समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥

SHARE:

समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान, बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान, राम रावण युद्ध, राम रावण युद्ध के श्रवण का फल, #दशहरा_विशेष,

राम रावण युद्ध
राम रावण युद्ध

   लंकापति रावण जानकी जी का हरण करके ले गया। रावण के स्वयं के रिश्तेदारों ने एवं राम जी की तरफ से भी सीता को लौटाने के लिए रावण को समझाया गया लेकिन उसने किसी की बात नहीं सुनी अंततः श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ रावण की पराजय हुई। भगवान श्री राम की विजय हुई।

समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। 

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥

   जो सुजान लोग श्रीरघुवीर की समर विजय सम्बन्धी लीला को सुनते हैं, उनको भगवान नित्य विजय विवेक और विभूति (ऐश्वर्य) देते हैं।

समर

  'समर' का शाब्दिक अर्थ होता है 'युद्ध' परंतु मूल भाव है स+मर= जहां मरण भी श्रेयस्कर है सुंदर है ।

      स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥(गीता ३ / ३५) 

अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है॥ जहां मरने पर भी स्वर्ग मिलता है —

 हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।(गीता२/३७) 

 तो तू युद्धमें मारा जाकर स्वर्गको प्राप्त होगा अथवा संग्राममें जीतकर पृथ्वीका राज्य भोगेगा। 

 बिजय

  युद्ध में दोनों पक्ष एक दूसरे के शत्रु होते हैं और अपनी अपनी विजय के लिए उद्यत है लेकिन विजय तो सर्वदा धर्म की होती है —

     यतो धर्मस्ततो जय:। 

विजय सत्य की ही होती है —

         सत्यमेव जयते। 

  यहां श्री राम धर्म के लिए युद्ध कर रहे हैं और रावण अधर्म के साथ खड़ा है इसीलिए पराजय का मुंह देखना पड़ा।

रघुवीर

   यहां तुलसीदास जी ने श्री राम को रघुवीर लिखा है। रघुवंशी तो वे हैं ही। वीर से तात्पर्य है जो कभी पराजय स्वीकार नहीं करता है वीर अंतिम श्वास तक जय के लिए प्रयास करता है। समर में जयमाल वीर के गले की ही शोभा बढ़ाती है।

चरित

  इस युद्ध के आरंभ से अंत तक प्रभु ने जो जो आचरण किया जो जो घटनाक्रम हुआ यथा सेतु-निर्माण ,रामेश्वर पूजन ,अंगद को रावण के पास भेजना, युद्ध में रावण के सभी कुटुंबियों सहित राक्षसों का विनाश वह सब चरित्र की श्रेणी में है।

सुनहिं सुजान

  रघुवीर के समर विजय चरित्र को सुनना है और सुनने वाला सुजान होना चाहिए। 'सुनने' की बड़ी महिमा महता रही है। नवधा भक्ति में भी सर्वप्रथम 'श्रवण' को ही स्थान दिया गया है

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। 

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

  श्रवण- ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

  सो जल सुकृत सालि हित होई।

  राम भगत जन जीवन सोई॥ 

  मेघा महि गत सो जल पावन ।

  सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥ 

  भरेउ सुमानस सुथल थिराना । 

  सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥

  'सुनत सकल मुद मंगल देनी'। 

  पांच ज्ञानेंद्रियां है सबसे सरल काम सुनने का ही है। साथ ही साथ सुनना एक कल भी है।

  कई बार सोचते हैं खाने का काम कितना सरल है किंतु अकेला मुंह या अकेली जिह्वा खा नहीं सकती । उसमें और भी दोनों- तीनों इंद्रियों का सहयोग चाहिए ,त्वचा से स्पर्श करेंगे गर्म है ठंडी है, नाक से सूंघेंगे ताजा है बासी है ,आंखों से देखेंगे कोई गंदगी कचरा तो नहीं है उसके बाद में जिह्वा उसका स्वाद लेगी मीठा है खट्टा है फिर गले में जाएगा।

   राम जी के चरित्र को सुनने वाला सुजान होना चाहिए, विवेकवान होना चाहिए क्योंकि-

      'उमा राम गुन गूढ़' का सिद्धांत लागू होता है।

  भगवान श्री राम धर्म के साक्षात विग्रह है किंतु इस युद्ध के दौरान कुछ घटनाक्रम ऐसे हैं जो सामान्य बुद्धि वाला आदमी धर्म संगत नहीं मानेगा। विवेक से काम लेना पड़ेगा।

   भगवान श्री राम यज्ञपुरुष है उनके स्वयं के अवतरण में पुत्र कामेष्टि यज्ञ ही माध्यम बना । यज्ञ भगवान द्वारा प्रदत्त पायस के खाने से ही गर्भ में पधारे। परंतु इस युद्ध के दौरान मेघनाद द्वारा यज्ञ किया गया रावण द्वारा यज्ञ किया गया, विध्वंस कर दिया गया। जबकि यज्ञ विध्वंस का कार्य राक्षसों का रहा है।

