एक चोर और एक झेन फकीर लिंची

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Bhagwat_darshan
Bhagwat darshan

ऐसा हुआ एक बार कि एक चोर एक झेन फकीर के पास गया। झेन फकीर बड़ा प्रसिद्ध फकीर था, लिंची। और चोर ने कहा कि मुझे ध्यान सिखाएं। 

  लिंची को पता भी नहीं कि वह कौन है। लेकिन लिंची ने कहा, ध्यान? ध्यान तू जानता है; तेरी हवा में ध्यान है।

 तुझे देख कर लगता है, तू मुझे धोखा देने की कोशिश मत कर, तूने ध्यान पहले सीखा है। उस आदमी ने कहा कि आप भ्रांति में पड़ गए हैं और आपको मैं गलत कहूं, यह उचित नहीं। लेकिन ध्यान से मेरा क्या नाता? आप मुझे जानते नहीं हैं; ध्यान मैंने कभी नहीं किया।

लिंची विचार में पड़ गया। उसने आंखें बंद कीं, बहुत खोजा। उसने कहा कि तूने जरूर कुछ न कुछ किया है। तू तलवार चलाना जानता है?

  क्योंकि झेन फकीर तलवार के माध्यम से भी ध्यान करवाते हैं। तलवार का खेल ध्यान का खेल है। क्योंकि रत्ती तुम चूके होश कि गए। दूसरा तलवार उठाए, इसके पहले बचाव हो जाना चाहिए। दूसरा वार करे, इसके पहले तैयारी हो जानी चाहिए। बड़ी सजगता चाहिए।

 और जरा सा फासला नहीं है समय का, तलवार सामने खड़ी है। तो तलवार के माध्यम से ध्यान का जापान में बड़ा प्रयोग किया गया है।

तो तू तलवार चलाना जानता है?

नहीं, मेरा काम ऐसा नहीं, उसमें तलवार की जरूरत नहीं। मेरा कोई नाता नहीं है।

  तो तू क्या करता है? लिंची ने पूछा फिर; क्योंकि मैं यह समझ ही नहीं पा रहा हूं। और मेरी भूल कभी नहीं हुई आज तक जीवन में। मैं भलीभांति पहचान सकता हूं कि ध्यान की आभा क्या है। और तेरे चारों तरफ ध्यान का मंडल है।

  वह आदमी रोने लगा। उसने कहा कि जरूर कोई भूल हो रही है; जीवन भर न किए हों, लेकिन इस बार हो रही है। मैं एक साधारण चोर हूं। अब मत वह बात उठाएं, उससे मन में ग्लानि उठती है।

  लिंची हंसने लगा। उसने कहा, बात साफ हो गई; मैं गलती में नहीं हूं। क्योंकि चोर को ध्यान तो साधना ही पड़ता है। पर तू साधारण चोर नहीं है, मास्टर थीफ। तू बड़ा असाधारण, असाधारण चोर है।

 और तू मुझसे क्या सीखने आया है? जो तूने चोरी में जाना है उसको ही तू जीवन में उतार ले। जितनी सजगता से तूने चोरी की है उतनी सजगता से और काम भी कर।

 बस, हल हो जाएगा। सूत्र तुझे मिल गया है; तुझे खबर नहीं है। तेरे पास क्या है उसका तुझे पता नहीं है। जितनी सजगता से दूसरे के घर रात के अंधेरे में पैर उठाता था, श्वास लेता था...।

 श्वास भी चोर जोर से नहीं ले सकता दूसरे के घर में; उसको प्राणायाम साधना होता है। और तुम जानते हो, जब भी तुम कभी ऐसा कोई काम कर रहे हो जिसमें घबड़ाहट होती है तो श्वास ज्यादा हो जाती है। 

 और चोर को श्वास साधनी पड़ती है कि वह ज्यादा न हो जाए, एक लयबद्धता रहे। श्वास का भी पता न चले। खांसता नहीं चोर, खखारता नहीं चोर।

 तुम्हें पता है कि संन्यासी भी ध्यान करने बैठता है तो खांसी आ जाती है तो नहीं रोक पाता, लेकिन चोर को तो रोकना ही पड़ेगा। क्योंकि खांस दे तो सब बात ही खराब हो गई। कैसा सम्यक! काम गलत है, लेकिन काम करने की जो प्रक्रिया है उसमें होश तो रखना ही पड़ेगा।

लाओत्से को भी बड़ा प्रिय है चोर का प्रतीक। 

  और लाओत्से कहता है, उस परमात्मा को चुराना है; चोर की तरह अंधेरे में चलना है दूसरे के घर में। यह दुनिया पूरा दूसरे का घर है, अपना यहां कुछ भी नहीं।

