क्या अर्जुन ने अपनी बहन से विवाह किया था ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

 

Krishna and Arjun in Mahabharat battle
Krishna and Arjun in Mahabharat battle

  अर्जुन ने अपनी ममेरी बहन सुभद्रा से कैसे विवाह किया ? क्या यह धर्मसम्मत है ?

 इसके उत्तर हेतु आपको दो दृष्टिकोण समझने होंगे। वसुदेव जी की बहन, जिसका नाम पृथा था, उसे अत्यन्त बाल्यकाल में ही राजा कुन्तिभोज ने गोद ले लिया था। वही पृथा बाद में कुन्ती के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिनके तीसरे पुत्र अर्जुन थे। पृथा और कुन्ती दोनों नाम प्रसिद्ध हैं, अर्जुन को भी पार्थ एवं कौन्तेय कहा गया है। ऐसे तो आचार्य कुमारिल भट्ट ने तन्त्रवार्तिक में इस प्रकार के सन्दिग्ध प्रकरणों का पर्याप्त समाधान कर दिया है तथा श्रीमद्भागवत के रासपञ्चाध्यायी में आये शुकवाक्य –

ईश्वराणां वचः सत्यं तथैवाचरितं क्वचित्।

तेषां यत्स्ववचोयुक्तं बुद्धिमांस्तत्समाचारेत्॥

  ईश्वरीय क्षमता वाले तत्त्वों के कुछ आचरण लोकदृष्टि से गर्हित होने पर भी ‘वह्निः सर्वभुजो यथा’ एवं ‘यथा रुद्रोऽब्धिजं विषम्’ आदि उक्तियों के आधार पर तत्सापेक्ष स्वीकृत किये जाते हैं। किन्तु जब बाल्यकाल में ही पृथा को राजा कुन्तिभोज ने गोद ले लिया था तो वृष्णिकुल से उनका दैहिक-धार्मिक सम्बन्ध समाप्त हो गया था एवं उनका कुलगोत्रादि कुन्तिभोज के अनुसार हो गया। सामान्य सौहार्द्र होना अलग बात है किन्तु धार्मिक आपत्ति का लोप हो गया। दूसरी बात, देवी शाण्डिलिनी भगवती लक्ष्मी के शाप से अप्सरायोनि में होते हुए वसुदेव जी की पुत्री के रूप में जन्म लेकर तुरन्त ही मृत्यु को प्राप्त होकर, पुनः वसुदेव जी की ही सुप्रभा नाम की पत्नी के गर्भ से पुत्री के रूप में घोड़े के समान मुखाकृति के साथ जन्म लेती हैं, यह बात हरिवंश पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं स्कन्दपुराण आदि के अध्ययन से स्पष्ट होती है। पूरा कथानक बताने से प्रसङ्गविस्तार का भय है, जिज्ञासु सम्बन्धित ग्रन्थों में प्रकरण देख सकते हैं।

तृतीया सुप्रभा नाम वसुदेवप्रिया च या।

तस्यां सा माधवी जज्ञे अश्ववक्त्रस्वरूपधृक्॥

एवं सा यौवनोपेता तथा दुःखसमन्विता।

न कश्चिद्वरयामास वाजिवक्त्रां विलोक्य ताम्॥

विष्णुरुवाच

एषा मे भगिनी देव जाताऽश्ववदना किल।

तव प्रसादात्सद्वक्त्रा भूयादेतन्ममेप्सितम्॥

श्रीब्रह्मोवाच

एषा शुभानना साध्वी मत्प्रसादाद्भविष्यति।

सुभद्रा नाम विख्याता वीरसूः पतिवल्लभा॥

(स्कन्दपुराण, नागरखण्ड, अध्याय – ८४)

  उपर्युक्त श्लोकों में मैंने कथानक का सार सङ्केत किया है कि कैसे सुभद्रा देवी को लक्ष्मीशापजन्य अश्वमुखी दोष से मुक्त कराने हेतु बलदेवजी की सम्मति से भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्रह्मदेव की तपस्या की और ब्रह्मदेव ने वरदान दिया कि सुभद्रा देवी शुभानना हो जाएंगी तथा अपने पति को प्यारी और वीर सन्तान को जन्म देने वाली भी होंगी। इसी प्रसङ्ग में आगे उल्लेख है कि ब्रह्मदेव ने कहा कि जो इस क्षेत्र में अश्वमुखी रूप से ही उनकी अर्चना करेगा, वही सुभद्रा का पति होगा, जो कि बाद में अर्जुन बने।

अब लोकोत्तर दृष्टिकोण पर चर्चा करते हैं। धृतराष्ट्र महाराज महाभारत के प्रारम्भ में ही कहते हैं –

यदाऽश्रौषं नरनारायणौ तौ

कृष्णार्जुनौ वदतो नारदस्य।

अहं द्रष्टा ब्रह्मलोके च सम्यक्

तदा नाशंसे विजयाय सञ्जय॥

(महाभारत, आदिपर्व, प्रथम अध्याय)

