वैशेषिक दर्शन प्रश्नोत्तरी भाग 7 स्मृति के लक्षण से कर्म द्रव्य तक

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Important question answer of vaisheshik darshan
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 प्रश्न - स्मृति गुण का क्या लक्षण है ?

उत्तर -  'संस्कारमात्रजन्यं ज्ञानं स्मृतिः'(संस्कारमात्र से उत्पन्न ज्ञान स्मृति है)। 

प्रश्न - स्मृति के कितने भेद हैं ?

उत्तर - दो(2) - (१) यथार्थस्मृति (२) अयथार्थस्मृति ।

प्रश्न -  यथार्थ स्मृति किसे कहते हैं ?

उत्तर - प्रमाजन्या यथार्था, अर्थात् प्रमा से उत्पन्न होने वाली स्मृति यथार्थ है । 

प्रश्न - अयथार्थस्मृति किसे कहते हैं ?

उत्तर - अप्रमाजन्या अयथार्था, अर्थात् अप्रमा से उत्पन्न होने वाली स्मृति अयथार्थ स्मृति है। 

प्रश्न - अनुभव का क्या लक्षण है ?

उत्तर - तद्भिन्नं ज्ञानमनुभवः(उस स्मृति से भिन्न ज्ञान अनुभव है)।

प्रश्न - अनुभव कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर - दो प्रकार का - (१) यथार्थ अनुभव (२) अयथार्थ अनुभव ।

प्रश्न - यथार्थ अनुभव किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'तद्वति तत्प्रकारकोऽनुभवो यथार्थः ' अर्थात्, जो वस्तु जिस रूप में हो, उसका उसी रूप में अनुभव यथार्थ है जैसे चांदी में 'यह चाँदी है' ऐसा ज्ञान (रजते इदं रजतम् ) यही यथार्थ अनुभव प्रमा (प्रामाणिक ज्ञान) कहलाता है।

प्रश्न - यथार्थानुभव के कितने भेद हैं ?

उत्तर - चार(4) - प्रत्यक्ष, अनुमिति, उपमिति तथा शब्द ।

प्रश्न - यथार्थानुभव के करणों की संख्या कितनी है ?

उत्तर - चार(4) - प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान तथा शब्द ।

प्रश्न - अयथार्थ अनुभव किसे कहते हैं ?

उत्तर - तदभाववति तत्प्रकारको ऽनुभवोऽयथार्थः, अर्थात् - जो वस्तु जिस रूप में न हो, उसे उस रूप में समझना अयथार्थ है जैसे- 'शुक्तौ इदं रजतम्' इति ज्ञानम् (सीपी में यह रजत है, ऐसा ज्ञान)। यही अयथार्थ ज्ञान अप्रमा (अप्रामाणिक ज्ञान) कहलाता है।

प्रश्न - अयथार्थ अनुभव कितने प्रकार का होता है

उत्तर - तीन प्रकार का - (१) संशय (२) विपर्यय (३) तर्क ।

प्रश्न - संशय गुण का क्या लक्षण है ?

उत्तर - 'एकस्मिनि धर्मिणि विरुद्धनानाधर्मवैशिष्ट्यावगाहि ज्ञानं संशयः ' अर्थात् - एक धर्मी में विरोधी नाना धर्मों की विशिष्टता से सम्बद्ध ज्ञान संशय हैं। यथा- स्थाणुर्वा पुरुषो वा इति ( यह स्थाणु है या पुरुष ) ।

प्रश्न - विपर्यय गुण का क्या लक्षण है ?

उत्तर - मिथ्याज्ञानं विपर्ययः, अर्थात् -  मिथ्याज्ञान विपर्यय है। यथा शुक्तौ इदं रजतम् (सीपी में यह रजत है ऐसा ज्ञान ) 

प्रश्न - तर्क गुण का क्या लक्षण है ?

उत्तर - 'व्याप्याऽऽरोपेण व्यापकारोपस्तर्कः अर्थात् - व्याप्य के आरोप से व्यापक का आरोप तर्क है। यथा- यदा वह्निर्न स्यात् तर्हि धूमोऽपि न स्यात् । (जब अग्नि नहीं होती तो धुआँ भी नहीं होता)।

प्रश्न - सुख किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'सर्वेषामनुकूलवेदनीयं सुखम्, अर्थात् सबके अनुकूल प्रतीति सुख है।

प्रश्न - दुःख किसे कहते हैं ?