 यहां हर जगह संभावना है टकराने की, यहां हर जगह कलह, संघर्ष की। उस संघर्ष से बचना है, कलह से बचना है।

 यहां हर जगह संभावना है भटक जाने की, क्योंकि अंधेरा है घना। उस भटकाव से बचना है, और एक ऐसे ढंग से चलना है कि अंधेरे में भी दिखाई पड़ने लगे। चोर को धीरे-धीरे अंधेरे में दिखाई पड़ने लगता है।

  तुम भी अगर अंधेरे में थोड़े दिन बैठ कर शांत देखने की कोशिश करो तो तुम पाओगे, जैसे-जैसे तुम्हारी कोशिश गहन होती है वैसे-वैसे तुम्हें हलकी-हलकी प्रतीति होने लगती है। क्योंकि कोई अंधकार अंधकार नहीं है; सभी अंधकार प्रकाश के रूप हैं।

 जिसको हम अंधकार कहते हैं उसको अगर हम ठीक से कहें, वैज्ञानिक भाषा में कहें, आइंस्टीन से पूछ कर कहें, तो हम कहेंगे, वह कम प्रकाश है। सापेक्ष। अंधकार कहना उचित नहीं है; थोड़ा कम प्रकाश। 

  क्योंकि उस अंधेरे में भी बिल्ली देखती है। बिल्ली की आंखें ज्यादा सचेत हैं। अगर तुम कभी बिल्ली की आंखों में देखो तो तुम्हें बहुत बेचैनी मालूम पड़ेगी। 

  इसीलिए तो बिल्ली शैतान का प्रतीक हो गई। बहुत सचेत है। और इसीलिए तो बिल्ली को, जो लोग भी काली विद्याओं में यात्रा करते हैं, बिल्ली उनकी साथी हो गई। अंधेरे में देख सकती है, यह उसकी बड़ी गहन कला है।

  और बिल्ली को तुमने कभी चलते देखा? बस चोर भी वैसे ही चलता है। जब बिल्ली चूहे को पकड़ने जाती है तब उसे देखो, चोर भी वैसे ही चलता है, आवाज भी नहीं होती। 

  और जब चोर संपत्ति के करीब पहुंचता है, दूसरे की संपत्ति के, तब वह वैसी ही हालत में सजग होता है जैसे बिल्ली चूहे के छेद के पास बैठी रहती है। जरा भी पता नहीं चलता कि वह है। हलकी थिरकन भी नहीं करती, लेकिन तैयार ऐसी कि ओलंपिक में दौड़ने के लिए जो प्रतियोगी खड़े होते हैं वे भी इतने तैयार नहीं। चूहा निकला नहीं कि वह झपटी नहीं, लेकिन झपट में भी आवाज नहीं होती। दूसरे चूहों को भी पता नहीं चल पाता कि एक चूहा पकड़ा गया है, नहीं तो वे निकलना बंद कर देंगे।

  बिल्ली की नींद तुमने देखी? गहन निद्रा में लीन होती है; हो सकता है कोई गहरा सपना देख रही हो; मूंछों को चाटती है, हो सकता है सपने में चूहा खा रही हो; बड़ी गहरी नींद में लीन है।

 लेकिन जरा सी खटक, चूहे का चलना-हिलना, आंख खुल गई। योगी की निद्रा बिल्ली जैसी होनी चाहिए। और बिल्ली चोरों में चोर है। बिल्ली, जानवरों में वैसा कोई दूसरा चोर नहीं जैसा बिल्ली। चुरा कर ही जीती है; सारा धंधा ही चोरी का है।

स्मरण रहे कि सारा संसार पराया है, दूसरे का घर है।

 सब तरफ अंधेरा है। लेकिन अगर तुम थोड़ी अपनी दृष्टि को जमाना सीख जाओ और दृष्टि के जमाने के अतिरिक्त ध्यान क्या है--अगर तुम्हारी दृष्टि थोड़ी थिर होने लगे, तो यह अंधकार धीरे-धीरे-धीरे-धीरे कम अंधकार होता जाता है और इसमें प्रकाश का आविर्भाव हो जाता है। 

  और एक घड़ी ऐसी आती है कि जब तुम्हारा ध्यान पूरी तरह थिर हो जाता है तो अंधकार बचता ही नहीं। तुम्हारे भीतर का दीया जल उठता है; उस दीए की रोशनी चारों तरफ पड़ने लगती है।

 और जब तक तुम ऐसी अंतर-ज्योति को उपलब्ध न हो जाओ तब तक परमात्मा की चोरी नहीं हो सकती। 

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