अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन Medical science in the Atharva Veda: A Study (सूरज कृष्ण शास्त्री) Medical science in atharvveda Atharvveda'
अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन
Atharvveda's medical science |
पृथिवी चिकित्सा(Earth Medicine)
मनुष्य को सुखी, स्वस्थ और दीर्घ जीवन प्रदान कराने में पृथिवी का भी महान् योगदान है। वेदों में जहाँ वर्षा रूपी वीर्य को सींचने वाले द्यौ को पिता कहा गया है, वहीं वर्षा के जल को अपने अन्दर ग्रहण करके असंख्य ओषधियों, वनस्पतियों को जन्म देने वाली और अपने वक्षस्थल में स्थित खनिज पदार्थों से हमारा पालन-पोषण करने वाली पृथिवी को माता कहकर पुकारा गया है। अथर्ववेद में एक स्थान पर कहा गया है: पृथिवी दुधारू गौ है। अग्नि उसका बछड़ा है। जिस प्रकार बछड़े की सहायता से गऊ को पौसाकर उससे दूध और दूध से अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं, उसी प्रकार यज्ञाग्नि से हम पृथिवी को प्रसन्न करके अन्न, ऊर्जा, दीर्घ आयु, सन्तान, पुष्टि और धन आदि कामनाओं की पूर्ति करते हैं(पृथिवी धेनुम् तस्या अग्निर् वत्सः स मे अग्निना वत्सेनेषम् ऊर्ज करणं दुहाम्। आयुः प्रथमं प्रजां पोषं रयिं स्वाहा ।। अ. ४.३९.२) । पृथिवी को जीवन प्रदान करने वाली कहा गया है( पृथिवी जीरदानुः अ. ७.१९.२) । इसी लिये भूमि सूक्त में आया है 'भूमि माता है। मैं उसका पुत्र हूँ।"(माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः । अ. १२.१.१२) । जिसमें अन्न और खेतियाँ उत्पन्न होती है, जिसमें प्राणवान् और गतिमान् जीव चलते-फिरते हैं वह भूमि हमें गौओं में और अन्न में स्थापित करे(यस्याम् अन्नं कृष्टयः संबभूवुः या विभर्ति बहुधा प्राणद् एजत्। सा नो भूमिर् गोष्वप्यन्ने दधातु ।। अ. १२.१.४) । उसे सबका भरण-पोषण करने वाली धनों को धारण करने वाली छाती में सुवर्ण आदि खनिजों को धारण करने वाली और जगत् को विश्राम देने वाली कहा है। मनुष्य भूमि में उत्पन्न अन्न- भोजन आदि से जीवित रहते हैं। भूमि ही हमें प्राण और वार्धक्य वाली दीर्घ आयु प्रदान करती है(भूम्यां मनुष्या जीवन्ति स्वधयान्नेन मर्त्याः । सा नो भूमिः प्राणम् आयुर्दधातु जरदष्टिं मा पृथिवी वृणोतु। अ. १२.१.२२) । अन्त में पृथिवी से प्रार्थना की गई है - हे पृथिवी! हम तेरी गोद में नीरोग और व्याधिरहित होकर रहें। तेरे ऊपर उत्पन्न सब पदार्थ हमारे लिये होवें। हमारी आयु लम्बी हो। हम सदा जागरूक और सावधान रहते हुए तुझे अपने उपहार श्रद्धापूर्वक समर्पित करते रहें(उपस्थास् ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूताः । दीर्घ न आयुः प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहतः स्याम । अ. १२.१.६२) ।
Earth Medicine
Earth also has a great contribution in providing happy, healthy and long life to humans. In the Vedas, where Dayu, who irrigates the semen in the form of rain, is called the father, the earth, which absorbs the rain water and gives birth to innumerable medicinal plants and plants and nurtures us with the minerals present in its breast, is called the mother. It has been called. At one place in Atharvaveda it is said: Earth is a milch cow. Agni is his calf. Just as we milk a cow with the help of a calf and get milk from it and many types of food items are obtained from it, in the same way, by pleasing the earth with the fire of Yagya, we fulfill our wishes of food, energy, long life, children, prosperity and wealth etc. (Prithivi dhenum tasya agnir vatsah sa me agnina vatsenesham urja karana duham. Ayuha pratham prajaam poshan rayim svaha. A. 4.39.2). The earth is said to provide life (Prithivi Jiradanu: A. 7.19.2). That is why it is mentioned in Bhoomi Sukta that 'Bhoomi is mother'. I am her son.” (Mata Bhoomi: Putro Aham Prithivya: A. 12.1.12). In which food and fields grow, in which living and moving creatures move, may that land establish us in cows and food ( Yesyam Annam Krishtayah Sambbhuvuh Ya Vibharti Bahadhu Pranad Ejat. Sa No Bhoomir Goshvapyanne Dadhatu II A. 12.1.4) The one who nourishes everyone, the one who holds the wealth, the one who holds gold etc. minerals in her chest and the one who protects the world. It is said to give rest. Humans survive on the food produced in the land. It is the land that provides us life and long life with old age (bhumya manusha jeevanti swadhyaannen martyaah. Sa no bhumiah pranam ayurdhadhatu jardashtim ma prithivi vrinotu. A. 12.1.22). In the end, a prayer has been made to the Earth - O Earth! May we remain healthy and disease free in your lap. May all the things produced on you be for us. May our life be long. May we always remain alert and alert. Keep offering my gifts to you with devotion (upasthaaste anamiva ayakshma asmabhyama santu prithivi prasutah. long life: pratibudhyamana vayam tubhyam balihatah syam. a. 12.1.62).
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