ज्वर-चिकित्सा (Antipyretic)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन(भाग 3)

Medical science in the Atharva Veda: A Study
(सूरज कृष्ण शास्त्री)

Medical science in atharvveda
Atharvveda's medical science

 

ज्वर-चिकित्सा (Antipyretic)

   अथर्ववेद में ज्वर के लिये तक्मन् शब्द का प्रयोग हुआ है। इसे मुख्य रोग माना गया है। मूँज आदि अधिक घासों वाले बह्निक, गन्धार आदि तथा अधिक वर्षा वाले अङ्ग, मगध आदि देशों में इसका जन्म बताया गया है। यहीं इसका निवास और विचरण स्थान है। इससे बार-बार प्रार्थना की गई है, कि इस स्थान को छोड़कर उन्हीं स्थानों पर चला जाए। गन्दगी को भी इसका कारण बताया गया है। इसी लिये इसे गन्दी रहने वाली दासी और कुलटा शूद्रा के पास जाकर उनपर प्रहार करने और उन्हें प्रकम्पित करने के लिये प्रेरित किया गया है। इसे तीसरे दिन आने वाला (तृतीयकम्), चौथे दिन आने वाला (वितृतीयम्) प्रतिदिन आने वाला (सदन्दिम् ). शरत्काल में आने वाला (शारदम् ), शीतकाल में आने वाला (शीतम्), ग्रीष्मकाल में आने वाला (ग्रैष्मम्) और वर्षाकाल में आने वाला (वार्षिकम्) बताया गया है। बलगम इसका भाई और खांसी इसकी बहन है। यह शीत और खांसी से रुलाने वाला और कंपकपी उत्पन्न करने वाला है। इसके हथियार बहुत तीक्ष्ण हैं, इसलिये उन्हें दूर रखने के लिये प्रार्थना की गई है। अग्नि, सवन किया हुआ लेम (सोमो ग्राथा), जल (वरुण) और यज्ञ (वेदिर् बहिः समिधः) इन सबसे प्रार्थना की गई है कि वे ज्वर को (तक्मानम्) परे कर देवें भाव यह है कि इन सब साधनों से इस रोग की चिकित्सा सम्भव है(अ. ५.२२।)

   एक अन्य सूक्त में कंपकपी के साथ आने वाले ज्वर (तक्मन्) का वर्णन है। जिस समय सूर्य का ताप अग्नि बनकर जलों को जलाता है, जिस समय (चातुर्मास्य में) धार्मिक जन देवों को नमस्कार करते हैं, उस समय (भाद्रपद में) तेरा परम जन्म होता है। उस समय तू ज्वाला और ईंधन को चाहने वाला अग्नि हो जाता है। तू हुड्छुडा (हुडुः) नाम से पुकारा जाता है और रोगी के शरीर को पीला और कृश बना देता है। वरुण का पुत्र अर्थात् जल से उत्पन्न होकर भी तू अत्यन्त दाहक हो जाता है। पहले शीत से कैंपाकर रुलाता है और फिर ताप से जलाता है। एक दिन छोड़कर आने वाले, दो दिन छोड़कर आने वाले और तीन दिन छोड़कर आने वाले को तुझको नमस्कार हो।. हे सर्वज्ञ तू हमें अपने पंजे से मुक्त कर दे(अ. १.२५ ।)

     ज्वर का नाश करने वाली, हिमालय से परे उत्पन्न होने वाली ओषधि का नाम कुष्ठ है। यह ज्वर को (तक्मानम्) और ज्वर की कारणभूत यातना देने वाली स्त्रीक्रिमियों (यातुधान्यः) को नष्ट कर देता है(ऐतु देवस् त्रायमाणः कुष्ठो हिमवतस् परि । तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश् च यातुधान्यः । अ. १९.३९.१) । जिस प्रकार चलने वालों में बैल और जंगली जानवरों में शेर उत्तम होता है, उसी प्रकार कुष्ठ ओषधियों में श्रेष्ठ है(उत्तमो अस्योषधीनाम् अनडवान् जगतामिव व्याघ्रः श्वपदामिव अ. १९.३९.४)। कुष्ठ सब रोगों की दवा है। यह सोम के संग रहती है। यह ज्वर और उसके कारणभूत सब स्वीक्रिमियों को नष्ट कर देती है(स कुष्टो विश्वभेषजः साकं सोमेन तिष्ठति । तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश् च यातुधान्यः । अ. १९.३९.५) । द्युलोक में देवों का निवासस्थान अश्वत्थ है, सूर्य ही अश्वत्थ है। वहाँ अमरत्व का स्पष्ट दर्शन होता है। द्युलोक में सुनहरे बन्धन वाली सुनहरी नाव चलती है। यह सुनहरी नाव सूर्य ही है। वहाँ अमरत्व के साक्षात् दर्शन होते हैं। हिमवान् का मूर्धन्य स्थान जहाँ से पुण्यवानों का अध: पतन नहीं होता, वहाँ भी अमरत्व के साक्षात् दर्शन होते हैं। इन्हीं स्थानों से कुष्ठ का जन्म हुआ है(अ. १९.३९.६-८) । कुष्ठ उत्तम नाम वाला है, इसके पिता का नाम भी उत्तम है। यह सब प्रकार के रोगों को नष्ट कर देता है और ज्वर को भी दुर्बल कर देता है। देवों के बल के समान बल वाली कुष्ठ ओषधि शिरोवेदना को, आँखों की पीडा को और शरीर के अन्य सब दोषों को निकाल बाहर कर देती है(शीर्षामयम् उपहत्याम् अक्ष्योस् तन्वो रपः । कुष्ठस् तत् सर्वं निष् करद् दैवं समह वृष्ण्यम् ॥ अ. ५.४.१०)

