नारायण नागबलि पूजा प्रयोग विधि

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Narayan Naagbali Pooja
Narayan Naagbali Pooja

  कुण्डली में नागहत्या-दोष दिखाई देने पर अथवा किसी स्वकुल के ही व्यक्ति का, जिसका प्रेतकर्म नहीं हुआ हो, उन सबके लिए पुत्तलदाह या नागबलि कर्म करे । नागबलि कर्म के बाद ही कालसर्प योग की शान्ति करनी चाहिए। सर्वप्रथम पूजन का सामान लेकर श्मशान या नदी-तट अथवा किसी शिवालय पर जाकर पत्तल पर खोवा या जौ अथवा तिल के आटे से साढे तीन वलय वाला नाग निर्मित करे । तदनन्तर आचमन प्राणायामादि करके पवित्री - धारणपूर्वक मंगल श्लोक आनोभद्रादि....पढ़ कर निम्नलिखित संकल्प करे ।

सङ्कल्पः 

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्द्धे विष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे ( अविमुक्तवाराणसी क्षेत्रे महाश्मशाने गौरीमुखे त्रिकंटकविराजिते भागीरथ्याः पश्चिमे तीरे ) विक्रमशके बौद्धावतारे अमुक- नामसंवत्सरे अमुकायने अमुकऋतौ महामाङ्गल्यप्रदे मासोत्तमे मासे पुण्य- पवित्रमासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुक- योगे अमुककरणे अमुकराशिस्थिते श्रीचन्द्रे अमुकराशिस्थिते श्रीसूर्ये अमुक- राशिस्थिते श्रीदेवराजगुरौ शेषेषु सर्वेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुकगोत्रः अमुकप्रवरः अमुकशर्मा नामाऽहं मम पूर्वजन्मनि कृतेन सर्पवधदोषेण इह जन्मनि अनपत्यादिदोषनिवृत्तिपूर्वकदुःखदारिद्र्यदौर्भाग्यादिसकलदोषपरिहारा-र्थं मम जन्म- कुण्डल्यां राहुकेत्वन्तर्गतस्थितसमस्तग्रहजन्यस्थानबलित्वादि सकल अशुभ- दृष्ट्यादि समस्तसुखाऽभावनिवृत्तिपूर्वकसकल अनिष्टयोगेन शरीरे व्यवहारे च उत्पन्नानां उत्पद्यमानानां च समस्तविघ्नानां दुःखानां शरीरस्थितकष्टानां ज्वरादि-पीड़ानिवृत्त्यर्थं त्रिविधतापोपशमनपूर्वक-दुःखदारिद्र्यदौर्भाग्यादिसकलदोषाणां सर्वेषां कृतं समस्त अभिचारादिनाञ्च सद्यः समाप्तिपूर्वकं दीर्घायुरारोग्यैश्वर्य- वंशाभिवृद्धि समस्तसुखसौभाग्यादिप्राप्त्यर्थं सकलकामनापरिपूर्तिपूर्वक सकलाभीष्टसिद्ध्यर्थं श्रीशेषनागराजप्रीत्यर्थं सग्रहमखां कालसर्पयोगजननशान्ति- कर्माऽहं करिष्ये ।

पिष्ट पर नाग का आवाहन करे तथा षोडशोपचार पूजन करे ।

आवाहन-

एहि पूर्वमृतः सर्प ! अस्मिन्पिष्टे समाविश ।

संस्कारार्थमहं भक्त्या प्रार्थयामि समाहितः ।।

नागगायत्री मन्त्र का पाठ कर स्थापित करें — 

ॐ भुजङ्गे सर्पविद्महे नागराजाय धीमहि तन्नो नागः प्रचोदयात्। नागराजाय नमः आवाहनार्थे स्थापनार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। 

तदुपरान्त पूजन करें —

इदमासनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।

एष धूपः सुधूपः ।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् । इदं स्नानीयं सुस्नानीयम् ।

एष दीपः सुदीपः ।

हस्तप्रक्षालनम्।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम्।

इदं नैवेद्यं सुनैवेद्यम् । इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् । इमे तिलाक्षता: सुतिलाक्षताः । इदं पुष्पाञ्जली सुपुष्पाञ्जली।

