निर्जला एकादशी माहात्म्य एवं व्रत विधि

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स्तोत्र पाठ,कर्मकाण्ड,व्रत एवं उपवास,सूरज कृष्ण शास्त्री,

   ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।

  हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस दिन जल कलश, गौ का दान बहुत पुण्य देने वाला माना गया है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। वर्ष में अधिकमास की दो एकादशियों सहित 26 एकादशी व्रत का विधान है। जहाँ साल भर की अन्य 25 एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी जरुरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है।

   ऐसी धार्मिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति मात्र निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की पच्चीस एकादशी का फल पा सकता है। यहाँ तक कि अन्य एकादशी के व्रत भंग होने के दोष भी निर्जला एकादशी के व्रत से दूर हो जाते हैं। कुछ व्रती इस दिन एक भुक्त व्रत भी रखते हैं यानि सांय दान-दर्शन के बाद फलाहार और दूध का सेवन करते हैं।

निर्जला एकादशी पूजा विधि

   इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्त्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है। एकादशी के दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पश्चात् 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करे। इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफ़ेद वस्त्र को उस पर ढककर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। तदोपरान्त नियमानुसार नारायण कवच का पाठ करें। पाठ के बाद भगवान नारायण की आरती करें।

निर्जला एकादशी व्रत विधि 

  उत्तर दिशा में मुख करके बैठ जाएं। तत्पश्चात 3 बार आचमन करके आसन एवं देह की शुद्धि करके न्यास करें -

ॐ नमः पादयोः। 

ॐ नं नमो जान्वोः। 

ॐ मों नमः ऊर्वो:। 

ॐ नां नमः उदरे। 

ॐ रां नमो हृदि। 

ॐ यं नमो उरसि। 

ॐ णां नमो मुखे। 

ॐ यं नमः शिरसि।

ॐ नमो दक्षिणतर्जन्याम्

ॐ नं नमो दक्षिणमध्यमायाम्

ॐ मों नमो दक्षिणानामिकायाम्

ॐ भं नमो दक्षिणकनिष्ठिकायाम् 

ॐ गं नमो वामकनिष्ठिकायाम्

ॐ वं नमो वामानामिकायाम्

ॐ तें नमो वाममध्मायाम्

ॐ वां नमो वामतर्जन्याम् 

ॐ सुं नमः दक्षिणांगुष्ठोर्ध्वपर्वणि

ॐ दें नमो दक्षिणांगुष्ठाधःपर्वणि

ॐ वां नमो वामान्गुष्ठोर्ध्वपर्वणि 

ॐ यं नमो वामाङ्गाष्ठाधः पर्वणि

इन मंत्रो से तत्तदंगों में न्यास करके निम्नलिखित मन्त्र से दिग्बन्धन करें –

ॐ मः अस्त्राय फट् प्राच्याम् 

ॐ मः अस्त्राय फट् आग्नेय्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् दक्षिणस्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् नैर्ऋत्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् प्र्तीच्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् वायव्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् कौबेर्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् ईशान्याम्