Antipyretic

    The word Takman has been used for fever in Atharvaveda. It is considered the main disease. It is said to be born in the countries like Bahnik, Gandhar etc. which have more grasses like Moonj and Anga, Magadha etc. which have more rainfall. This is its residence and wandering place. It has been requested repeatedly to leave this place and go to the same places. Dirtiness has also been said to be the reason for this. That is why it has been inspired to go to the dirty maids and adulterous Shudras and attack them and make them tremble. It is called the one coming on the third day (Tritiyakam), the one coming on the fourth day (Vitritiyam) and the one coming daily (Sadandim). Coming in the autumn season (Sharadam), coming in the winter season (Sheetam), coming in the summer season (Grishmam) and coming in the rainy season (Varshikam). Phlegm is its brother and cough is its sister. It causes crying and shivering due to cold and cough. Its weapons are very sharp, hence prayers have been made to keep them away. Fire, burnt lamb (somo gratha), water (varuna) and yagya (vedic bahih samidha) have all been prayed to drive away the fever (takmanam), meaning that the disease can be cured by all these means. It is possible (A. 5.22.)

Another hymn describes fever (takman) accompanied by shivering. At that time (in Chaturmasya) when the heat of the sun turns into fire and burns the waters, at that time (in Chaturmasya) religious people salute the gods, at that time (in Bhadrapada) you take supreme birth. At that time you become a fire desiring flame and fuel. You are called by the name Hudhudha (Hudhu) and makes the patient's body pale and emaciated. Son of Varun, that is, despite being born from water, you become very hot. First it makes you cry with cold and then it burns you with heat. Salutations to you to the one who leaves one day and returns, the one who leaves two days and the one who leaves three days. O omniscient one, free us from your clutches (A. 1.25).

      The name of the medicine that destroys fever and is produced beyond the Himalayas is Leprosy. It destroys the fever (takmanam) and the female worms (yatudhanyah) which cause the pain of fever (aitu devas trayamanah kustho himvatas pari. takmanam sarvam nashay sarvascha yatudhanyah. A. 19.39.1). Just as the bull is the best among the walkers and the lion among the wild animals, in the same way leprosy is the best among the medicines (uttamo asyosadhinam anadvaan jagatamiv vyaghraah shvapadamiv A. 19.39.4). Leprosy is the medicine for all diseases. She lives with Soma. It destroys fever and all the diseases caused by it (Sa Kushto Vishvabheshajah Sakam Somen Tisthati. Takmanam Sarvam Nashay Sarvash Cha Yatudhaanyah. A. 19.39.5). The abode of the gods in the celestial world is Ashvattha, the Sun itself is Ashvattha. There is a clear vision of immortality there. A golden boat with golden ties floats in heaven. This golden boat is the Sun itself. There one can see immortality in person. The sacred place of Himavan, from where virtuous people do not degenerate, is also the place where immortality can be seen in person. It is from these places that leprosy is born (A. 19.39.6-8). Leprosy has a good name, his father's name is also good. It destroys all types of diseases and also weakens fever. The medicine for leprosy, which is as powerful as the power of Gods, removes pain in the head, pain in the eyes and all the other defects of the body (Shirshamayam Upahatyam Akshyos Tanvo Rapah. Kushtash Tat Sarvam Nishkard Daivam Samah Vrishnyam. A. 5.4. 10)

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