हे संजय ! मैंने जब नारद के मुख से सुना कि नर और नारायण ही अर्जुन एवं कृष्ण के रूप में अवतरित हुए हैं, तभी मैंने कौरवों के विजय की आशा छोड़ दी थी।

तथा नारायणो राजन्नरश्च धर्मजावुभौ।

जातौ कृष्णार्जुनौ काममंशौ नारायणस्य तौ॥

(श्रीमद्देवीभागवतपुराण, स्कन्ध – ०६, अध्याय – १०)

ब्रह्मणावतारितौ विप्रा नरनारायणावुभौ।

कृष्णार्जुनौ तदा मर्त्ये द्वापरान्ते द्विजोत्तमाः॥

(स्कन्दपुराण, नागरखण्ड, अध्याय – १५२)

  इत्यादि प्रमाणों से स्पष्ट है कि धर्मदेव एवं मूर्तिदेवी के संयोग से जो नरनारायण अवतार हुआ था, उन्हीं भगवान् नारायण एवं नर के अवतार श्रीकृष्ण एवं अर्जुन हैं।

श्वेताश्वतरोपनिषत् कहते हैं – 

भोक्ता भोग्यं प्रेरितारञ्च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत् (ब्रह्म एतत्)॥ 

भोक्ता, भोग्य, एवं प्रेरक भाव से त्रिविध ब्रह्म समझना चाहिए। सरलतम भाषा में इन्हें जीव, माया और ब्रह्म अथवा पशु, पाश एवं पशुपति भी कह सकते हैं। 

श्वेताश्वतरोपनिषत् छठे अध्याय में यह भी कहते हैं – 

परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च॥ 

 ज्ञानशक्ति, बलशक्ति एवं क्रियाशक्ति उसमें शाश्वत रूप से स्वभावतः रहती हैं। इसका समर्थन अन्य ग्रन्थ भी करते हैं। सीतोपनिषत् में भगवान् ब्रह्मदेव भी श्रीसीताजी को इनकी निमित्तभूता बताते हैं –

इच्छाज्ञानक्रियाशक्तित्रयं यद्भावसाधनम्।

तद्ब्रह्मसत्तासामान्यं सीतातत्त्वमुपास्महे॥

(सीतोपनिषत्)

वैष्णव, शाक्त, शैव आदि सभी इस विषय में एकमत हैं –

ततः परापरा शक्तिः परमा त्वं हि गीयसे।

इच्छाशक्तिः क्रियाशक्तिर्ज्ञानशक्तिस्त्रिशक्तिदा॥

(श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण, स्कन्ध – १२, अध्याय – ०५, श्लोक – १६)

एतामेव परां शक्तिं श्वेताश्वतरशाखिनः॥

स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया चेत्यस्तुवन्मुदा।

ज्ञानक्रियेच्छारूपं हि शम्भोर्दृष्टित्रयं विदुः॥

(शिवपुराण, कैलाससंहिता, अध्याय १६)

  श्वेताश्वतर श्रुति में वर्णित यह शक्तित्रयी ही भगवान् शिव के तीनों नेत्रों के रूप में दृष्टिगत होते हैं। मङ्गलमय ब्रह्म में यह शक्तियाँ अनन्त हैं, इनका प्रयोग करने पर यह समाप्त नहीं होती –

ज्ञानशक्तिः क्रियाशक्तिः कर्तृताऽकर्तृतापि च ।

इत्यादिकानां शक्तीनामन्तो नास्ति शिवात्मनः॥

(योगवासिष्ठ महारामायण, निर्वाणप्रकरण-पूर्वार्द्ध, सर्ग – ३७, श्लोक – १६)

इसमें भगवान् नारायण की जो क्रियाशक्ति हैं, वे पराविद्या की स्वामिनी, चिन्मयी और शुद्धा हैं।

साक्षाद्विष्णोः क्रियाशक्तिः शुद्धसंविन्मयी परा।

(अहिर्बुध्न्य संहिता, अध्याय – १६)

 और वह क्रियाशक्ति जब ज्ञानबलवीर्यादि षडैश्वर्य से युक्त होकर साकार होती हैं तो अग्निवर्णा प्रदीप्ता होती है।

या सा षाड्‌गुण्यतेजःस्था क्रियाशक्तिः प्रकाशिता।

आग्नेयं रूपमाश्रित्य सा धत्ते पौरुषं वपुः॥

(लक्ष्मीतन्त्र, अध्याय – ३१, प्रथम श्लोक)

 शैवमत में आचार्य नकुलीश पाशुपत सूत्र – ‘क्रियाशक्तिः मनोजवित्वाद्या’ के आश्रय से कहते हैं – एषा क्रियाशक्तिः। अस्वतन्त्रं सर्वं कार्यम्। मन की इच्छाशक्ति के वशीभूत होने से क्रियाशक्ति में स्वातन्त्र्य नहीं है।

