एक क्रान्तिकारी ऐसा भी !

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Freedom fighter #Jatindas
Freedom fighter Jatindas

  एक ऐसा क्रांतिकारी भी था, जिसका प्लान अगर कामयाब हुआ होता, साथी ने गद्दारी नहीं की होती तो देश 32 साल पहले ही यानी 1915 में स्वतंत्र हो गया होता। जब भय में लोग घरों में भी सहम कर रहते थे, वो अकेला जहां अंग्रेजों को देखता, उन्हें पीट देता था, यह थे जतीन्द्रनाथ मुखर्जी जो साथियों के बीच बाघा जतिन के नाम से प्रसिद्ध थे।

  जब उन्होंने अपने क्षेत्र में एक बिगड़ेल घोड़े को नियंत्रित किया तो वह अपनी बहादुरी के लिए आसपास मशहूर हो गये। पिता की मृत्यु के बाद उनकी परवरिश उनके ननिहाल में हुई।अपने मामा के साथ अक्सर उनका मिलना रविन्द्र नाथ टैगोर से होता था, जिसने उनके जीवन को बहुत प्रभावित किया। वो ध्रुव, प्रहलाद, हनुमान और राजा हरिश्चंद्र जैसे रोल नाटकों में करने लगे। इसी दौरान उन्होंने एक भारतीय का अपमान करने पर एक साथ चार अंग्रेजों को पीट दिया। अंग्रेज भी उनसे उलझने से बचने लगे।

 कलकत्ता सेंट्रल कॉलेज में पढ़ने के दौरान वो स्वामी विवेकानंद के पास जाने लगे, जिनसे उन्हें भरोसा मिला कि स्वस्थ फौलादी शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

  1899 में मुजफ्फरपुर में बैरिस्टर पिंगले के सेक्रेटरी बनकर पहुंचे, जो बैरिस्टर होने के साथ-साथ एक इतिहासकार भी था, जिसके साथ रहकर जतिन ने महसूस किया कि भारत की एक अपनी नेशनल आर्मी होनी चाहिए।

  एक बार उनके गांव में एक तेंदुए का आतंक था, तो वो उसे जंगल में ढूंढने निकल पड़े, लेकिन सामना हो गया रॉयल बंगाल टाइगर से। जतिन ने उसको अपनी खुखरी से मार डाला। बंगाल सरकार ने एक समारोह में सम्मानित किया। तभी से उनका नाम बाघा जतिन पड़ा।

  1905 में प्रिंस आप वेल्स जब कलकत्ता आये, तो उनके काफिले की एक गाड़ी की छत पर कुछ अंग्रेज बैठे हुए थे, और उनके जूते खिड़कियों पर लटक रहे थे, गाड़ी में बैठी महिलाओं के बिलुकल मुंह पर। भड़क गए जतिन और उन्होंने अंग्रेजों से उतरने को कहा, लेकिन वो नहीं माने तो ऊपर चढ़ गए बाघा जतिन और एक-एक करके सबको पीट दिया। तब तक पीटा जब तक कि सारे नीचे नहीं गिर गए। लेकिन इस घटना से तीन बड़े काम हुए। अंग्रेजों के भारतीयों के व्यवहार के बारे में उनके शासकों के साथ-साथ दुनियां को भी पता चला, भारतीयों के मन से उनका खौफ निकला और बाघा जतिन के नाम के प्रति क्रांतिकारियों के मन में सम्मान और भी बढ़ गया।

  तीन साल के लिए उनको दार्जीलिंग भेजा गया, जहां उन्होंने अनुशीलन समिति की एक शाखा बांधव समिति शुरू की। सिलीगुड़ी स्टेशन पर फिर अंग्रेजों के एक मिलिट्री ग्रुप से उनकी भिड़ंत हो गई। कैप्टन मर्फी की अगुवाई में अंग्रेजों ने जतिन से बदतमीजी की, तो जतिन ने अकेले उन आठों को जमकर मारा।

  इसी बीच फोर्ट विलियम में तैनात जाट रेजीमेंट को भड़काने के आरोप में जतिन दा को गिरफ्तार कर लिया गया,उन दिनों फोर्ट विलियम से देश की सरकार चलती अंग्रेज सरकार बाघा जतिन, अरविंदो घोष, रास बिहारी बोस जैसे कई बंगाली क्रांतिकारियों से तंग आ गई थी।

  चेक के ही रॉस हेडविक ने बाद में लिखा कि ‘इस प्लान में अगर इमेनुअल विक्टर वोस्का ना घुसता तो किसी ने भारत में गांधी का नाम तक ना सुना होता और राष्ट्रपिता बाघा जतिन को कहा जाता। 

  पुलिस को सुराग मिला कि जतिन और उसके साथी कप्टिपाड़ा गांव में हैं। जतिन के साथ मनोरंजन और चित्तप्रिया थे। वहां से वो निकल भागे, जतिन और उनके साथी जंगलों की तरफ भागे, अंग्रेजों ने जतिन पर भारी इनाम का ऐलान कर दिया, अब गांव वाले भी उन्हें ढूंढने लगे। इधर भारी मात्रा में जर्मन हथियार बरामद कर लिया गया। क्रांति फेल हो चुकी थी। सपना मिट्टी में मिल चुका था।

  10 सितम्बर 1915 में इस महान सिपाही ने अस्पताल में ही अपने प्राण त्याग दिए।

महान क्रांतिकारी जतिन दास को उनके बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि और कोटि-कोटि नमन।

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