प्रश्न - आत्मा किसे कहते हैं ?
उत्तर - "ज्ञानाधिकरणमात्मा" (ज्ञान का अधिकरण आत्मा है)।
प्रश्न - आत्मा के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो(2) - जीवात्मा और परमात्मा
प्रश्न - जीवात्मा किसे कहते हैं ?
उत्तर - प्रत्येक शरीर में भिन्न रूप से निवास करने वाली तथा जो विभु और नित्य है, वह जीवात्मा है।
प्रश्न - परमात्मा किसे कहते हैं ?
उत्तर - ईश्वर , सर्वज्ञ तथा जो एक है वह परमात्मा है।
प्रश्न - जीवात्मा और परमात्मा में क्या भेद है ?
उत्तर - जीवात्मा और परमात्मा में निम्नलिखित भेद है -
- परमात्मा नित्य ज्ञान का अधिकरण होता है, जबकि जीवात्मा में अनित्य ज्ञान विद्यमान रहता है।
- जीवात्मा शरीर में विद्यमान होने से शरीर को धारण करने वाला है, जबकि परमात्मा शरीर के बिना भी स्थित रहता है।
- जीवात्माओं में कुछ मुक्त एवं बद्ध होते हैं, जबकि परमात्मा नित्य मुक्त होता है।
- जीवात्मा में अधर्म, मिथ्याज्ञान और प्रमाद आदि विद्यमान रहते हैं, जबकि परमात्मा में अणिमा आदि ऐश्वर्य रहते हैं।
प्रश्न - आत्मा के अस्तित्व को कौन सा दर्शन स्वीकार करता है ?
उत्तर - चार्वाक को छोड़कर सम्पूर्ण भारतीय दर्शन ।
प्रश्न - मन का क्या लक्षण है ?
उत्तर - सुखाद्युपलब्धिसाधनमिन्द्रियं मनः(सुख आदि की उपलब्धि का साधन इन्द्रिय ही मन है और वह प्रत्येक आत्मा के साथ नियम से रहने के कारण अनन्त, परमाणुरूप एवं नित्य है)।
प्रश्न - मन किस प्रकार की इन्द्रिय है ?
उत्तर - अन्तरिन्द्रिय
प्रश्न - मन की व्युत्पत्ति क्या होगी ?
उत्तर - "मन्यते ज्ञायते अनेन इति मनः ।"
प्रश्न - 'स्पर्शरहितत्वे सति क्रियात्त्वम्' अर्थात् जो स्पर्शरहित रहते हुए भी क्रियावान् रहता है, उसे 'मन' कहते हैं, यह किसने कहा है ?
उत्तर - दीपिका टीका में अन्नम्भट्ट ने ।
प्रश्न - आत्मा और मन दोनों को नित्य मानते हुए भी इसके संयोग को नित्य नहीं मानते हैं ?
उत्तर - अन्नम्भट्ट ।
प्रश्न - मन की नित्यता कैसे सिद्ध होती है ?
उत्तर - परमाणुरूप होने के कारण ।
प्रश्न - गुण का क्या लक्षण है ?
उत्तर - "द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम् (अर्थात् जो द्रव्य में आश्रित हो, गुणरहित हो और संयोग तथा विभाग के प्रति स्वतन्त्र कारण न हो वह गुण है)।
प्रश्न- अन्नम्भट्ट के अनुसार गुण की परिभाषा क्या है ?
उत्तर - तर्कसंग्रह की दीपिका टीका में गुण की दो परिभाषायें हैं -
- 'गुणत्वजातिमान्' अर्थात् गुणत्वजाति से जो युक्त है वह गुण है।
- 'द्रव्यकर्मभिन्नत्वे सति सामान्यवान्' अर्थात् द्रव्य और कर्म से भिन्न होते हुए जो सामान्य (गुणत्व जाति) का आश्रय हो, वह गुण है।
प्रश्न - वैशेषिक के अनुसार 'सामान्य' कितने पदार्थों में रहता है ?
उत्तर - तीन(3) - द्रव्य, गुण तथा कर्म में।
प्रश्न - कणाद ने कितने प्रकार के गुणों का उल्लेख किया है ?
उत्तर - सत्रह प्रकार के गुणों का ।
प्रश्न - प्रशस्तपाद के अनुसार गुणों की संख्या कितनी है ?
उत्तर - चौबीस(24)। गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म तथा शब्द ये सात और गुण गिनाये हैं।
प्रश्न- प्रशस्तपाद ने चौबीस गुणों का वर्गीकरण कितने रूपों में किया है?
उत्तर - तीन(3) - मूर्त, अमूर्त एवं मूर्तामूर्तगुण (उभयगुण) ।
प्रश्न - मूर्त गुण कौन- कौन हैं ?
उत्तर - रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, वेग एवं स्थितिस्थापक (संस्कार)।
प्रश्न - अमूर्तगुण कौन- कौन हैं ?
उत्तर - बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, शब्द, भावना (संस्कार) ।
प्रश्न - मूर्तामूर्त गुण (उभयगुण) कितने हैं ?
