अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन(भाग 10) Medical science in the Atharva Veda: A Study(part 10)
अथर्ववेद का चिकित्साशास्त्र : एक अध्ययन
Atharvveda's medical science |
कटे, जले और टूटे की चिकित्सा
अथर्ववेद में चोट, घाव आदि के लिये लाख (लाक्षा) का विशेष महत्त्व बताया गया है। यह श्यामल लाल रंग की होती है। इसका एक नाम सिलाची(घावों को भरने वाली) भी है। इसे जयन्ती (रोगों को जीतने वाली) भी कहा गया है। लाख उत्तम पिलखन, पीपल, खैर, कीकर, उत्तम बढ़, ढाक आदि वृक्षों से निर्यास रूप में निकलती है और इसे अरुन्धति (घावों को भरने वाली) कहकर पुकारा गया है(भद्रात् प्लक्षान् निस् तिष्ठस्यश्वत्थात् खदिराद् धवात्। भद्रान् न्यग्रोधात् पर्णात् सा न एह्यरुन्धति ।। अ. ५.५.५) । एक मन्त्र में कहा गया है - हे लाक्षे। जो घाव डंडे से, बाण से, अथवा अग्नि से जलने से हो जाता है, उसका तू निराकरण करने वाली है(यद् दण्डेन यद् इष्वा यद् वारुर् हरसा कृतम् । तस्य त्वम् असि निष्कृतिः सेमं निष्कृधि पूरुषम्। अ. ५.५.४) । लाक्षा संजीवनी है। यह मनुष्य को रोगों से बचाती है। इसका पान करने वाला जन दीर्घजीवी हो जाता है(यस् त्वा पिबति जीवति त्रायसे पुरुषं त्वम् अ. ५.५.२) ॥
अथर्ववेद में युद्ध के अन्दर लगी हुई चोटों और शस्त्रों से कटकर बने हुए घावों के लिये पाटा ओषधि को उत्तम बताया गया है। एक मन्त्र में कहा है- हे पाटा नामक औषधे ! इन्द्र ने असुरों का विनाश करने के लिये तेरा खूब सेवन किया। हे ओषधे जो रोग मनुष्यों को खा जाते हैं, उनको तू अपने सेवन से शक्तिहीन करके मार डाल(पाटाम् इन्द्रो व्याश्नाद् असुरेभ्यः स्तरीतवे। प्राशं प्रतिप्राशो जह्यरसान् कृण्वोषधे ।। अ. २.२७.४१) । एक अन्य मन्त्र में इस पाटा ओषधि को रोगों को रुलाने वाला (रुद्र), रोगनिवारक औषधों वाला (जलाषभेषज), नीले पुष्प रूपी मुकुटों को धारण करने वाला (नीलशिखण्ड), और रोगनिवारण रूपी शुभ कर्मों को करने वाला (कर्मकृत्) बताया गया है(रुद्र जलाषभेषज नीलशिखण्ड कर्मकृत्। अ. २.२७.६) । टूटी हड्डियों को जोड़ने और घावों को भरने वाली, जले और कटे को ठीक करने वाली रोहणी औषधि का उत्तम वर्णन काण्ड ४ के सूक्त १२ में हुआ है। इस औषधि को भद्रा भी कहा गया है। इसका पदानुक्रम अनुवाद नीचे दिया जा रहा है -
अंकुरित करने वाली है तू भरने वाली,
हड्डी को, टूटी हुई को, जोड़ने वाली।
भर दे तू इसको, हे घाव को भरने वाली ॥। १॥
जो तेरा हिंसित हुआ है, जो तेरा जल गया है,
है पिस गया (जो), तेरे शरीर में।
विधाता उसको, भद्रा से (इससे), फिर से,
जोड़ देवे, पोर के साथ पोर को ।। २।।
जुड़ तेरा मज्जा (मज्जा से) जाए,
संयुक्त हो जाए तेरा, पोर के साथ पोर।
जुड़ जाए तेरा, मांस का (भाग) फटा हुआ,
सम्यक हड्डी भी भर जाए (तेरी) ।। ३।।
मज्जा मज्जा के साथ, संयुक्त हो जाए,
धर्म के साथ, धर्म जुड़ जाए।
रक्त तेरा (बढ़ जाए), अस्थि (भी) बढ़ जाए,
मांस तेरा, मांस के साथ जुड़ जाए।। ४।।
लोम को लोम के साथ मिला दे तू,
त्वचा के साथ जोड़ दे तू त्वचा को ।
रक्त सेवा की (बेटी), अंकुरित हो जाए,
कटे हुए को जोड़ दे तू, हे औषधे ।। ५ ।।
वह उठ खड़ा हो तू, आगे बढ़, दौड़ पड़,
रथ (हो जा) सुन्दर पहियों वाला,
सुन्दर नेमियों वाला, सुन्दर नाभि वाला।
खड़ा हो जा तू सीधा ॥ ६ ॥
यदि गढ़े में गिरकर, हिंसित हुआ है,
और यदि पत्थर ने, फेंके हुए ने, तोड़ दिया है।
रथकार, रथ के अंगों को जिस प्रकार,
जोड़ देवे (रोहणी), पोर के साथ पोर को।। ७।।
रक्त के स्राव को रोकने में सब ओषधियों में श्रेष्ठ, और रोगनिवारण करने वालियों में विशिष्ट ओषधि विषाणका नामक को बताया गया है(श्रेष्ठम् आस्रावभेषजं वसिष्ठं रोगनाशनम् अ. ६.४४.२ ।। विषाणका नाम... ॥ ३॥) । चीपुद्रु नामक वृक्ष से बने औषध से फोड़ा, फुंसी, छाजन, रक्तस्राव यक्ष्म आदि सब ठीक हो जाते हैं(अ. ६.१२७.१-३) । चीपुदु चीड़ का अपभ्रंश रूप प्रतीत होता है। अथर्ववेदकाची भावप्रकाशनिघण्टु का चौड़ वृक्ष हो सकता है, जिसे अन्य रोगों के साथ व्रण आदि को भी ठीक करने वाला कहा गया है।
treatment of cuts, burns and fractures
