अति वाचालता

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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राजा और मन्त्री
राजा और मन्त्री की कहानी

  एक राजा बहुत अधिक बोलता था। उसका मन्त्री विद्वान् और हित चिन्तक था इसलिये सोचता रहता था कि राजा को कैसे इस दोष से मुक्त करूँ और वह ज्ञान दूँ जो कि मनुष्य के हृदय में बहुत गहराई से उतरकर उसके स्वभाव का अंग बन जाता है। मन्त्री हमेशा राजा के हित की सोचता रहता था और उचित अवसर की तलाश में था कि राजा को अपने इस दोष का आभास हो और उसके द्वारा होनेवाली हानि को समझकर उसमें से निकल जाए।

  एक दिन की बात है राजा मन्त्री के साथ उद्यान में घूमते हुए एक शिला पर बैठ गया। शिला के ऊपर एक छायादार पेड़ था। उस आम के पेड़ पर कौवे का एक घोंसला था जिसमें स्वभावत: काली कोयल अपना अण्डा रख गयी थी।

  कोयल एक ऐसी पक्षी है जो कभी भी अपना घोंसला नहीं बनाती है । जब कोयल अंडे देती है तो वह अपने अंडों को उठाकर कौए के घोसले में छोड़ आती है क्योंकि कोयल और कौए के अंडे एक जैसे दिखते हैं इसलिए कौआ कोयल के अंडों की देखरेख अपने अंडों की तरह करता है।ऐसा कहा जाता है कि कोयल ही सृष्टि में एकमात्र ऐसा पक्षी है जो अपना घोंसला कभी बनाती ही नहीं है।  

   कौवा-कौवी उस अण्डे को अपना समझकर पाल रही थी।आगे चलकर उसमें से कोयल का बच्चा निकला। कौवी उसे अपना पुत्र समझकर चोंच से चुग्गा ला, उसे पालती थी। कोयल के बच्चे ने असमय जबकि उसके पर भी नहीं निकले थे, कोयल की आवाज अपने मुख से निकाली।

  कौवी ने सोचा- "यह अभी विचित्र आवाज करता है, बड़ा होने पर क्या करेगा ?' कौवी ने चोंच से मार-मारकर उसकी हत्या कर उसे घोंसले से नीचे गिरा दिया। राजा जहाँ बैठा था, वह बच्चा वहीं उसके पैरों के पास गिरा।राजा ने मन्त्री से पूछा-'मित्र ! यह क्या है ?" 

  मन्त्री को राजा की भूल बताने का यह अवसर मिल गया। इसी अवसर का फायदा उठाकर मन्त्री ने कहा- "महाराज ! #अति_वाचाल (बहुत बोलनेवालों) की यही गति होती है।"

  राजा के पूछने पर मन्त्री ने पूरी बात राजा को समझाकर बताया कि कैसे यह बच्चा असमय आवाज करने से नीचे गिरा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। यदि यह चुप रहता तो यथा समय घोंसले से उड़ जाता। इतना कहकर मन्त्री ने राजा को मौका देखकर उसकी वाचालता दूर करने के लिये यह प्रत्यक्ष उदाहरण बताकर नीति बतायी।

  'चाहे मनुष्य हो, चाहे पशु-पक्षी; असमय अधिक बोलने से इसी तरह दुःख भोगते हैं।' उसने वाणी के अन्य दोष और उसके दुष्परिणाम राजा को बताये।

  'दुर्भाषित वाणी हलाहल विष के समान ऐसा नाश करती है, जैसा तेज किया हुआ शस्त्र भील नहीं कर सकता इसीलिये बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिये कि वाणी की समय- असमय रक्षा करे। अपने समकक्ष व्यक्तियों से कभी अधिक बातचीत न करें। जो बुद्धिमान् समय पर विचारपूर्वक थोड़ा बोलता है, वह सबको अपने वश में कर लेता है।'

  बुद्धिमान् और प्रज्ञावान् मन्त्री की बात सुनकर राजा अति वाचालता के दोष को दूर कर मितभाषी हो गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा, उसने प्रसन्न होकर मन्त्री को मान और वैभव से कृतार्थ किया।

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