भगवान श्री कृष्ण की मालिन पर कृपा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0
Krishna Bhagwan
Krishna Bhagwan


  मथुरा से गोकुल में सुखिया नाम की मालिन फूल फल बेचने आया करती थी। जब वह गोकुल में गोपियों के घर जाया करती तो हमेशा गोपियों से कन्हैया के बारे में सुना करती थी, गोपिया कहती नन्दरानी माता यशोदा जी अपनी मधुर स्वर गाकर अपने लाला कन्हैया को आँगन में नचा रही थी। कन्हैया के सुन्दर-सुन्दर कोमल चरणों के नूपुर के स्वर इतने मधुर थे, कि कन्हैया के लालिमा को ही देखने का मन करता है। मालिन को भी कन्हैया के बारे मे सुन मन को एक सुन्दर अनुभूति महसूस होने लगी थी। जब गोपिया मालिन को कन्हैया की बातें नहीं सुनते तो उसे अच्छा नही लगता था। मालिन के मन में भी कन्हैया प्रेम जागृत होने लग गया था।

  वह मालिन गोपियों से कहती है, गोपियों तुम कहती हो कृष्ण के भीतर अपार प्रेम है, तो मुझे आज तक क्यों कृष्ण के दर्शन नहीं हुए। गोपियों मै भी कृष्ण के दर्शन करना चाहती हूॅ। मुझे भी कोई ऐसा उपाय बताओं जिससें मुझे भी कन्हैया के दर्शन हो सके। गोपिया कहती है अरे मालिन यदि तुम्हें लाला के दर्शन करने है तो तुम्हें भी कोई संकल्प लेना होगा। गोपियों की बात सुन मालिन कहती है - मै तो बहुत गरीब हूँ। मैं क्या संकल्प करू यदि कोई संकल्प है जो मैं पूरा सकू तो ऐसा कोई संकल्प बताओं।  

  गोपिया मालिन से कहती है तुम प्रतिदिन नंदबाबा के द्वारा पर खडे रहकर कान्हा की प्रतीक्षा करती हो। उससे अच्छा तुम नंदभवन की एक सौ आठ प्रदक्षिणा का संकल्प ले लों। जैसे ही तुम अपनी प्रदक्षिणा पूरी करोगी। तुम्हें अवश्य कन्हैया के दर्शन हो जायेंगे। और प्रदक्षिणा करते हुए कन्हैया से प्रार्थना करो कि मुझे भी दर्शन दे।।

  गोपियों के कहे अनुसार मालिन नंदभवन की एक सौ आठ प्रदक्षिणा की संकल्प ली करती है, और प्रदक्षिणा करते कन्हैया का स्मरण करने लगी - हे कन्हैया मुझे दर्शन दो। इस तरह उस मालिन का मन धीरे-धीरे कृष्ण प्रेम जागृत होने लगा। भगवान कन्हैया के दर्शन के लिए उस मालिन के मन में एक भाव पैदा होने लगा। 

  वैसे तो मालिन रोज फल-फूल बेचकर मथुरा चली जाती थी। लेकिन उसका मन हर पल नंदभवन के तरफ ही लगा रहता और कान्हा का ही स्मरण करते रहती। कान्हा के दर्शन के लिए उसका मन व्याकुल होने लगा। अब तो उसके मन में एक ही आस रह गयी थी । मन की तड़प इतनी बढ गई कि उस मालिन ने यह प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक कन्हैया के दर्शन नहीं होंगे। तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी। और प्रण कर फल की टोकरी उठाकर कन्हैया के छवि का ध्यान करते हुए गोकुल की ओर चल पड़ी। जैसे ही मालिन नंदभवन पहुंची ओर जोर-जोर से फल ले लो री फल कहने लगी। मालिन की आवाज सुन कान्हा ने सोचा इस मालिन की दृढ़ भक्ति ने मुझे आज इसे दर्शन देने हेतु विवश कर दिया है। भगवान कृष्ण उस मालिन के उपासना और कर्म का फल देने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथों में अनाज के कुछ दाने ले घर से बाहर आये। भगवान का स्वरूप पीताम्बर पहने, कमर में स्वर्ण करधन, बाजूबन्द पहन, कानों में मकराकृति कुण्डल धारण कर, माथे में तिलक लगा मोर मुकुट धारण कर कन्हैया छोटी सी बासुरी धर छमछम करके दौड घर से बाहर आये। कन्हैया ने अपनी हाथों में रखे अनाज को उस मालिन के टोकरी में डाल दिये। और कन्हैया मालिन से फल लेने को अधीर थे । मालिन का मन कान्हा को देख प्रेम से ओत-प्रोत हो गया। 

