अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन
Atharvveda's medical science |
अग्नि-चिकित्सा (fire therapy)
सूर्य, वायु और जल की तरह अग्नि भी जीवों को सुख देने वाला और उनके रोगों को दूर करने वाला है। अथर्ववेद में अनेक सूक्तों और मन्त्रों में कहा गया है कि अग्नि चाहना देने वाले (यातुधानान्), खा जाने वाले रोगों (अत्त्रिणः) को और रक्त पीने वाले क्रिमियों (पिशाचान्) को रुलाता और नष्ट करता है।(विलपन्तु यातुधानाः अत्त्रिणो ये किमीदिनः । अ. १.७.३) इन यातुधान, अत्रि, पिशाच, राक्षस आदि शब्दों का प्रयोग किन्हीं मानुषी जातियों के लिये नहीं अपितु मनुष्यों के शरीरों पर प्रहार करने और उनके अन्दर प्रवेश करके मांस और रक्त को खाने-पीने वाले विषैले और रोग उत्पन्न करने वाले क्रिमियों, जीवाणुओं एवं मच्छर, मक्खी, पिस्सू, जूं आदि कीटाणुओं के लिये हुआ है। अग्नि अपने प्रकाश और ताप से इन क्रिमियों को और इनके द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले रोगों को नष्ट कर देता है।(उप प्रागाद् देवो अग्नी रक्षोहामीवचातनः अ. १.२८.१) । अथर्ववेद में अग्नि में किये जाने वाले यज्ञ को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अथर्ववेद के एक मन्त्र में वेग और बल की प्राप्ति के लिये अग्नि में समिधाओं और घृत के साथ हवि देने की बात कही गई है(इध्मेनाग्न इच्छमानो घृतेन जुहोमि हव्यं तरसे बलाय अ. ३.१५.३) । एक मन्त्र में प्रार्थना की गई है। जिस अग्नि के द्वारा देवों ने अमरत्व को प्राप्त किया, जिसके द्वारा ओषधियों को मिठास से भरपूर किया, जिससे देवों ने सुख का आहरण किया, वह अग्नि देव मुझे कष्ट और रोग से मुक्त कर देवे।(येन देवा अमृतम् अन्वविन्दन् येनौषधीर् मधुमतीर् अकृण्वन् । येन देवा स्वर् आभरन् त्स नो मुञ्चत्वंहसः अ. ४.२३.६) । एक अन्य मन्त्र में कहा गया है - हे स्त्री से उत्पन्न होने वाले राजयक्ष्मा नामक रोग, जहाँ से तू उत्पन्न होता है, हम तेरे उस जन्म को जानते हैं। जिस यजमान के घर में हम अग्नि में हवि देते हैं, वहाँ तू कैसे मारा जाता है, यह भी हम जानते हैं(विद्य वै ते जायान्य जानं यतो जायान्य जायसे)। अथर्ववेद ६.८३ में गण्डमाला रोग के निवारण का विषय है। अन्तिम मन्त्र में कहा गया है (हे अग्ने ) तू प्रसन्न होता हुआ अपनी आहुति का आनन्द ले, जिसे मैं बड़े मनोयोग से तुझे प्रदान कर रहा हूँ (वीहि स्वाम् स्वम् आहुतिं जुषाये मनसा यद् इदं जुहोमि । अ. ६.८३.४) । एक मन्त्र में कहा गया है कि ओषधियों का राजा सोम भी यह घोषणा करता है कि जिस प्रकार जलों में सब रोगनिवारक शक्तियाँ हैं उसी प्रकार अग्नि सब सुखों को उत्पन्न करने वाला है(अप्सु मे सोमो अब्रवीद् अन्तर् विश्वानि भेषजा अग्निं च विश्वशंभुवम् अ. १.६.२) । अग्नि लम्बी आयु प्रदान करने वाला और वार्द्धक्य तक के जीवन का वरण कराने वाला है।(आयुर्दा अग्ने ... जरसं वृणानः । अ. २.१३.१ ) । हे अग्ने, तू रक्त को चूसने वाले जीवाणुओं और गूंजने वाले कीट-पतंगों को दूर भगाने वाला है, तू हमें इन्हें दूर भगाने का सामर्थ्य प्रदान कर (पिशाचक्षयणम् असि पिशाचचातनं मे दाः स्वाहा।। सदान्वाक्षयणम् असि सदान्वाचातनं मे दाः स्वाहा ।। अ. २.१८.४-५) । अग्नि के द्वारा दी हुई यह दीप्ति मुझे प्राप्त होवे भून डालने वाला भर्ग, यश, पराभिभावुक तेज, ओज, नित्य यौवन, बल, और ३३ प्रकार के वीर्य, इन सबको अग्नि मुझे प्रदान करे(इदं वर्चो अग्निना दत्तम् आगन् भर्गो यशः सह ओजो वयो बलम् । त्रयस्त्रिंशद् यानि च वीर्याणि तान्यग्निः प्र ददातु मे ॥ अ. १९.३७.१ ) । अग्नि के बिना हमारा जीवन असम्भव है। वस्तुतः अग्नि हमारे प्राणों का आधार है(अग्निः प्राणान् सं दधाति । अ. ३.३१.६) ।
thanks for a lovly feedback