  अब हम पूर्व प्रसङ्ग पर लौटते हैं। स्वातन्त्र्य ब्रह्म का धर्म है और परतन्त्रता जीव का लक्षण। यद्यपि एक ही चेतन कर्ता-भोक्ता भाव से जीव, कर्ता-अभोक्ता भाव से आत्मा एवं अकर्ता-अभोक्ता भाव से ब्रह्मसंज्ञक हो जाता है किन्तु विशेषतः प्रतिबिम्बित जीव परतन्त्रता वाली क्रियाशक्ति से युक्त रहता है।

  भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवती राधिका को बताया है कि कैसे वे सर्वव्यापी होकर भी निर्लिप्त और अकर्ता बने रहते हैं एवं उनका प्रतिबिम्बित जीव कर्ताभाव एवं भोक्ताभाव से लिप्त रहता है।

अहं सर्वान्तरात्मा च निर्लिप्तः सर्वकर्मसु।

विद्यमानश्च सर्वेषु सर्वत्रादृष्ट एव च॥

वायुश्चरति सर्वत्र यथैव सर्ववस्तुषु।

न च लिप्तस्तथैवाहं साक्षी च सर्वकर्मणाम्॥

जीवो मत्प्रतिबिम्बश्च सर्वत्र सर्वजीविषु।

भोक्ता शुभाशुभानां च कर्ता च कर्मणां सदा॥

(ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड, अध्याय – ६७)

  अब ब्रह्म/नारायण – श्रीकृष्ण एवं जीव/नर – अर्जुन की बात करते हैं। पूर्व में कथित श्वेताश्वतरोपनिषत् की त्रिब्रह्म एवं त्रिशक्ति की श्रुतियों के आधार पर विवक्षा करने से भगवान् नारायण/जगन्नाथजी ब्रह्म की ज्ञानशक्ति के, भगवान् बलराम/बलभद्र ब्रह्म की बलशक्ति के तथा भगवती सुभद्रा ब्रह्म की क्रियाशक्ति के सगुणावतार सिद्ध होते हैं। अर्जुन का जीवत्व सिद्ध है ही।

  साथ ही ब्रह्मसूत्र के कर्त्रधिकरण के अन्तर्गत “कर्ता शास्त्रार्थवत्त्वात्। उपादानाद्विहारोपदेशाच्च। व्यपदेशाच्च क्रियायां न चेन्निर्देशविपर्ययः। उपलब्धिवदनियमः। शक्तिविपर्ययात्” आदि सूत्रों के भाष्य में भगवान् श्रीशङ्कराचार्य “तद्गुणसारत्वाधिकारेणैवापरोऽपि जीवधर्मः प्रपञ्च्यते। कर्ता चायं जीवः स्यात्कस्मात् शास्त्रार्थवत्त्वात् …. इतश्च जीवस्य कर्तृत्वं यदस्य लौकिकीषु वैदिकीषु च क्रियासु कर्तृत्वं व्यपदिशति शास्त्रं विज्ञानं यज्ञं तनुते कर्माणि तनुतेऽपि चेति … इतश्च विज्ञानव्यतिरिक्तो जीवः कर्ता भवितुमर्हति” आदि वचनों के माध्यम से जीव के कर्तृत्व की मीमांसा प्रस्तुत करते हैं।

 ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्णवाक्य से ब्रह्म का अकर्तृत्व एवं जीव का कर्तृत्व सिद्ध हो ही गया है। योगवाशिष्ठ के निर्वाणप्रकरण के प्रमाण से क्रियाशक्ति का अकर्तृत्वयुक्त चेतन (ब्रह्म) एवं कर्तृत्वयुक्त चेतन (जीव) दोनों में स्थित होना सिद्ध है। पाशुपतसूत्र के प्रमाण से कर्ता जीव की क्रियाशक्ति परतन्त्र ही है। तो इस वेदान्तागम मीमांसा से कर्ता जीव अर्जुन की नैसर्गिक सहधर्मिणी, क्रियाशक्ति की सगुणावतारिणी सुभद्रा जी का होना अपेक्षित है। प्रत्येक सगुणावतार अपनी नैसर्गिक सहधर्मिणी के साथ ही पूर्ण होता है। जब वह शिव होगा तो साथ में पार्वती ही होगी। जब वह नारायण होगा तो साथ में लक्ष्मी ही होगी। जब वह सविता होगा तो साथ में सावित्री होगी ही। ऐसे ही जब वह अर्जुन होगा तो साथ में सुभद्रा होगी ही। कोई भी तत्त्व अपनी शक्ति के बिना नहीं रह सकता। जैसा कि भगवान् अहिर्बुध्न्य रुद्र देवर्षि नारद को बताते हैं –

नैव शक्त्या विना कश्चिच्छक्तिमानस्ति कारणम्।

न च शक्तिमता शक्तिर्विनैका व्यवतिष्ठते॥

(अहिर्बुध्न्यसंहिता, अध्याय – ०६)

  अतः लोकदृष्ट्या एवं लोकोत्तरदृष्ट्या भी नरावतार कर्ता जीव अर्जुन का क्रियाशक्तिस्वरूपिणी सुभद्रा जी से विवाहित होना समीचीन है, ऐसा समझना चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top