In Atharvaveda, the special importance of lac (Laksha) for injuries, wounds etc. has been mentioned. It is dark red in colour. Its other name is Silachi (healing wounds). It has also been called Jayanti (one who conquers diseases). Lac emerges spontaneously from trees like Pilkhan, Peepal, Khair, Kikar, Uttam Badh, Dhak etc. and it has been called Arundhati (healing of wounds) (Bhadrat Plakshan Nististhasyashvatthat Khadirad Dhawat. Bhadraan Nyagrodhaat Parnat Sa Na Ehyarundhati. A. 5.5.5). It is said in a mantra – O Lakshe. The wound which is caused by stick, arrow or burning by fire, you are the one who will cure it (Yad Danden Yad Ishva Yad Varur Harsa Kritam. Tasya Tvam Asi NishkritiH Semam Nishkridhi Purusham. A. 5.5.4). Laksha is Sanjeevani. It protects humans from diseases. The person who drinks it becomes long-lived (Yastva Pibati Jeevati Trayase Purusha Tvam A. 5.5.2) ॥
In Atharvaveda, Pata medicine has been described as best for injuries sustained during war and wounds caused by cuts made by weapons. It is said in a mantra – O medicines called Pata! Indra consumed a lot of you to destroy the demons. O Oshadha, the diseases that consume human beings, you make them powerless by your consumption and kill them (Patam Indro Vyashnad Asurebhyah Stratitave. Prashan Pratiprasho Jahyarsaan Krinvoshadhe. A. 2.27.41). In another mantra, this Pata Oshadhi has been described as the one who makes people cry (Rudra), has disease-curing medicines (Jalashbheshaj), wears crowns in the form of blue flowers (Neelashikhand), and performs auspicious deeds in the form of cure (Karmakrit). Rudra Jalashabheshaj Neelashikhand Karmakrit (A. 2.27.6). Rohani medicine, which joins broken bones, heals wounds, burns and cuts, is best described in Sukta 12 of Kand 4. This medicine is also called Bhadra. Its hierarchical translation is given below -
You are the one who will sprout, you are the one who will fill,
The one who joins the broken bones.
You heal this, O healer of wounds. 1॥
The one who has been violated by you, the one who has been burnt by you,
Has been crushed (which), in your body.
Creator to him, from Bhadra (from this), again,
Let's join, knuckle with knuckle. 2..
Connect with your marrow,
May you become united, knuckle with knuckle.
Let your torn (part) of flesh join,
May even your bones be healed. 3.
May the marrow become united with the marrow,
Religion should be connected with religion.
May your blood (increase), your bones (also) increase,
Let your flesh join with the flesh. 4.
You mix the loam with the loam,
You join the skin with the skin.
(daughter) of blood service, may it sprout,
You join the broken ones, O medicines. 5..
You stand up, move forward, run,
(Become) a chariot with beautiful wheels,
One with beautiful lips, beautiful navel.
Stand up straight. 6॥
If one has become violent after falling into a pit,
And if the stone thrown has broken it.
The charioteer, as the chariot's parts,
Join them (Rohani), knuckles with knuckles. 7.
A medicine named Vishānaka has been said to be the best among all the medicines in stopping the bleeding, and a special medicine among those that cures the diseases (Shreshtham Asraavbheshjan Vasistham Rognashanam A. 6.44.2. Name of Vishānaka… ॥ 3॥). Medicine made from a tree called Chipudru cures boils, pimples, scabies, bleeding, tuberculosis etc. (A. 6.127.1-3). Chipudu appears to be a corrupted form of pine. Atharva Vedakachi could be the broad tree of Bhavaprakashnighantu, which is said to cure ulcers etc. along with other diseases.
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