उत्तर - सर्वेषां प्रतिकूलवेदनीयं दुःखम्, अर्थात् - सबके प्रतिकूल प्रतीति दुःख है ।

प्रश्न - इच्छा किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'इच्छा कामः' अर्थात् - काम इच्छा है।

प्रश्न - द्वेष किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'क्रोधो द्वेष:, अर्थात् क्रोध द्वेष है। 

प्रश्न - प्रयत्न किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'कृतिः प्रयत्नः' - कृति प्रयत्न है। 

प्रश्न - धर्म किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'विहितकर्मजन्यो धर्मः, अर्थात् - विहित कर्मों से उत्पन्न धर्म है।

प्रश्न - अधर्म किसे कहते हैं ?

उत्तर - निषिद्धकर्मजन्यः तु अधर्म:, अर्थात् निषिद्ध कर्मों से उत्पन्न अधर्म है।

प्रश्न - आत्मा के विशेष गुण कितने हैं ?

उत्तर - आठ(8) - बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न धर्म एवं अधर्म

प्रश्न - आत्मा के विशेष गुणों में नित्य और अनित्य गुण कितने हैं ?

उत्तर - तीन(3) -  बुद्धि, इच्छा एवं प्रयत्न ।

प्रश्न - बुद्धि, इच्छा एवं प्रयत्न गुण नित्य होते हैं ?

उत्तर - ईश्वर के।

प्रश्न - बुद्धि, इच्छा एवं प्रयत्न गुण अनित्य होते हैं ?

उत्तर - जीव के ।

प्रश्न - आत्मा के विशेष गुणों में परिगणित सुख, दुःख, द्वेष, धर्म, अधर्म ये पाँच गुण अनित्य क्यों हैं ?

उत्तर - जीवमात्र में रहने के कारण ।

प्रश्न - संस्कार का क्या लक्षण है ?

उत्तर - वेगभावनास्थितिस्थापकान्यतमत्वं संस्कारत्वम् अथवा सामान्यगुणात्मविशेषगुणोभयवृत्तिगुणत्वव्याप्यजातिमत्त्वं संस्कारत्वम्, अर्थात् - सामान्य गुण और आत्मा में रहने वाला विशेषगुण इन दोनों में रहने वाली गुणत्वव्याप्य जाति जहाँ रहती है, उसे संस्कार कहते हैं।

प्रश्न - संस्कार गुण के कितने भेद हैं ?

उत्तर - तीन(3) - वेग, भावना तथा स्थितिस्थापक ।

प्रश्न - वेग किसे कहते हैं ?

उत्तर - द्वितीयादिपतनाऽसमवायिकारणं वेगः, अर्थात् - द्वितीय आदि पतन के असमवायिकारण गुण को वेग कहते हैं ।

प्रश्न - वेग किसका हेतु है ?

उत्तर - क्रिया का ।

प्रश्न - वेग किन द्रव्यों में पाया जाता है ?

उत्तर - पृथिवी, जल, तेज, वायु तथा मन में ।

प्रश्न - भावना किसे कहते हैं ?

उत्तर - अनुभवजन्या स्मृतिहेतुर्भावना, अर्थात् - अनुभव से उत्पन्न होने वाली और स्मृति को उत्पन्न करने वाली भावना है। यह अनुभव से उत्पन्न होती है तथा स्मृति की हेतु है यह मूलतः ज्ञान के पश्चात् उत्पन्न होने वाला गुण है, जो पूर्वगृहीत ज्ञान की स्मृति कराती है। यह केवल आत्मा में रहती है।

प्रश्न - स्थितिस्थापक का क्या लक्षण है ?

उत्तर - 'अन्यथाकृतस्य पुनस्तदवस्थाऽऽपादकः स्थितिस्थापकः' अर्थात् - अन्यथा की हुई वस्तु को पुनः उसी अवस्था में ला देने वाला स्थितिस्थापक है, यह कटादि पृथिवी में रहता है। यह वह शक्ति है जो पदार्थ को अपने पूर्वरूप में ले आती है।

प्रश्न - कर्म द्रव्य का क्या लक्षण है ?

उत्तर - चलनात्मकं कर्म, अर्थात् - चलनात्मक क्रिया को कर्म कहते हैं।

प्रश्न - कर्म के कितने भेद हैं ?

