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परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

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 रात तक़रीबन 9 बजे दफ़्तर से लौटने के क्रम में प्रफुल्ल बाबू की चमचमाती मर्सिडीज कार जैसे ही उनके घर के मुख्य फाटक में घुसी,ड्यूटी पर तैनात सु...

 रात तक़रीबन 9 बजे दफ़्तर से लौटने के क्रम में प्रफुल्ल बाबू की चमचमाती मर्सिडीज कार जैसे ही उनके घर के मुख्य फाटक में घुसी,ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी तेज़ी से दौड़कर उनके पास पहुंचा औऱ उन्हें सैल्यूट करते हुए कहा...“साहब, एक महिला आपके लिए लिखी गई किसी व्यक्ति की एक चिट्ठी लेकर न जाने कब से यहाँ भटक रही हैं औऱ बार बार आपसे मिलने का अनुरोध कर रही है। मेरे मना करने के बाद भी यहाँ से भाग नहीं रही है , उसके साथ उसका एक बच्चा भी है ।” 

  प्रफुल्ल जी ने गार्ड की बातों को सुन बेहद अचरज से उस महिला को अपने नज़दीक बुलाया औऱ उससे जानना चाहा..."आप कहाँ से आई हैं और मुझसे क्यों मिलना चाहती हैं , किसने मुझें ये चिट्ठी लिखी है" ??

  कपकपाती हाथों से महिला ने बिना कुछ ज़्यादा बोले प्रफुल्ल जी को एक चिट्ठी पकड़ाई औऱ फ़िर मद्धिम आवाज़ में सिसकते हुए बोली...." साहब, मैं अभागन बड़ी भयानक मुसीबत में हूँ , तत्काल आपकी मदद चाहिए , आपके पिताजी ने मुझें ये चिट्ठी देकर आपके पास भेजा है ।मेरा एकलौता बेटा बहुत बीमार है । इसे किसी भी तरह किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए ।आपका जीवनभर उपकार रहेगा ।गांव में इसके इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मज़बूरी में मैं आपके पास आई हूँ "। चिट्ठी देते हुए महिला प्रफुल्ल जी के सामने अपना दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गई ।

  प्रफुल्ल जी ने उस चिट्ठी को ध्यान से पढ़ा और कुछ पल के बाद बेहद गंभीर व शांत हो गए । उसके बाद वे मैली कुचैली साड़ी पहनी क़भी उस महिला की तरफ़ अपनी आँखें फेरते तो क़भी उस चिट्ठी की तरफ़ । कुछ देर तक बेहद गहरी चिंता में प्रफुल्ल बाबू गोताखोरी करते रहे । दरअसल उस चिट्ठी के साथ साथ वो महिला अपने गंभीर रूप से बीमार बच्चे को लेकर उनके पास इलाज़ हेतु मदद के लिए अपने गांव से शहर पहुँची थी ।

"आप कब से मेरा इंतज़ार कर रही हैं । क्या आपने कुछ खाया है ? प्रफुल्ल जी ने महिला से जानना चाहा । इसके उत्तर में महिला कुछ बोल न सकी , बस उनको लगातार एक टक देखती रही । प्रफुल्ल जी ने उसी क्षण अपने सुरक्षाकर्मी को बोल उस महिला औऱ उसके बीमार बच्चे के लिए अपने आउट गेस्ट रूम में रहने का इंतजाम करवाया औऱ फ़िर वहीं कुछ देर बाद दोनों के लिए भोजन का प्रबंध किया गया । उन दोनों के भोजन करते करते प्रफुल्ल जी फ़िर अपने मोबाइल फोन से किसी से कुछ बात करते हुए उनके सामने उपस्थित हो गए ।

   महिला ने पुनः उनसे फरियाद करते हुए कहा..."साहब , भगवान के लिए मेरी मदद कीजिए और मेरे एकलौते बीमार बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए , नहीं तो इसका बचना मुश्किल है "। महिला बोलते बोलते उनके पैरों पर गिर पड़ी ।

"अरे माताजी ऐसा मत कीजिए, आप मेरी मां समान हैं , आप चिंता मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा" - प्रफुल्ल बाबू ने उसकी हिम्मत बढ़ाई ।

   इतने में रात के बेहद ख़ामोश सन्नाटे को चीरती हुई हॉर्न बजाती एक दूसरी गाड़ी तेज़ी से घर के अंदर घुसी औऱ कुछ पल बाद एक डॉक्टर वहाँ उपस्थित हुए ।

"आईए डॉक्टर साहब , ये बच्चा बीमार है , इसको ज़रा बेहद गंभीरता से पड़ताल कर इसका इलाज़ कीजिए" - प्रफुल्ल जी ने कहा ।

  डॉक्टर बाबू ने बिना अपना वक़्त गवाएं तकरीबन बीस मिनट तक उस बच्चे का गहन निरीक्षण किया औऱ फ़िर कुछ जाँच करने के साथ साथ कुछ दवाईयों की पर्ची भी वहाँ खड़े प्रफुल्ल बाबू के हाथों में पकड़ा दी ।

  "ये कुछ दवाइयां औऱ इंजेक्शन मेडिकल स्टोर से तत्काल मंगा लीजिए , अभी देने हैं और मैं अपने साथ जांच के लिए इस बच्चे का रक्त नमूना लेकर जा रहा हूँ ,इनके रिपोर्ट लेकर कल फ़िर आऊंगा" डॉक्टर ने प्रफुल्ल बाबू से कहा औऱ फिर वहां से निकल गए ।

