अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन(भाग 4) Medical science in the Atharva Veda: A Study(part 4)
अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन(भाग 4) Medical science in the Atharva Veda: A Study(part 4)
Atharvveda's medical science |
सर्प विष चिकित्सा(snake venom treatment)
आधुनिक जीवशास्त्रियों ने सर्पों की ३२६ जातियों का पता लगाया है। सुश्रुत के अनुसार साँप ८० प्रकार के होते हैं। किन्तु अथर्ववेद में साँपों की १८ जातियों का उल्लेख है। इनमें से ६ जातियाँ अत्यधिक विषैली, ६ जातियाँ कम विषैली और शेष ६ जातियाँ विषरहित है।(अ. ५.१३.५-९)
साँप के काटे के तीन रूप माने गए हैं -
क. खात (जिसमें दांत गहरे गढ़े हों),
ख. अखात (जिसमें दांत कम गहरे गढ़े हों) और
ग. सक्त (जिसमें खरोंच मात्र लगी हो) ।(खातम् अखातम् उत सक्तम् अ. ५.१३.१ )।
साँप के काटने से मनुष्य टेढ़े अवयवों वाला, अश्लिष्ट जोड़ों वाला, ढीले अंगों वाला और खिसके हुए मुखावयवों वाला हो जाता है। साँप के अतिशय भय के निवारण के लिये प्रार्थना की गई है - हे देवों सर्प हमारे बच्चों, मनुष्यों और हमें न मारे(अयं यो वक्रो विपरुर् व्यङ्गो मुखानि वक्रा वृजिना कृणोषि अ. ७.५८(५६).४। ४. मा नो देवा अहिर् वधीत् सतोकान् त्सहपूरुषान् । अ. ६.५६.१) । सर्पवैद्य अथवा गारुडिक काटने वाले सर्प की ताड़ना करता हुआ कहता है - मेघ की गर्जना जैसे ऊँचे स्वर से मैं तेरे विष को नष्ट करता हूँ। मैं ने तेरे द्वारा इसे हुए इस मनुष्य के स्वजनों की सहायता से इसके शरीर में गए तेरे विष को वश में कर लिया है। जिस प्रकार सूर्य रात्रि के अंधकार से बाहर आ जाता है, उसी प्रकार यह मनुष्य तेरे विष के प्रभाव से बाहर हो जाएगा(अ. ५.१३.३)। ये शब्द रोगी का उत्साह और साहस बढ़ाने के लिये कहे गए हैं। गर्जना करते हुए ऊँची आवाज़ से कहने का तात्पर्य यह भी है कि रोगी जागता रहे और बेहोश न होना पाए, ताकि उसे बचा लिया जाए। वह सर्प को सम्बोधित करते हुए आगे कहता है मैं अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से तेरी आँखों को फोड़ दूँगा। मैं तुझे मार दूंगा और फिर तेरे विष से ही इस रोगी के अन्दर प्रविष्ट विष को मार दूंगा। तेरा विष तुझे ही वापस लौट जाएगा(अ. ५.१३.४)। इस कथन से पता चलता है कि साँप को मारकर उसके विष को सर्पदष्ट मनुष्य के शरीर में प्रवेश कराने से विष का प्रभाव नष्ट हो जाता है। यह विष से विष की चिकित्सा का उदाहरण है। जल में रहने वाले सर्प निर्विष हो जाते हैं। नदियों में नहाने और तैरने से भी सर्प काटे का विष धुल जाता है(अहीनां सर्वेषां विषं परा वहन्तु सिन्धवः अ. १०.४.२०) । अथर्ववेद काण्ड १०, सूक्त ४ में अनेक प्रकार के सर्पों और उनके विषों को नष्ट करने के उपायों और ओषधियों का उल्लेख है। तौदी, कन्या और घृताची नामों से प्रसिद्ध घृतकुमारी की जड़ को विष को नष्ट करने वाली कहा गया है (मं. २४) यहाँ यह भी कहा गया है कि यदि बिच्छू मिल जाए तो उसे हथौड़े से और यदि साँप मिल जाए तो उसे डंडे से मारना चाहिये(घनेन हन्मि वृश्चिकम् अहिं दण्डेनागतम्। अ. १०.४.९) ।अथर्ववेद में एक स्थान पर कहा गया है कि सोम का पान करने से विष सारहीन हो जाता है(अ. ४.६.१)। एक अन्य मन्त्र में कहा गया है कि वरण वृक्षों में से बहने वाली नदी का जल विष को नष्ट करने वाला होता है(अ. ४.७.१) । इसी सूक्त के मन्त्र ३ में कहा गया है कि भुने हुए जौ के सत्तू को दही में मिलाकर खाने से शरीर का विष दूर हो जाता है। मनुष्य मरता नहीं और बेहोश भी नहीं होता(अ. ४.७.३) ।
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