इदं वस्त्रं सुवस्त्रम्।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् ।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् । इमे यज्ञोपवीते सुयज्ञोपवीते।

इदं फलं सुफलम्।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् ।

इदं ताम्बूलं सुताम्बूलम्। एषा दक्षिणा सुदक्षिणा ।

एष गन्धः सुगन्धः ।

इदं माल्यं सुमाल्यम्।

  पूजन करने के बाद बलि प्रदान करे। एक पत्तल पर सवा सेर चावल के भात को इस प्रकार रखे कि ऊपर की ओर शंकु की आकृति बन जाय । उस पर दीपक जला कर रख कर बलि का पूजन कर प्रार्थना करे। हमारे कुल में किसी ने सर्पवध किया हो तो उसके फलस्वरूप उत्पन्न हुए सर्व दोषों के परिहार के लिए हम आपसे प्रार्थना करते हैं। आप इस बलि को स्वीकार कर सन्तुष्ट होकर हमारी सम्पत्ति तथा सन्तान की वृद्धि करें और हमें आरोग्यता प्रदान करें ।

बलि प्रार्थना- 

 भो सर्प इमं बलिं गृहाण ममाभ्युदयं कुरु ।

   बलि को ले जाकर किसी खुले स्थान पर रखे, बलि को कौवे के स्पर्श होने पर हाथ-पैर धोकर वापस आये। कौवे के स्पर्श न होने पर प्रार्थना करे कि हे नाग! आप ब्रह्मगिरि की परिक्रमा का पुण्य लेकर मोक्ष को प्राप्त करें, वापस आकर नाग पर गन्धाक्षत समर्पित कर उस नाग को मृत मान कर नाग एवं घी लेकर बाहर जाकर नाग को मन्त्रोच्चारपूर्वक अग्नि प्रदान करे।

पुनः संकल्प : - 

  देशकालौ संकीर्त्य गोत्रः प्रवरः अमुकनामाऽहं मम सभार्यस्य मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा ज्ञानादज्ञानाद्वा जातसर्पवधोत्थदोषपरिहारार्थं सर्प- संस्कारकर्माऽहं करिष्ये । तथा च अस्मिन्सर्पसंस्कारहोमकर्मणि देवतापरिग्रहार्थं अन्वाधानं करिष्ये ।

अग्नि स्थापना करे।

ॐ अग्ग्ने॒नय॒सु॒पथा॑रा॒येऽअस्म्मान्विश्वा॑निदेवव॒युना॑निवि॒द्वान् ।। यु॒यो॒द्ध्य॒स्म्मज्जु॑हु॒रा॒णमेनो॒ भूमि॑ष्ठान्ते॒नम॑ऽउक्तिं विधेम।।

  संकल्प के बाद दो समिधायें अग्नि में हवन करके अग्नि की आग्नेय दिशा में जल छिड़क कर वहाँ चिता रचे । अग्नि का कुशाओं से परिस्तरण करे । व्याहृतित्रय से हवन करे, बाद में एक आहुति सर्पमुख में दे, बचे हुए घी को सर्प के ऊपर डाल दे और सर्प को चिता पर रख कर अग्नि प्रज्वलित करके सर्प का दहन करे ।

ॐ अग्ग्रैसहस्राक्क्षशतमूर्द्धञ्छुतन्ते॑प्प्र॒णाः सहस्र॑ध्या॒नाः ।। त्वसा॑ह॒स्रस्य॑रा॒यऽईशिषे॒तस्मै॑तेविधेम॒व्वाजा॑य॒ स्वाहा॑ ।।