  प्रफुल्ल बाबू ने डॉक्टर की पर्ची औऱ कुछ पैसे अपने ड्राइवर को पकड़ाते हुए उसे तुरंत सारी दवाइयां लाने का निर्देश दिया औऱ फ़िर ख़ुद अपने घर के अंदर जाने के लिए वहाँ से बरामदे की ओर मुड़े ।

  "साहब बस आप मेरे बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करा देते , मैं ग़रीब कहाँ से दे पाऊंगी इलाज़ के इतने पैसे, मेरे पास तो रहने खाने के भी पैसे नहीं हैं"....महिला गिड़गिड़ाई ।

  "माता जी , बस आप निश्चिंत रहें और जाकर आराम करें , रात बहुत हो चुकी है ".....इतना कहकर प्रफुल्ल बाबू वहां से निकल अपने घर के अंदर प्रवेश कर गए ।

   सुबह डॉक्टर बाबू बच्चे के तमाम रिपोर्ट के साथ फ़िर हाज़िर हुए और उसे एक दो इंजेक्शन तथा कुछ दवाइयां दीं । अपने दफ़्तर जाने से ठीक पहले प्रफुल्ल बाबू ने भी बीमार बच्चे के साथ साथ उस महिला का अच्छी तरह से ख़ैर मखदम लिया और सबको उन दोनों का बेहतर ख़याल रखने के लिए निर्देशित कर वहाँ से निकल गए । प्रफुल्ल बाबू एक निजी दूरसंचार कंपनी में बड़े ओहदे पर कार्यरत थे । डॉक्टर बाबू अब नियमित रूप से आकर उस बीमार बच्चे की जाँच करते औऱ साथ ही बेहतर ढंग से उसका इलाज़ भी ।

प्रफुल्ल बाबू भी सुबह शाम जब भी उनको समय मिलता उन दोनों की खोज ख़बर ले लेते । महिला जब भी उनको देखती रोते हुए उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती , हालांकि प्रफुल्ल बाबु उसको बार बार औऱ लगातार ये न करने के लिए कहते रहते ।

   दिन बीतने के साथ साथ बच्चे का नियमित रूप से बेहतर इलाज़ होता रहा , साथ ही रहने खाने का भी भरपूर ख़याल रखा जाता । तक़रीबन एक महीने के बाद जब बच्चा पूरी तरह से तंदरुस्त हो गया तो महिला प्रफुल्ल बाबू के सामने जाकर बोली . ."साहब, मेरा बच्चा बिलकुल ठीक हो चुका है , हम अब वापस अपने गांव जाना चाहते हैं । आपने जो मेरे लिए किया उसके लिए मैं जीवन भर आपका औऱ आपके पिता कृष्णकांत जी का एहसानमंद रहूंगी"।

   जब वो महिला अपने बच्चे के साथ वहाँ से विदा होने लगी तो प्रफुल्ल बाबू ने कुछ रुपयों के साथ दोनों को नए कपड़े औऱ दो जोड़ी नए चप्पल उपहार स्वरूप दी औऱ साथ ही उसे एक चिट्ठी भी देते हुए कहा कि "इसे उन्हें ही दे दीजिएगा जिन्होंने आपको यहाँ भेजा था "। महिला हाथ जोड़कर कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए उन्हें लगातार अनगिनत दुआएं देती वहाँ से बढ़ चली ।

  ठीक दूसरे ही दिन अपने गाँव पहुँच कृष्णकांत जी को वह चिट्ठी देते हुए महिला उनसे प्रफुल्ल जी की बहुत तारीफ़ करने लगी। “ बाबा , आपका बेटा तो देवता है देवता , कितना ख़याल रखा हमारा । ऐसा बेटा किस्मत वाले को नसीब होता है, ऊपरवाला उन्हें औऱ उनके समूचे परिवार को हमेशा सलामत रखे ।”

  कृष्णकांत जी उस चिट्ठी को पढ़कर दंग रह गए । उसमें लिखा था, “ परम आदरणीय बाबू जी ,मैं आपको नहीं जानता औऱ न ही क़भी आपसे मिला हूँ लेकिन अब आपका बेटा इस पते पर नहीं रहता । कुछ महीने पहले ही उसने ये मकान बेच दिया है । अब मैं यहाँ रहने लगा हूँ, पर मुझे भी आप अपना बेटा ही समझिए । बचपन से ही मैं अपने पिता से महरूम रहा हूँ , लेकिन मैंने जब आपका पत्र पढ़ा तो मुझें ऐसा लगा जैसे मेरे सगे बाप ने मुझें कुछ करने के लिए आदेश दिया है । आप कृपया इनसे कुछ मत कहिएगा। आपकी वजह से मुझे इस माता के द्वारा जितना आशीर्वाद और दुआएँ मिली हैं, उस उपकार के लिए मैं आपका ताउम्र ऋणी रहूँगा । आपका अपना प्रफुल्ल शर्मा ।”

  कुछ बेहद ख़ामोश लम्हों के बाद कृष्णकांत जी का सिर कुछ सोचकर ख़ुद ब ख़ुद उस अनजान पवित्र आत्मा के सम्मान में झुक गया औऱ उनकी आंखें तो नम थीं ही । इसीलिए तो गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है -

परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

परपीड़ा सम नहीं अधमाई ॥


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भागवत दर्शन: परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
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