  रावण जब सत्तासीन हुआ था तो उसका पहला आदेश ही यही था।

द्विजभोजन मख होम सराधा । 

सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा।।

  यहां थोड़ा विवेक से सोचना पड़ेगा की यज्ञ का वास्तव में क्या प्रयोजन है और राक्षसों द्वारा किस प्रयोजन से यज्ञ किए गए।

गीता कहती है —

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥३/१४

   किंतु राक्षसों द्वारा किए गए यज्ञ जनकल्याण के लिए नहीं थे उनका उद्देश्य विनाशकारी था ऐसे यज्ञ को विध्वंस करना ही धर्म संगत है युक्तिसंगत है।

गोस्वामी जी आगे लिखते हैं-

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥ 

 जो रघुवीर के समर विजय चरित्र को सुनेंगे उनको विजय, विवेक और विभूति भगवान नित्य प्रदान करेंगे

     यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।

     स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।

(गीता 3/21) 

  स्पष्ट है मनुष्य जीवन भी किसी युद्ध से कम नहीं है सदैव षट् रिपुओं ( काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, मद) द्वारा घिरा रहता है। 

  यह संसार सागर रणभूमि ही है इस को पार करने के लिए इन छः शत्रुओं को जीतने के लिए भगवान का चरित्र ही एकमात्र अवलंबन है शस्त्र है। सब में तो बजरंगबली की तरह क्षमता नहीं होती कि एक छलांग में सागर लांघ जावे कोई आश्रय तो लेना पड़ेगा —

अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।

 चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं।।

  इन शत्रुओं के साथ तो नित्य का ही युद्ध चल रहा है अतः भगवान इन से जीतने की शक्ति नित्य देते हैं। 

   सत्य और असत्य का ज्ञान 'विवेक' के बिना नहीं होता और विवेक राम कृपा से ही सुलभ है।

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति। (गीता 4/40) 

   विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है। 

सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥(गीता 4/36) 

  तू ज्ञानरूप नौकाद्वारा नि:संदेह सम्पूर्ण पाप-समुद्रसे भलीभाँति तर जायगा ॥ 

   विभीषण पूछता है भगवान रावण तो रथ पर सवार है आप बिना रथ के हो आपके तो पद त्राण तन त्राण भी नहीं है तो भगवान उस रथ का वर्णन करते हैं जिससे संसार रूपी शत्रु से विजय प्राप्त हो सके।

   शौर्य धैर्य रथ के पहिए हैं, सत्य, शील, ध्वजा पताका है, बल, विवेक, दम, परोपकार यह चार घोड़े हैं, क्षमा, दया और क्षमता की डोरी से जुड़े हुए हैं, ईश्वर का भजन चतुर सारथी है, वैराग्य ढाल है, संतोष तलवार है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है, निर्मल और अचल मन तरकस है, यम नियम आदि बाण है, ब्राह्मणों और गुरु का पूजन कवच है, ऐसा जिसके पास हो उसको कोई भी शत्रु नहीं जीत सकता।

    महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर । 

     जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।

   भगवान का बिना कवच और जूते के युद्ध में उतरने का यह संकेत है कि आदमी को अपनी सुख-सुविधाओं का दास नहीं बनकर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान रखना है आसक्ति को त्यागना है।

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्। 

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्॥

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता। 

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥

   इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होनेपर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव। तेज, क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव-ये सब तो हे अर्जुन ! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥ 

COMMENTS

BLOGGER
नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),4,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान। बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान, बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान, राम रावण युद्ध, राम रावण युद्ध के श्रवण का फल, #दशहरा_विशेष,
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJ_p-34qfEXS0TdsHQCTFelAugoqFBxKJxuCVyRnsF0Wlc0VFW6ozfaVx5pNpJdsulQbojUDxCQMx-5g2VRSuqt6vCBTY-x-FxAy4sLXDVAaHgvkZByYiTuS5E-RV0x0pPc9Fcz194jidXQGlTzPEwwx4jOsscPDxnVtIreupgT6EoTBRz_I66YoLmiyk/w320-h213/InShot_20231031_061803856.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJ_p-34qfEXS0TdsHQCTFelAugoqFBxKJxuCVyRnsF0Wlc0VFW6ozfaVx5pNpJdsulQbojUDxCQMx-5g2VRSuqt6vCBTY-x-FxAy4sLXDVAaHgvkZByYiTuS5E-RV0x0pPc9Fcz194jidXQGlTzPEwwx4jOsscPDxnVtIreupgT6EoTBRz_I66YoLmiyk/s72-w320-c-h213/InShot_20231031_061803856.jpg
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/10/blog-post_31.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/10/blog-post_31.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content