वैशेषिक दर्शन प्रश्नोत्तरी भाग 8 - सामान्य के लक्षण से अन्योन्याभाव तक

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Important question answer of vaisheshik darshan
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प्रश्न - सामान्य का क्या लक्षण है ? 

उत्तर - नित्यम् एकम् अनेकानुगतं सामान्यम् अर्थात् - 'सामान्य' नामक पदार्थ नित्य है तथा एक एवं अनेक में रहता है। 

प्रश्न - सामान्य की स्थिति कहाँ होती है ? 

उत्तर - द्रव्य, गुण एवं कर्म में । 

प्रश्न - सामान्य के कितने भद हैं ? 

उत्तर - दो(2) - परसामान्य और अपरसामान्य । 

प्रश्न - परसामान्य किसे कहते हैं ? 

उत्तर - परमधिकदेशवृत्तिः, अर्थात् - पर सामान्य अधिक देशवृत्ति वाला होता है। 

प्रश्न - अपर सामान्य किसे कहते हैं ? 

उत्तर - अपरं न्यूनदेशवृत्ति, अर्थात् अपर सामान्य कम देश में रहता है। द्रव्यत्व आदि अपर सामान्य हैं। 

प्रश्न - न्यायवैशेषिक के अनुसार सामान्य क्या है ? 

उत्तर - सामान्य अथवा जाति वह पदार्थ है, जिसके कारण एक ही प्रकार की विभिन्न वस्तु अथवा प्राणियों में समानता की प्रतीति होती है जैसे मनुष्य में मनुष्यत्व, गो में गोत्व, घट में घटत्व आदि । यह सामान्य वस्तु या प्राणी में समवाय सम्बन्ध से विद्यमान रहता है। इसी को जाति, सत्ता एवं भाव भी कहा जाता है। 

प्रश्न - सामान्य नित्य होता है या अनित्य ? 

उत्तर - नित्य । 

प्रश्न - पदार्थों मे सामान्य की स्थिति किस सम्बन्ध से बनी रहती है ? 

उत्तर - समवाय सम्बन्ध से । 

प्रश्न - सामान्य किसमें समवेत रूप से रहता है ? 

उत्तर - द्रव्य, गुण और कर्म में । 

प्रश्न - विशेष द्रव्य का क्या लक्षण है ? 

उत्तर - 'नित्यद्रव्यवृत्तयो व्यावर्तका विशेषाः, अर्थात् - नित्य द्रव्य में रहने वाले व्यावर्तक विशेष हैं। 

प्रश्न - विशेष पदार्थ के कितने प्रकार के होते हैं ? 

उत्तर - विशेषास्त्वनन्ता, अर्थात् विशेष अनन्त हैं। 

प्रश्न - विशेष पदार्थ किन द्रव्यों में रहता है ? 

उत्तर - नित्यद्रव्यों में । 

प्रश्न - नित्य द्रव्य कौन हैं ? 

उत्तर - पृथिवी, जल, तेज, वायु के परमाणु तथा आकाश, काल, दिक् आत्मा और मन । 

प्रश्न - इस दर्शन का नाम वैशेषिक क्यों पड़ा ? 

उत्तर - विशेष पदार्थ के विवेचन के कारण । 

प्रश्न - विशेष का क्या अर्थ है ? 

उत्तर - विश्लेषक अर्थात् भेदक धर्म, जिसके कारण उनमें भेद की प्रतीति हुआ करती है, वही वैशेषिक का विशेष नामक पदार्थ है। 

प्रश्न - कौन सा पदार्थ व्यक्ति की पृथकता को दर्शाता है ? 

उत्तर - 'विशेष' पदार्थ । 

प्रश्न - समष्टिगत पदार्थ होता है ? 

उत्तर - सामान्य पदार्थ । 

प्रश्न - व्यक्तिगत होता है ? 

उत्तर - 'विशेष' नामक पदार्थ । 

प्रश्न - विशेष पदार्थ की क्या आवश्यकता है ? 

उत्तर - नित्यद्रव्यों की परस्पर भिन्नता सिद्ध करने के लिए । परमाणुओं में पारस्परिक भिन्नता का निर्धारण किसी बाह्य आधार पर सम्भव नहीं है, इसलिए इन नित्यद्रव्यों में एक-एक विशेष की सत्ता मानी जाती है। 

प्रश्न - किसके लिए 'विशेष' पदार्थ की कोई आवश्यकता नहीं है ? 

उत्तर - अनित्यद्रव्यों की पारस्परिक भिन्नता के लिए । 

प्रश्न - विशेष अनन्त क्यों हैं ? 

उत्तर - प्रत्येक नित्यद्रव्य में पृथक् पृथक् पाये जाने के कारण । 

प्रश्न - कौन से दार्शनिक विशेष पदार्थ को अस्वीकार करते हुए इसका खण्डन करते हैं ? 

उत्तर - कुमारिलभट्ट, प्रभाकर, बौद्ध, वेदान्ती आदि । 

प्रश्न- समवाय पदार्थ का क्या लक्षण है ? 

उत्तर - नित्यसम्बन्धः समवायः, अर्थात् - नित्यसम्बन्ध को समवाय कहते हैं। 

प्रश्न - समवाय के कितने भेद हैं ? 

