वातरोग चिकित्सा (gout therapy) तथा अपच, अजीर्ण (कब्ज), कमजोरी, सन्तानहीनता आदि रोगों की चिकित्सा (Treatment of diseases like indigestion, constipation, weakness, childlessness etc.)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन

Medical science in the Atharva Veda: A Study
(सूरज कृष्ण शास्त्री)

Medical science in atharvveda
Atharvveda's medical science

वातरोग चिकित्सा 

(gout therapy)

  वातरोग को प्रायः गठिया नाम से जाना जाता है। यह रोग रोगी के जोड़ों और शरीर को जकड़ लेता है, इसलिये इसे अथर्ववेद में ग्राही भी कहा गया है। दशमूल वृक्ष अथवा दश वृक्षों के मूल से बनने वाले औषध को इस रोग की दवा बताया गया है। वैद्य का वचन है। हे दशवृक्ष! अथवा दशवृक्ष से बनने वाले औषध ! तू इस रोगी को ग्राही (स्त्री.) अर्थात् वातरोगरूपी राक्षस की पकड़ से, जिसने इसको जोड़ों में जकड़ा हुआ है, मुक्त कर दे। और हे वृक्षों के स्वामी! इस मृतप्राय रोगी को स्वस्थ जीवन जीने वाले मनुष्यों के लोक में प्रवेश करा दे, अर्थात् उत्तम स्वस्थ जीवन जीने के योग्य बना दे(दशवृक्ष मुञ्चेमम् रक्षसो ग्राह्या अधि यैनं जग्राह पर्वसु । अथो एनं वनस्पते जीवानां लोकम् उन्नय॥ अ. २.९.१ )। अगले मन्त्र में कहा गया है यह मृतप्राय रोगी इस दशमूल नामक औषध के सेवन से पुनः जीवन को प्राप्त हो गया है। यह रोगशय्या से उठ खड़ा हुआ है। यह स्वस्थ लोगों की जीवनधारा में घुलमिल गया है। इसका विवाह हो गया है और यह कई बच्चों का पिता बन गया है। ऐश्वर्यशाली मनुष्यों में यह सबसे अधिक ऐश्वर्यशाली हो गया है(आगाद् उद् अगाद् अयं जीवानां व्रातम् अप्यगात् । अभूद् पुत्राणां पिता नृणां च भगवत्तमः । अ. २.९.२) । एक मन्त्र में कहा गया है हे रोगी! यदि तुझे वातरोग (ग्राहि: पुं.) ने जकड़ लिया है तो वे ज्ञानी वैद्य लोग उसे अपने ज्ञान से नष्ट कर देवें(ततो यदि त्वा ग्राहिर् आनशे । तां ते देवा ब्रह्मणा नाशयन्तु अ. ६.११३.१-३) ।

gout therapy

   Gout is often known as arthritis. This disease grips the joints and body of the patient, hence it is also called Grahi in Atharvaveda. The medicine made from the Dashmool tree or the roots of ten trees has been said to be a medicine for this disease. It is the doctor's word. O ten trees! Or medicines made from Dasavriksha! You free this patient from the grip of Grahi (female) i.e. the demon in the form of gout, who has held him tight in his joints. And O Lord of trees! Make this dying patient enter the world of healthy living people, that is, make him capable of living an excellent healthy life (Dashvriksha Munchemam Rakshaso Grahya Adhi Yainam Jagrah Parvasu. Atho Enam Vanaspate Jeevanam Lokam Unnay. A. 2.9.1) . In the next mantra it is said that this dying patient has regained life by consuming this medicine called Dashmool. This patient has got up from the bed. It has mixed into the life stream of healthy people. He is married and has become the father of many children. He has become the most opulent among the opulent human beings (agad ud agad ayam jeevanaam vratam apyagaat. abhud putranaam pita nrinaam ca bhagavattamah. A. 2.9.2). It is said in a mantra, O patient! If you have been gripped by gout (grahih puṇḍa), then those knowledgeable physicians should destroy it with their knowledge (tato yadi tva grahi aanshe. ta te deva brahmana nasayantu A. 6.113.1-3).

अपच, अजीर्ण (कब्ज), कमजोरी, सन्तानहीनता आदि रोगों की चिकित्सा (Treatment of diseases like indigestion, constipation, weakness, childlessness etc.)