उत्तर - पाँच(5) -  उत्क्षेपण, अपक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण और गमन ।

प्रश्न - उत्क्षेपण कर्म क्या है ?

उत्तर - ऊर्ध्वदेश में संयोग का हेतु ही उत्क्षेपण नामक कर्म है ।

प्रश्न - अपक्षेपण कर्म किसे कहते हैं ?

उत्तर - अधोदेशसंयोगहेतुः अपक्षेपणम्, अर्थात् - अधोदेश में संयोग का कारण अशोषण नामक कर्म है।

प्रश्न - आकुञ्चन कर्म से क्या आशय है ?

उत्तर - 'शरीरसन्निकृष्टसंयोगहेतुः आकुञ्चनम्, अथवा चक्रत्वसम्पादकं कर्म आकुञ्चनम् अर्थात् - अपने शरीर के सन्निकृष्ट देश में संयोग का हेतु आकुञ्चन है। जैसे - भय आदि से कछुए का अपने अङ्गों को समेटना। 

प्रश्न - प्रसारण कर्म से क्या आशय है ?

उत्तर - 'विप्रकृष्टसंयोगहेतुः प्रसारणम्' अथवा 'ऋजुतासम्पादकं प्रसारणम्'  अर्थात् - अपने शरीर से दूरवर्ती (विप्रकृष्ट) संयोग का कारण ही प्रसारण है।

प्रश्न - गमन कर्म किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'अन्यत् सर्वं गमनम्' अर्थात् उपर्युक्त चारों कर्मों के अतिरिक्त सारे कार्य 'गमन' के अन्तर्गत आते हैं जैसे चलना, भ्रमणकरना आदि।

प्रश्न - कर्म किन द्रव्यों में रहता है ?

उत्तर -  पृथिवी, जल, तेज, वायु तथा मन में ।

प्रश्न - तर्कसंग्रह दीपिका के अनुसार कर्म की क्या परिभाषा है ?

उत्तर - संयोगभिन्नत्वे सति संयोगासमवायिकारणं कर्म अर्थात् - संयोग से भिन्न होने पर भी संयोग का असमवायिकारण होना कार्य हैं।

प्रश्न - कर्म किसमें समवेत रहता है ?

उत्तर - द्रव्य में।

प्रश्न - संयोग एवं विभाग का साक्षात् कारण कौन होता है ?

उत्तर -  कर्म ।

प्रश्न - द्रव्यों में स्थित विभिन्न परिवर्तनों का कारण कौन होता है ?

उत्तर - कर्म ।

प्रश्न -  कर्म नित्य है या अनित्य ?

उत्तर - अनित्य, क्योंकि इसकी सत्ता एक सीमित समयान्तराल तक होती है।

प्रश्न - किससे  निश्चित द्रव्यों का निर्माण नहीं होता ?

उत्तर - कर्म से।

प्रश्न - कर्म निर्गुण होता है या सगुण ?

उत्तर - निर्गुण ।

प्रश्न - द्रव्य और गुण दोनों नित्य है, जबकि कर्म नित्य न होकर क्षणिक होता है, यह मत किस दर्शन से सम्बन्धित है ?

उत्तर - न्यायवैशेषिक दर्शन से।

प्रश्न - प्रशस्तपाद ने किस कारण से कर्म की स्थिति को स्वीकार करते हैं ?

उत्तर - गुरुत्व, द्रवत्व, भावना और संयोग इत्यादि प्रमुख उपाधियों के कारण

प्रश्न - व्याकरणशास्त्र के अनुसार कर्म क्या है ?

उत्तर - "कर्तुरीप्सिततमं कर्म" अर्थात् कर्ता को ईप्सिततम की कर्म संज्ञा कही गयी है।

प्रश्न - मीमांसा दर्शनशास्त्र में कर्म किसे कहा गया है ?

उत्तर -  नित्य, नैमित्तिक और काम्य को ।

प्रश्न - श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार कर्म किसे कहा है ?

उत्तर - सात्त्विक,  राजस और तामस कर्म को ।

प्रश्न - वेदान्तशास्त्र के अनुसार कर्म किसे माना गया है ?

उत्तर - सञ्चित एवं प्रारब्ध को।

प्रश्न - वैशेषिक दर्शन का चतुर्थ पदार्थ क्या है ?

उत्तर - सामान्य ।

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