष्य को सिरदर्द से, खांसी से, प्रत्येक जोड़ में प्रविष्ट वेदना से और मेघ तथा वायु से उत्पन्न होने वाले रोगों से मुक्त कर दे और शरीर में जो शुष्कता आ गई है वह सूखे पेड़ों और पर्वतों में चली जाए(मुञ्च शीर्षक्त्या उत कास एनं परुष्परुर् आविवेशा यो अस्य । यो अभ्रजा वातजा यश् च शुष्मो वनस्पतीन् त्सचतां पर्वतांश् च ।। अ. १.१२.३)। अथर्ववेद में सूर्यरश्मियों के सेवन से रोगशमन के उदाहरणों की कोई कमी नहीं है।
Sun-ray therapy
The rays of the sun give happiness to the body, provide strength to the body and give growth and destroy diseases. That is why it is said in Atharvaveda Kanda 8 Sukta 1 – Living in sunlight is like living in the world of nectar. This increases the life force." (Ihayam Astu Purushah Sahasuna Suryasya Bhage Amritsya Loke. A. 8.1.1). Therefore, O human being, do not detach yourself from the sight of fire and sun in this world. (Ma Chhittha Asmaalu Lokad Agneh Suryasya Sandrashah. A. 8.1.4. Consuming the rays of the rising Sun cures head diseases and broken limbs (Uddyannaditya Rashmibhih Shirsno Rogam Aneenshoingbhedam Ashishamah - 9.13(8.22) The Sun destroys the invisible worms and germs. The Sun, which is visible to all and destroys the invisible worms, the resident of the celestial world, the Sun, rises from Udayachal in the east, destroying the worms in the form of worms (Ut Suryo Div Ati Puro Rakshansi Nijurvan. Adityah Parvatebhyo Vishwadrishto Adrishtaha. A. 6.52.1). At one place in the Atharvaveda, it has been said that bathing in the sunrays and living among red cows can cure heartburn and jaundice (Anu Suryam Uddha). Aayatam Hriddyoto Harima Cha Te. Go Rohitsya Varnen Ten Twa Pari Dadhmasi II A. 1.22.1). In one mantra, a prayer has been made to Surya that 'This person should be freed from headache, from cough, from pain in every joint. And free one from the diseases caused by clouds and wind and the dryness that has come in the body should go to the dry trees and mountains (muncha tipatya ut kaas enam parushparu aaivesha yo asya). Yo Abhraja Vaatja Yash Cha Shushmo Vanasatan Tschataan Parvatansh Cha. a. 1.12.3). There is no dearth of examples of curing diseases by consuming sunlight in Atharvaveda.
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