अथर्ववेद में अपामार्ग औषधि को अनेक रोगों का विनाशक कहा गया है। इसे हिन्दी में चिरचिटा, चिरपिरा आदि अनेक नामों से जाना जाता है। अथर्ववेद (काण्ड ४, सूक्त १७-१९) में अपामार्ग ओषधि के गुणों का विस्तार से वर्णन हुआ है। यह खेतों और मार्गों के आस-पास बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है। यह अत्यन्त प्रभावशाली औषधि है और रोगियों की इस प्रकार रक्षा करती है जिस प्रकार सेना प्रजाओं की रक्षा करती है। जहाँ यह उत्पन्न होती है, वहाँ रोगों से कोई भय नहीं रह जाता(सेनेषि त्विषीमती न तव भयम् अस्ति पत्र प्राप्नोष्योषधे । अ. ४.१९.२) । क्योंकि यह औषधि सभी रोगों को दूर करने वाली है। एक मन्त्र में वैद्य का वचन है - हे अपामार्ग नामक औषधे। तू सब औषधों की स्वामिनी है तू सब औषधों में अधिक प्रभावशालिनी है। हे सब रोगों पर विजय प्राप्त करने वाली। सब रोगों के निवारण के लिये मैं तुझे अपनाता हूँ। हे औषधे ! प्रत्येक रोगी के रोग के निवारण के लिये मैं तुझे अपने प्रयोग के द्वारा असंख्य शक्तियों वाली बनाता हूँ(ईशानां त्वा भेषजानाम् उज्जेष आरभामहे। चक्रे सहस्रवीर्यं सर्वस्मा ओषधे त्वा ।। अ. ४.१७.१) । एक अन्य मन्त्र में कहा गया है - हे अपामार्ग ! तू सब ओषधियों की अग्रगन्ता अर्थात् मुखिया है। मानों तू अपनी ज्योति से सब ओर प्रकाश करती हुई, सुख का प्रसार करती हुई, गमन करती है तेरे मूल, छाल, पत्तों आदि को पकाने वाले अर्थात् उनका औषध के रूप में सेवन करने वाले का तू त्राण करने वाली है। अथवा पक्तव्य, अपरिपक्व, अनुभवहीन जन की त्राता है और रोगरूपी राक्षस का तू हनन करने वाली है(अग्रम् एष्योषधीनां ज्योतिषेनाभिदीपयन्। उत त्रातासि पाकस्याथो हन्तासि रक्षसः ।। अ. ४.१९.३) ।  एक अन्य मन्त्र में कहा है- हे रोगों को परे धो डालने वाली, अर्थात् नष्ट कर डालने वाली, अतः सार्थक नाम वाली अपामार्ग नामक ओषधे ! हम तेरे सेवन के द्वारा, भूख और प्यास को मार देने वाले रोग को, अथवा भूख और प्यास से उत्पन्न होने वाली मृत्यु को, इन्द्रियों की शिथिलता को और सन्तानहीनता को, इन सबको, नष्ट कर डालते हैं(क्षुधामारं तृष्णामारम् अगोताम् अनपत्यताम्। अपामार्ग त्वया वयं सर्वं तद् अप मृज्महे ।। अ. ४. १७.६ )।  हे अपामार्ग नामक औषधे हम सात्विक जीवन जीने वाले, सदाचारी जन अपने साहसिक मनोबल के द्वारा बुरे स्वप्नों को, जीवन की कठिनाइयों को और महान् भय को उत्पन्न करने वाले रोगोत्पादक राक्षस रूपी क्रिमियों को स्वयं से दूर भगाते हैं(दौष्वप्न्यं दौर्जीवित्यं रक्षो अभ्वम् अराय्यः ... नाशयामसि । अ. ४.१७.५ )

Treatment of diseases like indigestion, constipation, weakness, childlessness etc.

In Atharvaveda, Apamarg medicine has been said to be the destroyer of many diseases. It is known by many names in Hindi like Chirchita, Chirpira etc. The properties of Apamarg medicine have been described in detail in Atharvaveda (Kand 4, Sukta 17-19). It is produced in large quantities in fields and around roads. It is a very effective medicine and protects the patients in the same way as the army protects the people. Where it arises, there is no fear of diseases (Seneshi Tvishimati Na Tava Bhayam Asti Patra Prapnosyoshadha. A. 4.19.2). Because this medicine is going to cure all diseases. The doctor's words in one mantra are - O medicines called Apamarg. You are the mistress of all medicines, you are more effective among all medicines. O conqueror of all diseases. I adopt you for the cure of all diseases. Hey medicines! For the cure of the disease of every patient, I make you with innumerable powers through my experiment (Ishaanaam Tva Bheshajanam Ujjesh Aarbhamhe. Chakra Sahasraviryaam Sarvasma Oshadhe Tva. A. 4.17.1). It is said in another mantra – O Apamarg! You are the leader of all medicines. As if you are traveling everywhere illuminating with your light, spreading happiness, you are going to save those who cook your roots, bark, leaves etc. i.e. consume them as medicine. Or the word is the destroyer of an immature, inexperienced person and you are going to destroy the disease-like demon (Agram Eshyoshadhinam Jyotishenabhidipayan. Ut Tratasi Paksyatho Hantasi Rakshasah. A. 4.19.3). In another mantra it is said - O the medicine that washes away diseases, that is, the one that destroys them, hence the meaningful name Apamarg! By consuming you, we destroy the disease that kills hunger and thirst, or the death caused by hunger and thirst, the laxity of the senses and childlessness, all these (Kshudhamāraṃ Triṣṇāmaaram Agotaṃ Anapatyataṃ. Apamarga Tvaya व्याम सर्वं ताद अप मृज्महे ॐ A. 4. 17.6). O medicines called Apamarga, we, the virtuous people living a virtuous life, by our courageous spirit, drive away from ourselves the evil dreams, the difficulties of life and the disease-causing demons who create great fear (Daushvapanya Daurjeevityam Raksho Abhavam Arayah.. .Nashayamsi.A.4.17.5)

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