चिता में अग्नि संस्कार करे । तदुपरान्त अग्नि में आहुतियां प्रदान करें —

  1. ॐ नमोस्तुसर्पेभ्यो ये के च॑ पृथि॒वि मनु॑ ।। येऽअ॒न्तरि॑क्षे ये दि॒वि तेभ्यः स॒प्पे॑भ्यो॒ नम॑स्वाहा ।। सर्पमुख में आहुति दे ।
  2. ॐ भूः स्वाहा इदमग्नये न मम । 
  3. ॐ भुवः स्वाहा इदं सूर्याय न मम ।
  4. ॐ स्वः स्वाहा इदं चन्द्रमसे न मम ।
  5. ॐ या इ॒ष॑वो यातु॒धाना॑ना॒य्येव॒व्वन॒स्पती॑१।।रनु॑ ।। ये व॑व॒टेषु॒ शेर॑ते॒ तेब्भ्य॑’ स॒प्पे॑ब्भ्यो॒नमः’।। सर्पमुख में आहुति दे।
  6. ॐ येव॒मीरो॑च॒नेदि॒वो वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्म्मिधु॑ ।। येषा॑म॒प्प्सु॒ सद॑स्कृ॒तन्तेभ्य॑ स॒प्पे॑ब्भ्यो॒नमः ।। सर्पमुख में आहुति दे ।

प्रार्थना

त्राहि त्राहि महाभोगिन्सर्पोपद्रवदुःखतः ।

सन्तानं देहि मे पुण्यां निर्दुष्टां दीर्घजीविताम् ।।

प्रपन्नं पाहि मां भक्त्या कृपालो दीनवत्सलः ।

ज्ञानतोऽज्ञानतो वाऽपि कृतः सर्पवधो मया।। 

जन्मान्तरेत्वर्थस्तस्मिन्नेव पूर्वेस्थ वा विभो। 

तत्पापं नाशय क्षिप्रं अपराधं क्षमस्व मे।।

  सर्प दग्ध करके नव नागों को पिण्डदान करे। पिण्डों का पूजन सीधे हाथ से ही करे, पत्तल पर नव कुशा बिछा कर पिण्ड प्रदान करे ।

  1. अनन्ताय नमः एष पिण्डं नमः । 
  2. तक्षकाय नमः एष पिण्डं नमः । 
  3. कर्कोटकाय नमः एष पिण्डं नमः । 
  4. शेषाय नमः एष पिण्डं नमः । 
  5. कम्बलाय नमः एष पिण्डं नमः ।
  6. वासुकये नमः एष पिण्डं नमः । 
  7. महापद्माय नमः एष पिण्डं नमः । 
  8. शंखपालाय नमः एष पिण्डं नमः । 
  9. कुलिशाय नमः एष पिण्डं नमः ।


पिण्डपूजन - मौन होकर पिण्डों का पूजन करे ।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् । एष धूपः सुधूपः ।

इदं स्नानीयं सुस्नानीयम्। एष दीपः सुदीपः । इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् ।

हस्तप्रक्षालनम्।

इदं वस्त्रं सुवस्त्रम्।

इदं नैवेद्यं सुनैवेद्यम् ।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् । इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् ।

इमे यज्ञोपवीते सुयज्ञोपवीते।

इदं फलं सुफलम्।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम् ।

इदमाचमनीयं स्वाचमनीयम्।

एष गन्धः सुगन्धः ।

इदं ताम्बूलं सुताम्बूलम्।

इमे तिलाक्षताः सुतिलाक्षताः । एषा दक्षिणा सुदक्षिणा ।

इदं माल्यं सुमाल्यम्।

इदं पुष्पाञ्जली सुपुष्पाञ्जली ।

  समस्त कर्म ईश्वरार्पण कर, ब्राह्मण को प्रचुर दक्षिणा प्रदान करके आशीर्वाद ग्रहण करे। बाद में पिण्ड, पूजनादि निर्माल्य समस्त वस्तुओं का जल में विसर्जन करे। इस कर्म में एक दिन का सूतक होता है । द्वितीय दिन उस स्थान पर जाकर, जहाँ नाग दहन किया हो, वहाँ की राख को नदी में प्रवाहित करे। स्नान करने से सूतक नष्ट हो जाता है । सूतक निवृत्ति के पश्चात् ब्रह्मगिरि अथवा शिव जी की संकल्पित परिक्रमा करे। नागबलि कर्म के समय में जिस कपड़े को पहना हुआ हो, उसका परित्याग कर किसी को दे दे और अन्य वस्त्र पहन कर आगे का कर्म करे ।

नागबलिकर्म परिपूर्णम्

नागबलि पूजा प्रयोग विधि को डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें —

नारायण नागबलि पूजा प्रयोग विधि पीडीएफ


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