उत्तर- पाँच(5) - संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग एवं विभाग ।
प्रश्न - विशेष गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - विशेष से तात्पर्य उन गुणों से है, जो एक समय में एक ही द्रव्य में रहते हैं इसलिए विशेष गुण द्रव्यों के भेदक गुण होते हैं। जैसे - रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, स्नेह द्रवत्व (सांसिद्धिक), बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, शब्द, भावना (संस्कार)
प्रश्न - सामान्य गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - सामान्य गुण वे हैं जो एक साथ दो या उससे अधिक द्रव्यों में रहते हैं। जैसे - संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व (नैमित्तिक), वेग (संस्कार) ।
- द्वीन्द्रियग्राह्यगुण - संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, स्नेह, तथा वेग ( स्थितिस्थापक)।
- बाह्येन्द्रिय ग्राह्यगुण - रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, तथा शब्द ।
- अतीन्द्रिय गुण- गुरुत्व, धर्म, अधर्म तथा भावना।
- अन्तरिन्द्रिय गुण - बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, तथा प्रयत्न ।
प्रश्न - गुण पदार्थ की क्या विशेषतायें हैं ?
उत्तर - गुण पदार्थ की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
- गुण 'गुणत्व' जाति से युक्त होते हैं। गुण सदा द्रव्यों में ही आश्रित होते हैं।
- गुण में गुण नहीं रहते।
- गुण में क्रिया भी नहीं पायी जाती।
- गुण संयोग और विभाग का साक्षात् कारण नहीं है।
- गुण अपने कार्य का असमवायिकारण है।
- गुण एक ऐसा धर्म है जो द्रव्य में समवाय सम्बन्ध से रहता है।
प्रश्न - वैशेषिकदर्शन के चौबीस गुणों में परिगणित प्रथम गुण क्या है ?
उत्तर - रूप ।
प्रश्न - रूप का क्या लक्षण है ?
उत्तर - चक्षुर्मात्रग्राह्यो गुणो रूपम्(नेत्र मात्र से ग्रहण किया जाने वाला गुण रूप है)।
प्रश्न - रूप के कितने भेद हैं ?
उत्तर - सात(7)। शुक्ल, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश, चित्रभेदात् सप्तविधम् ।
प्रश्न - रूप गुण किन द्रव्यों में रहता है ?
उत्तर - रूप गुण पृथिवी, जल तथा तेज में रहता है (पृथिवी जल-तेज-वृत्ति:) ।
प्रश्न - किसमें सातों प्रकार के रूप रहते हैं ?
उत्तर - पृथिवीं में सातों प्रकार के रूप रहते हैं ('पृथिव्यां सप्तविधम्')।
प्रश्न - जल में किस प्रकार का शुक्लत्व रहता है ?
उत्तर - अभास्वर(नहीं चमकने वाला) शुक्ल रहता है('अभास्वरशुक्लं जले')।
प्रश्न - तेज द्रव्य में किस प्रकार का शुक्लत्व रहता है ?
उत्तर - भास्वर (चमकने वाला) शुक्ल होता है(भास्वरशुक्लं तेजसि)।
प्रश्न - तेज किस इन्द्रिय का सहकारी है ?
उत्तर - चक्षुरिन्द्रिय का।
प्रश्न - कौन पृथिवी, जल और तेज के प्रत्यक्ष में कारण होता है ?
उत्तर - रूप गुण ।
प्रश्न - किन वस्तुओं का रूप पाकज होता है ?
उत्तर - पार्थिव वस्तुओं का ।
प्रश्न - अपाकज रूप किसमें होता है ?
उत्तर - जल और तेज में ।
प्रश्न - पार्थिव रूप अनित्य क्यों होता है ?
उत्तर - पाकज होने के कारण ।
प्रश्न - जल और तेज के परमाणुओं का रूप अनित्य क्यों होता है ?
उत्तर - अपाकज होने के कारण।
प्रश्न - कौन सा गुण द्रव्य में व्याप्यवृत्ति होकर रहता है ?
उत्तर - रूप गुण ।
प्रश्न - रस का क्या लक्षण है ?
उत्तर - "रसनाब्राह्मो गुणो रसः"(रसनेन्द्रिय के द्वारा ग्रहण किया जाने वाला गुण रस है)।
प्रश्न - रस के कितने भेद हैं ?
उत्तर - छह(6) भेद । - "मधुराम्ललवणकटुकषायतिक्तभेदात् षड्विधः" ।
प्रश्न - रस की स्थिति किन द्रव्यों में होती है ?
उत्तर - पृथिवी तथा जल नामक द्रव्यों में।
प्रश्न - पृथिवी में कितने प्रकार के रस होते हैं ?
उत्तर - छः(6) प्रकार के।
प्रश्न - जल में कौन सा रस पाया जाता है ?
उत्तर - केवल मधुर रस।
प्रश्न - रस नामक गुण की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर - रस नामक गुण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
- यह 'रस' नामक विशेष गुण पृथिवी एवं जल में रहता है, किसी अन्य द्रव्य में नहीं।
- इसका ज्ञान केवल रसना के द्वारा होता है।
- यह रसना का सहकारी है।
- यह 'रस' द्रव्य में व्याप्यवृत्ति होकर रहता है।
- यह रस गुण स्वप्रत्यक्ष में कारण होता है।
- जल का रस मधुर होता है।
- रस केवल पार्थिव वस्तुओं में पाया जाता है।
- पार्थिव वस्तुओं का रस पाकज और जल का रस अपाकज होता है।
- केवल जल परमाणु का रस नित्य है, शेष अनित्य ।
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