देवी क्षमा प्रार्थना, हिन्दी

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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नहिं मन्त्र-तन्त्र जानूँ जप योग पाठ-पूजा।

आह्नान ध्यान का भी नहिं ख्याल और दूजा॥

उपचार और मुद्रा पूजा विधान मेरा।

बस जानता यही हूँ अनुशरण माता तेरा ॥


श्री चरण पूजने में धनशानता बजी हो । 

अल्पक्षता से सेवा बिहीन जो बनी हो 

जगधारिणी शिवे! माँ। सब माफ करना गलती। 

सुत जो कपूत होवे माता नहीं बदलती ॥


जग में सुयोग्य सुन्दर सत्पुत्र मात ! तेरे । 

मुझसा कपूत पामर उनमें न एक तेरे ॥ 

समुचित न त्याग मेरा सब माफ करना गलती। 

सुत जो कपूत होवे माता नहीं बदलती ॥


जगदम्बा पाँव पूजा मैंने करी न तेरी।

धनहीन अर्चना में त्रुटियाँ भई घनेरी ॥

फिर भी असीम अनुपम कर स्नेह माफ गलती । 

सुत जो कपूत होवे माता नहीं बदलती ॥


कुल देवतार्चना का परित्याग कर दिया है। 

यह धाम साधनों का वय व्यर्थ खो दिया है॥

अब भी कृपा करो ना तब शरण पाहि-पाहि। 

जगदम्ब ! छोड़ तेरा अवलम्ब और नाही ॥ 


माँ पंगु तव सहारे गिरवर शिखर को बोलें । 

शिर छत्र घर के जग में नि:शङ्क रङ्क, सोवे ॥ 

यह नाम जो "अपरना" विधि वेद में बखाने । 

बस धन्य जन्म उनका जो सार तेरा जाने ॥


तन भस्म कण्ठ नीला गलमुण्डमाल धारी । 

है हार शेष जिनके शिर भूमि भार थारी"॥

तुलसी पतिब्रता से भूतेश जो कहावे।

पाणिग्रहण की महिमा संसार में सुहावे ॥

 

धन मोक्ष की न इच्छा वाञ्छा न ज्ञान की है।

शशिमुख सुलोचनी के सुख की न मान की है।

हिम शैलखण्ड पर जा जप साधना तुम्हारी।  

करता रहूँ भवानी! जय जय शिवा तुम्हारी "


उपचार सैकड़ो माँ ! मैंनें किये नहीं हैं। 

रुखा है ध्यान तेरा धन पास में नहीं हैं ॥

इस दीन-हीन पामर पर फिर भी स्नेह तेरा। 

श्यामे! सुअम्ब! माता! तु मानती है मेरा ॥


जब-जब तनिक भी दुर्गे! जग आपदा सतावें ।

सुत वत्सले! भवानी ! तब-तब तुम्हें मनावें ॥ 

शहता न मान लेना दासानुदास तेरा। 

प्यासे बुभुक्षितों को विश्वास एक तेरा ॥


करुणामयी भुलाकर त्रुटि दुःख टालती है।

घनघोर आपदायें झट तोड़ डालती हो । 

आश्चर्य क्या करूँ मैं तुमको कहा सुनाजी । 

परिपूर्णतम हो जननी तेरी अकथ कहानी ॥


पापी न मुझसा कोई तुम पाप हारिणी हो । 

सब दुख नाशिनी हो सुख शान्ति कारिणी हो ॥

तुम हो दद्यामयी माँ समुचित विचार करना। 

देकर "प्रसाद" मुझको भव सिन्धु पार करना ॥

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