क्वाहं तमोमहदहंखचराग्निवार्भू, ब्रह्मा स्तुति, भागवत

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

क्वाहं तमोमहदहंखचराग्निवार्भू- 

संवेष्टिताण्डघटसप्तवितस्तिकायः ।

क्वेदृग्विधाविगणिताण्डपराणुचर्या- 

वाताध्वरोमविवरस्य च ते महित्वम् ॥११॥

हिन्दी शब्दार्थ —

क्व — कहाँ अहम्-मैं; तमः- भौतिक प्रकृति; महत्— सम्पूर्ण भौतिक शक्ति; अहम् —मिथ्या अहंकार; – आकाश; चर- वायु, अग्नि- आग; वाः - जल; भू—पृथ्वी; संवेष्टित — घिरा हुआ; अण्ड-घट-घड़े के सदृश ब्रह्माण्ड, सप्त- वितस्ति-सात बालिश्त; कायः— शरीर; क्व- कहाँ ईदृक्- इसके विधा-सदृश; अविगणित- असीम; अण्ड-ब्रह्माण्ड; पर-अणु-परमाणु की धूल सदृश; चर्या- चलायमान; वात-अध्व—वायु के छेद; रोम-शरीर के रोमों के; विवरस्य—छेदों के; ― भी; ते — आपकी महित्वम्— महानता ।

हिन्दी अनुवाद —

  कहाँ मैं अपने हाथ के सात बालिश्तों के बराबर एक क्षुद्र प्राणी, जो भौतिक प्रकृति, समग्र भौतिक शक्ति, मिथ्या अहंकार, आकाश, वायु, जल तथा पृथ्वी से बने घड़े जैसे ब्रह्माण्ड से घिरा हुआ हूँ! और कहाँ आपकी महिमा! आपके शरीर के रोमकूपों से होकर असंख्य ब्रह्माण्ड उसी प्रकार आ-जा रहे हैं, जिस तरह खिड़की की जाली के छेदों से धूल कण आते-जाते रहते हैं।

हिन्दी भावार्थ —

 श्रीकृष्ण की गायों तथा ग्वालमित्रों को चुराने के बाद जब ब्रह्माजी लौटे, तो उन्होंने देखा कि गायें तथा ग्वालबाल अब भी भगवान् श्रीकृष्ण के साथ टहल रहे हैं, तो उन्होंने अपनी पराजय में यह स्तुति की। बद्धजीव, यहाँ तक कि समग्र ब्रह्माण्ड के काम-काज चलाने वाले ब्रह्माजी जैसे महान् जीव भी श्रीभगवान् की बराबरी नहीं कर सकते, क्योंकि श्रीभगवान् अपने शरीर के रोमछिद्रों से निकलने वाली आध्यात्मिक किरणों से असंख्य ब्रह्माण्डों की सृष्टि कर सकते हैं। भौतिक विज्ञानियों को ब्रह्माजी के इन शब्दों से ईश्वर के समक्ष अपनी नगण्यता के विषय में शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। ब्रह्माजी की इन स्तुतियों में उन लोगों के लिए बहुत कुछ सीखने को है, जो शक्ति के संचय से गर्वित हो उठे हैं।

  ब्रह्माजी को अपनी वास्तविक स्थिति का अनुभव हुआ। निश्चित ही वे इस ब्रह्माण्ड के सर्वोपरि गुरु हैं और भौतिक ब्रह्माण्ड के सृजन के लिए उत्तरदायी हैं, जो पूर्ण भौतिक तत्त्वों, मिथ्या अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी से बना हुआ है। भले ही ऐसा ब्रह्माण्ड विशाल हो, किन्तु उसे मापा जा सकता है, जिस तरह हम शरीर को सात बालिश्तों में मापते हैं। सामान्यतः हर व्यक्ति का शरीर का माप उसके हाथ के बालिश्त का सात गुना होता है। यह विशेष ब्रह्माण्ड भले ही विशाल शरीर प्रतीत हो, किन्तु यह ब्रह्माजी के सात बालिश्तों के बराबर है। "

  इस ब्रह्माण्ड के अतिरिक्त अन्य असंख्य ब्रह्माण्ड हैं, जो इन ब्रह्माजी के अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं। जिस प्रकार खिड़की की जाली के छेदों से होकर असंख्य सूक्ष्म कण गुजरते रहते हैं, उसी प्रकार महाविष्णु के रोमछिद्रों से करोड़ों ब्रह्माण्ड बीज रूप में निकलते रहते हैं और स्वयं महाविष्णु भगवान् श्रीकृष्ण के स्वांश मात्र हैं। ऐसी दशा में यद्यपि ब्रह्माजी इस ब्रह्माण्ड में सबसे बड़े प्राणी हैं, किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण के समक्ष उनकी महत्ता ही क्या है ?

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top