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Navratri poojan vidhi |
देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।
आगमन वाहन
"शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥"
अर्थात्, रविवार व सोमवार को हाथी, शनिवार व मंगलवार को घोड़ा, गुरुवार व शुक्रवार को पालकी, बुधवार को नौका आगमन।
प्रस्थान वाहन–
रविवार व सोमवार भैंसा,
शनिवार और मंगलवार को सिंह,
बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी,
गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान
नवरात्रि में घटस्थापना, ज्वार रोपण नवदुर्गाओं का क्रमशः पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती के सात सौ महामंत्रों से हवन, कन्या पूजन व अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुल देवी पूजन व उपवास का विशेष महत्व है।
साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।
घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।
कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री
- जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
- जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
- पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
- घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
- कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
- नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
- रोली, मौली
- इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
- पंचरत्न ( हीरा, नीलम, पन्ना, माणक और मोती )
- पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
- कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
- ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
- नारियल, लाल कपडा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूप, अगरबत्ती
भगवती मंडल स्थापना विधि
जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमूत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी-गणेश जी का पुजन करें।
भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।
मां दुर्गा पूजन सामग्री
पंचमेवा पंच मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।
घट स्थापना या कलश स्थापना एवं दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें ।
"ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें ।
अब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें -
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: ।
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनं तु महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम्।
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।।
मां दुर्गा पूजन हेतु संकल्प
पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए। संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें —
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपतेः ....तमेऽब्दे ....नाम संवत्सरे श्रीसूर्य...अयने ....गोले ....ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे ....मासे ....पक्षे...तिथौ ....वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वांगत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथा मिलितोपचारैः गणपति पूजनं करिष्ये।
गणपति पूजन विधि
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन — हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
"ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ" कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।
हाथ में फूल लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि।
अर्घ्य — अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
आचमनीय-स्नानीयं — ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि।
वस्त्र — लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत — ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
पुनराचमनीयम् — दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।
रक्त चंदन लगाएं — इदं रक्त चंदनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके पश्चात् सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः।
दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि।
मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र
शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च गृह्यतां गणनायक।।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः फलं समर्पयामि।
अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।
अब विषम संख्या में दीपक जलाकर निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, फिर तीन प्रदक्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
घट स्थापना एवं मां दुर्गा पूजन की विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी, फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र, पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है, पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।
आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें।
मां दुर्गा पूजन विधि
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें —
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि॥
आसन — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
अर्घ्य — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥
आचमन — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥
स्नान — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥
स्नानांग आचमन — स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
पंचामृत स्नान — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥
पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
गन्धोदक-स्नान — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
(रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
शुद्धोदक स्नान — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
आचमन — शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
वस्त्र — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि ॥
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
सौभाग्य सू़त्र — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि ॥
मंगलसूत्र या हार पहनाए।
चन्दन — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पयामि ॥
चंदन लगाए।
हरिद्राचूर्ण — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हरिद्रां समर्पयामि ॥
हल्दी अर्पण करें।
कुंकुम — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पयामि ॥
कुमकुम अर्पण करें।
सिन्दूर — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि ॥
सिंदूर अर्पण करें।
कज्जल — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पयामि ॥
काजल अर्पण करें।
दूर्वाकुंर — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरानि समर्पयामि ॥
दूर्वा चढ़ाए।
आभूषण — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणानि समर्पयामि ॥
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।
पुष्पमाला — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पयामि ॥
फूल माला पहनाए।
धूप — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापयामि॥
धूप दिखाए।
दीप — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शयामि॥
दीप दिखाए।
नैवेद्य — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि॥
नैवेद्यान्ते त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पयामि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।
फल — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फलानि समर्पयामि॥
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े।
ताम्बूल — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पयामि॥
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।
दक्षिणा — श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दक्षिणां समर्पयामि॥
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछबड़े सकें।
आरती —
माँ की आरती करें —
जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरार्तिक्यं समर्पयामि॥
आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।
इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
क्षमा प्रार्थना मंत्र
न मंत्रं नो यंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥4॥
परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरणम् ॥5॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7॥
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववांछापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10॥
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरापरं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥12॥
इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर घर मे सुख समृद्धि की कामना करें प्रशाद बांटे।
विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन के लिये आगामी पोस्ट देखें।
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