शिव वास विचार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Shiv vaas vichar
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शिववास तिथि एवं फल

  वर्तमान तिथि को २ से गुणा करके पांच जोड़ें फिर ७ का भाग दें. शेष १ रहे तो शिव वास कैलाश में, २ से गौरी पार्श्व में ३ से वृषारूढ़ श्रेष्ठ, ४ से सभा में सामान्य एवं ५ से ज्ञानबेला में श्रेष्ठ होता है । यदि ६ शेष रहे तो क्रीड़ा में तथा शून्य या ८ बचे तो शमशान में अशुभ होता है। तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए। 

शिवार्चन के लिए शुभ तिथियाँ

  •  शुक्ल पक्ष में - २,५,६,७,९,१२,१३, १४ । 
  •  कृष्ण पक्ष में - १,४,५,६,८,११,१२,१३,३० । 

शिव वास देखने का सूत्र

  शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है। इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए । 

तिथिं च द्विगुणीं कृत्वा पुनः पञ्चसमन्वितम् ।

मुनिभिस्तु हरेद्भागं शेषं च शिववासनम् ॥ 

शिववास ज्ञान

एकेन वासः कैलाशे, द्वितीये गौरी सन्निधौ ।

तृतीये वृषभारूढो सभायां च चतुर्थके ।। 

पंचमे भोजने चैव क्रीडायां च रसात्मके ।।

 श्मशाने सप्तमे चैव शिववासः प्रकीर्तितः ।।

अर्थात्, तिथि को दुगुना कर उसमें पांच को जोड़ देना चाहिए, कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1, 2, 3 शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है, शिववास शुभफलदायी है बाकी बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है।

शिव वास फल

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्य्यां च सुखसम्पदाम् 

बृषभेऽभीष्टसिद्धिः स्यात् सभायां तापकारकम्॥ 

भोजनं च भवेत् पीडा क्रीडायां कष्टमेव च

श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्॥ 

इसे इस प्रकार समझना चाहिए  

१. कैलाश  = सुख

२. गौरीसंग = सुख एवं संपत्ति

३. वृषभारूढ = अभिष्टसिद्धि

४. सभा = सन्ताप

५. भोजन = पीड़ा

६. क्रीड़ा = कष्ट

७. श्मशाने = मरण 

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