उत्तर - केवल एक(1) । 

प्रश्न - समवाय पदार्थ किसमें रहता है ? 

उत्तर - अयुतसिद्ध पदार्थों में । 

प्रश्न - अयुतसिद्ध क्या है ? 

उत्तर - ययोर्द्वयोर्मध्ये एकमविनश्यदपराश्रितमेवावतिष्ठते तावयुतसिद्धौ अर्थात् - जिन दो पदार्थों में एक अविनश्यदवस्था वाला दूसरे पर आश्रित हो, वे दोनों अयुतसिद्ध कहे जाते हैं। 

प्रश्न - अयुतसिद्ध के कितने उदाहरण दिये जाते हैं 

उत्तर -पाँच (5) - 1.अवयव एवं अवयवी जैसे कपाल (अवयव) घट(अवयवी)। 2. गुण एवं गुणी- जैसे घट (गुणी ) घटरूप ( गुण) 3.क्रिया एवं क्रियावान्, जैसे - क्रिया(चलना) क्रियावान्(पुरुष)। 4. जाति और व्यक्ति, जैसे - जाति(मनुष्यत्व) व्यक्ति(मनुष्य) । 5. विशेष नित्य द्रव्य, जैसे - विशेष आकाशादि। 

प्रश्न - समवाय किसे कहा जाता है ? 

उत्तर - दो अयुतसिद्ध पदार्थों में रहने वाले नित्यसम्बन्ध को समवाय कहा जाता है । 

प्रश्न - युतसिद्ध से क्या आशय है ? 

उत्तर - जिन दो पदार्थों की स्थिति स्वतन्त्र रूप से अलग-अलग बनी रह सकती है, वे दोनों पदार्थ कहलायेंगे जैसे पुस्तक और लेखनी । 

प्रश्न - अयुतसिद्ध से क्या आशय है ? 

उत्तर - जो दो पदार्थ पृथक् सिद्ध न हो सके वे अयुतसिद्ध पदार्थ कहे जाते हैं, जैसे - तन्तु और पट कपाल और घट आदि। 

प्रश्न - समवाय की परिभाषा क्या है ? 

उत्तर - " समवाय दो या दो से अधिक अयुतसिद्ध पदार्थों के बीच विद्यमान, संयोग से भिन्न एक नित्य सम्बन्ध है। जो कारणवाद पर आधारित होकर अपने सम्बन्धियों में स्वरूप सम्बन्ध से विद्यमान रहता है, जिसका हम केवल अनुमान कर सकते हैं।" 

प्रश्न - समवाय किस प्रकार का सम्बन्ध है ? 

उत्तर - नित्य तथा संयोग सम्बन्ध से भिन्न । 

प्रश्न - दो वा उससे अधिक अयुतसिद्ध पदार्थों के मध्य रहने वाला सम्बन्ध है ? 

उत्तर - समवाय सम्बन्ध । 

प्रश्न- अभाव का क्या लक्षण है ? 

उत्तर - प्रतियोगिज्ञानाधीनज्ञानविषयत्वम् अभावत्वम्, अर्थात् - प्रतियोगिज्ञान के अधीन जो ज्ञान का विषय है, उसे अभाव कहते हैं। यस्याभाव: स प्रतियोगी - अर्थात् जिसका अभाव कहा जा रहा है, वही प्रतियोगी होता है। जैसे 'भूतले घटाभाव:' इस कथन में अभाव का प्रतियोगी घट ही है। जिस तरह घटाभाव का प्रतियोगी घट ही होता है उसी तरह पटाभाव का प्रतियोगी पट। 

प्रश्न - अभाव के कितने भेद हैं ? 

उत्तर - चार(4) - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव तथा अन्योन्याभाव । 

प्रश्न - प्रागभाव से क्या आशय है ? 

उत्तर - उत्पत्ति के पूर्व होने वाला अभाव प्रागभाव है, जैसे - घट की उत्पत्ति के पूर्व घट का अभाव । यह अनादि एवं सान्त होता है - अनादिः सान्तः प्रागभावः । 

प्रश्न - प्रध्वंसाभाव किसे कहते हैं ? 

उत्तर - विनाश के बाद किसी वस्तु के अभाव को प्रध्वंसाभाव कहते हैं, जैसे - घट के विनाश के बाद घट का अभाव । जिसका आदि हो तथा अन्त न हो - सादिरनन्तः प्रध्वंसः । 

प्रश्न - अत्यन्ताभाव किसे कहते हैं ? उत्तर - त्रैकालिकसंसर्गावच्छिन्नप्रतियोगिताकोऽत्यन्ताभावः , अर्थात् तीनों कालों में होने वाला अभाव अत्यन्ताभाव है, जैसे - भूतले घटो नास्ति। यहाँ भतल में घट का अत्यन्ताभाव है। 

प्रश्न - अन्योन्याभाव किसे कहते हैं ? 

उत्तर - तादात्म्यसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकोऽन्योन्याभावः , अर्थात् दो वस्तुओं में परस्पर भिन्नता का होना अन्योन्याभाव है। जैसे - घट में पट का अभाव ।

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