भागवत श्लोकों का हिन्दी शब्दार्थ भावार्थ, को वेत्ति भूमन् भगवन् परात्मन् , भागवत कथा, ब्रह्मा स्तुति, ब्रह्मा जी का मोह, भागवत दशम स्कन्ध,
को वेत्ति भूमन् भगवन् परात्मन्
योगेश्वरोतीर्भवतस्त्रिलोक्याम् ।
क्व वा कथं वा कति वा कदेति
विस्तारयन् क्रीडसि योगमायाम् ॥२१॥
शब्दार्थ —
क:-कौन; वेत्ति—जानता है: भूमन्—हे विराट्; भगवन्—भगवान्; पर-आत्मन्— हे परमात्मा; योग-ईश्वर—हे योग के स्वामी; ऊती:- लीलाएँ; भवतः - आपकी; त्रि- लोक्याम्—तीनों लोकों में; क्व-कहाँ; वा — अथवा कथम् — कैसे; वा— अथवा कति - कितने; वा— अथवा कदा — कब; इति — इस प्रकार; विस्तारयन् — विस्तार करते हुए; क्रीडसि - आप खेलते हैं; योग-मायाम्— अपनी आध्यात्मिक शक्ति से।
भावार्थ —
हे भूमन्, हे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्, हे परमात्मा, हे योगेश्वर! आपकी लीलाएँ इन तीनों लोकों में निरन्तर चलती रहती हैं किन्तु इसका अनुमान कौन लगा सकता है कि आप कहाँ, कैसे और कब अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं और इन असंख्य लीलाओं को सम्पन्न कर रहे हैं? इस रहस्य को कोई नहीं समझ सकता कि आपकी आध्यात्मिक शक्ति किस प्रकार से कार्य करती है।
भाव यह है कि इसके पूर्व ब्रह्माजी कह चुके हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण देवताओं, मनुष्यों, पशुओं, इत्यादि के बीच अवतरित होते हैं। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि अपने अवतारों से श्रीभगवान् हीन हो जाते हैं। जैसा कि ब्रह्माजी यहाँ पर स्पष्ट करते हैं, श्रीभगवान् के कार्यकलापों की दिव्य प्रकृति को कोई भी नहीं समझ सकता, क्योंकि ये उनकी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा सम्पन्न होते हैं। वे भूमन् होते हुए भी परम सुन्दर व्यक्ति हैं अर्थात् इतने पर भी वे श्रीभगवान् ही हैं, जो अपने धाम में प्रेममयी लीलाएँ करते रहते हैं। इसके साथ ही वे परमात्मा हैं, जो समस्त बद्धजीवों के कार्यकलापों की अनुमति देते हैं और उनके साक्षी हैं। योगेश्वर शब्द से श्रीभगवान् की विविध पहचान होती है। परम सत्य समस्त योगशक्तियों के स्वामी हैं। यद्यपि वे एक हैं तथा सर्वोच्च होते हुए भी वे विविध प्रकारों से अपनी महानता तथा ऐश्वर्य प्रदर्शित करते हैं। ऐसे उच्च आध्यात्मिक विषयों को तुच्छ भौतिक शरीर से स्वयं की पहचान करने वाले मूर्ख व्यक्ति मुश्किल से समझ पाएंगे। ऐसे बद्धजीव, यथा नास्तिक विज्ञानी अपनी गर्वित बुद्धि को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। भौतिक भ्रम में दृढ़ विश्वास करने के कारण वे प्रकृति के गुणों में फँस जाते हैं और ईश्वर-ज्ञान से दूर धकेल दिये जाते हैं।
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