History of the name of India, भारत नाम का इतिहास, भारत का नामकरण, भारत का नाम भारत क्यों पड़ा,
भारत नाम का इतिहास
(History of the name of India)
देश का नाम भारत है कि हिंदुस्तान। इंडिया है कि आर्यावर्त या फिर जम्बूद्वीप। ये हमेशा से बहस का मुद्दा रहा है। फिलहाल बहस सिर्फ दो नाम के ईर्द गिर्द केंद्रित हो गई है। ये वो दो नाम हैं इंडिया और भारत। अभी तक तो हमें यही पता था कि देश का नाम भारत है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद इंडिया होता है। यही भारत के संविधान में भी स्वीकृत है।
भारत के संविधान की जो प्रस्तावना है, हिंदी में उसकी शुरुआत होती है हम भारत के लोग से, जबकि अंग्रेजी में जो प्रस्तावना है, उसकी शुरुआत होती है, वी द पीपल ऑफ इंडिया से। नाम तो नाम होता है। वो हिंदी या अंग्रेजी कैसे हो सकता है। इसी वजह से पूरी बहस के केंद्र में जो नाम है, वो है भारत, जिसके तार जुड़ते हैं उसी सनातन धर्म से जो एक अलग ही वजह से बहस का मुद्दा बना हुआ है। उस बहस को फिलहाल छोड़ते हैं और कोशिश करते हैं भारत शब्द की उत्पत्ति को समझने की, जिसका जिक्र सनातन धर्म के पुराणों तक में भी हुआ है और कई बार हुआ है।
भारत का नाम भारत क्यों है, इसके पीछे कई कहानियां हैं। इनमें भी दो कहानियां खास तौर पर सुनाई जाती हैं। पहली कहानी तो ये है कि इस देश का नाम ऋषभदेव के बेटे भरत के नाम पर भारत पड़ा। इसका जिक्र मिलता है विष्णु पुराण में। विष्णु पुराण के अंश दो के अध्याय एक के श्लोक संख्या 28 से 31 तक में इस बात का जिक्र है कि देश का नाम भारत कैसे पड़ा।
32वां श्लोक कहता है कि...
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते।
भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रातिष्ठता वनम्।।
यानी कि पिता ऋषभदेव ने वन जाते समय अपना राज्य भरतजी को दे दिया था। तब से यह इस लोक में भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
लिंग पुराण में भी श्लोक है। वो कहता है...
सोभिचिन्तयाथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सल:
ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय महोरगान्।
हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।
यानी अपने इन्द्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ा।
भागवत पुराण के अध्याय 4 में श्लोक है, लिखा है...
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण
आसीद् येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति।
यानी कि भगवान ऋषभ को अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में 100 पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोग इसे भारतवर्ष कहने लगे।
इसके अलावा दूसरी कहानी ये है कि राजा दुष्यंत और शकुंतला के बेटे का नाम भरत था, जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।
महाभारत के आदिपर्व में दूसरे अध्याय के श्लोक संख्या 96 में लिखा है —
शकुन्तलायां दुष्यन्ताद् भरतश्चापि जज्ञिवान्।
यस्य लोकेषु नाम्नेदं प्रथितं भारतं कुलम् ।।
यानी कि परम तपस्वी महर्षि कण्व के आश्रम में दुष्यंत के द्वारा शकुंतला के गर्भ से भरत के जन्म की कथा इसी में है। उन्हीं महात्मा भरत के नाम से यह भरतवंश संसार में प्रसिद्ध हुआ, लेकिन अब इन कहानियों से इतर देखते हैं कि आखिर पुराणों में भारत का जिक्र किन संदर्भों में हुआ है और आखिर वो कौन कौन से श्लोक हैं, जो भारत शब्द की व्याख्या करते हुए दिखते हैं।
विष्णु पुराण का एक श्लोक है, जो भारत की सीमाओं को प्रदर्शित करता है। विष्णु पुराण के दूसरे खंड के तीसरे अध्याय का पहला श्लोक कहता है—
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।
यानि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत कहते हैं और इस भूभाग में रहने वाले लोग इस देश की संतान भारती हैं।
विष्णु पुराण के ही दूसरे खंड के तीसरे अध्याय का 24वां श्लोक कहता है—
गायन्ति देवा: किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरूषा सुरत्वात् ।।
यानी कि देवता निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के बीच में बसे भारत में जन्म लिया है, वो पुरुष हम देवताओं से भी ज्यादा धन्य हैं।
कूर्मपुराण के पूर्वभाग के अध्याय 47 के श्लोक 21 में लिखा है...
भारते तु स्त्रियः पुंसो नानावर्णाः प्रकीर्तिताः।
नानादेवार्चने युक्ता नानाकर्माणि कुर्वते॥
यानी कि भारत के स्त्री और पुरुष अनेक वर्ण के बताए गए हैं। ये विविध प्रकार के देवताओं की आराधना में लगे रहते हैं और अनेक कर्मों को करते हैं। इसके अलावा महाभारत के भीष्म पर्व के नौवें अध्याय में धृतराष्ट्र और संजय के बीच की जो बातचीत है, उसका केंद्र भारत ही है। इसके अलावा भी तमाम और पुराणों जैसे कि स्कंद पुराण, वायु पुराण, ब्रह्मांड पुराण, अग्नि पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी भारत के नाम का जिक्र है। बाकी तो जब भी हिंदू धर्म से जुड़ा कोई भी अनुष्ठान होता है तो उस अनुष्ठान की शुरुआत से पहले अनुष्ठान से जुड़ा एक संकल्प करना पड़ता है। उस संकल्प में भारत के तमाम नाम हैं, लेकिन उन नामों में हिंदुस्तान नहीं है।
संकल्प इस प्रकार कहा जाता है —
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये पर्राधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतर्वषे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते।
इसके बाद क्षेत्र का नाम, विक्रम संवत, महीने का नाम, पक्ष का नाम, तिथि और तमाम दूसरी चीजों का जिक्र किया जाता है, लेकिन इस संकल्प में देश के तमाम नामों जैसे जम्बूद्वीप और आर्यावर्त के साथ ही भारतवर्ष और भरतखंड भी समाहित है।
कुल मिलाकर तथ्य तो यही है कि सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथ पुराणों में भी भारत का जिक्र है और महाभारत में भी। इसलिए ये शब्द तो सनातन की ही उपज है।
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