  मालिन की आठ पुत्रियां थीं, पर पुत्र एक भी ना था। कान्हा को देख उसके मन में पुत्र भाव जागने लगा था, और मन ही मन मे सोचने लगी कि मेरा भी ऐसा पुत्र होता तो कितना अच्छा होता। माता यशोदा जब कन्हैया को गोद में खिलाती होगी तो उन्हें कितना आनंद होता होगा? मुझे भी ऐसा आनंद मिलता। मालिन के हृदय में जिज्ञासा हुई कि कन्हैया मेरी गोद में आ जाए । भगवान श्रीकृष्ण तो अन्तर्यामी हैं, वे मालिन के हृदय के भाव जान गए और मालिन की गोद में जाकर बैठ गये। 

  अब मालिन के मन में ऐसा पुत्र प्रेम जागा कि कन्हैया मुझे एकलबार माँ कहकर बुलाए। कन्हैया को उस मालिन पर दया आ गयी। कान्हा ने सोचा जो जीव जैसा भाव रखता है, मैं उसी भाव के अनुसार उससे प्रेम करता हूँ। कान्हा ने उसे कहकर कहा- माँ, मुझे फल दे। माँ सुनकर मालिन को अतिशय आनंदित हो गई । और सोची लाला को क्या दूँ? कि कान्हा के मन को पसंद आये।

  भगवान के दुर्लभ करकमलों के स्पर्श का सुख प्राप्त कर मालिन ने उनके दोनों हाथ फल दिया। कन्हैया के हाथों में फल आते ही वे नंदभवन की ओर दौड़ अन्दर चले गये। और साथ ही मालिन का मन को भी चोरी करके ले गये हैं।

  उस मालिन ने कान्हा के लिए उसने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। अब मालिन के मन मे घर जाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी । लेकिन जाना भी आवश्यक था, इसलिये उसने टोकरी सिर पर रख कान्हा का स्मरण करते-करते घर पहुँच गयी। जैसे ही वे घर पहुच तो देखता है कि कन्हैया ने तो उसकी सम्पूर्ण अभिलाषाओं को पूर्ण कर दिया है | भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम के अमूल्य रत्नों–हीरे-मोतियों से उसकी खाली टोकरी भर दी। मालिन की टोकरी कान्हा ने रत्नों से भर दी और उसका प्रकाश चारों ओर उसके प्रकाश से मालिन को सिर्फ कान्हा ही दिखायी दे रहे हैं। आगे श्रीकृष्ण, पीछे श्रीकृष्ण, दांये श्रीकृष्ण, बांये श्रीकृष्ण, भीतर श्रीकृष्ण, बाहर श्रीकृष्ण। सब तरफ श्रीकृष्ण ही कृष्ण है उनके अलावा उसे और कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। इधर कान्हा भी मालिन द्वारा दिये फल सभी गोप-गोपियों को बांट रहे थे, फिर भी फल खत्म नही हो रही है। यह देख नाता यशोदा सोचने लगी कि आज कान्हा को आशीर्वाद देने माँ अन्नपूर्णा मेरे घर आयीं हैं। इस प्रकार सुखिया मालिन का जीवन सफल हुआ, उसने साधारण लौकिक फल देकर फलों का भी फल श्रीकृष्ण का दिव्य-प्रेम प्राप्त किया। श्रीकृष्ण का ध्यान करते-करते वह उन्हीं की नित्यकिंकरी गोलोक में सखी हो गयी।

  मनुष्य की बुद्धि भी उस टोकरी जैसी है, भक्ति रत्न सदृश है। मनुष्य जब अपने सत्कर्म श्रीकृष्ण को अर्पण करता है, तो उसकी टोकरी रूपी बुद्धि रत्न रूपी भक्ति से भर जाती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top