ॐ मः अस्त्राय फट् ऊर्ध्वायाम्

ॐ मः अस्त्राय फट् अधरायाम् 

इसके बाद नारायण कवच का पाठ करें -

॥ अथ नारायणकवचम् ॥

                          राजोवाच 

यया गुप्तः सहस्राक्षः सवाहान्रिपुसैनिकान् ।

क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ॥1॥

भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् ।

यथाऽऽततायिनः शत्रून् येन गुप्तोऽजयन्मृधे ॥2॥

                   श्रीशुक उवाच

वृतः पुरोहितस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते ।

नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु ॥3॥

                   विश्वरूप उवाच

धौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ्मुखः ।

कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः ॥4॥

नारायणमयं वर्म सन्नह्येद्भय आगते ।

दैवभूतात्मकर्मभ्यो नारायणमयः पुमान् |

पादयोर्जानुनोरूर्वोरुदरे हृद्यथोरसि ॥5॥

मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत् ।

ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा ॥6॥

करन्यासं ततः कुर्याद्द्वादशाक्षरविद्यया ।

प्रणवादियकारान्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु ॥7॥

न्यसेद्धृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि ।

षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत् ॥8॥

वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु ।

मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद्बुधः ॥9॥

सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत् ।

ॐ विष्णवे नम इति ॥10॥

आत्मानं परमं ध्यायेद्ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम् ।

विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत् ॥11॥

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां

न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।

दरारिचर्मासिगदेषुचाप-

पाशान्दधानोऽष्टगुणोऽष्टबाहुः ॥12॥

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्ति-

र्यादोगणेभ्यो वरुणस्य पाशात् ।

स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात्

त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥13॥

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः

पायान्नृसिंहोऽसुरयूथपारिः ।

विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं

दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥14॥

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः

स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः ।

रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे

सलक्ष्मणोऽव्याद्भरताग्रजोऽस्मान् ॥15॥

मामुग्रधर्मादखिलात्प्रमादा-

न्नारायणः पातु नरश्च हासात् ।

दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः

पायाद्गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥16॥

सनत्कुमारोऽवतु कामदेवा-

द्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् ।

देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात्

कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥17॥

धन्वन्तरिर्भगवान्पात्वपथ्या-

द्द्वन्द्वाद्भयादृषभो निर्जितात्मा ।

यज्ञश्च लोकादवताञ्जनान्ता-

द्बलो गणात्क्रोधवशादहीन्द्रः ॥18॥

द्वैपायनो भगवानप्रबोधा-

द्बुद्धस्तु पाखण्डगणप्रमादात् ।

कल्किः कलेः कालमलात्प्रपातु

धर्मावनायोरुकृतावतारः ॥19॥

मां केशवो गदया प्रातरव्या-

द्गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः ।

नारायणः प्राह्ण उदात्तशक्ति-

र्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥20॥

देवोऽपराह्णे मधुहोग्रधन्वा

सायं त्रिधामावतु माधवो माम् ।

दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे

निशीथ एकोऽवतु पद्मनाभः ॥21॥

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः

प्रत्युष ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।

दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते

विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥22॥

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि

भ्रमत्समन्ताद्भगवत्प्रयुक्तम् ।

दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु

कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥23॥

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे

निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।

कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षो-

भूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥24॥

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृ-

पिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।

दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो

भीमस्वनोऽरेहृदयानि कम्पयन् ॥25॥

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्य-

मीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि ।

चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय

द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥26॥

यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत्केतुभ्यो नृभ्य एव च ।

सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य वा ॥27॥

सर्वाण्येतानि भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।

प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयःप्रतीपकाः ॥28॥

गरुडो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः ।

रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥29॥

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः ।

बुद्धीन्द्रियमनःप्राणान्पान्तु पार्षदभूषणाः ॥30॥

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसच्च यत् ।

सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥31॥

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम् ।

भूषणायुधलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ॥32॥

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः ।

पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥33॥

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्ता-

दन्तर्बहिर्भगवान्नारसिंहः।

प्रहापयंलोकभयं स्वनेन

स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥34॥

मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारायणात्मकम् ।

विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ॥35॥

एतद्धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा ।

पदा वा संस्पृशेत्सद्यः साध्वसात्स विमुच्यते ॥36॥

न कुतश्चिद्भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत् ।

राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥37॥

इमां विद्यां पुरा कश्चित्कौशिको धारयन् द्विजः ।

योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरुधन्वनि ॥38॥

तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा ।

ययौ चित्ररथः स्त्रीभिर्वृतो यत्र द्विजक्षयः ॥39॥

गगनान्न्यपतत्सद्यः सविमानो ह्यवाक्षिराः ।

स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः ।

प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ॥40॥

श्रीशुक उवाच

य इदं शृणुयात्काले यो धारयति चादृतः ।

तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ॥41॥

एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः ।

त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्य मृधेऽसुरान् ॥42॥

॥ इति श्रीमद्भागवतमहापुराणे पारमहंस्यां संहितायां षष्ठस्कन्धे नारायणवर्मकथनं नामाष्टमोऽध्यायः ॥


निर्जला एकादशी के दान

   इस एकादशी का व्रत करके यथा सामर्थ्य अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फलादि का दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है। भक्ति भाव से कथा श्रवण करते हुए भगवान का कीर्तन करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत की कथा

  निर्जला एकादशी व्रत का पौराणिक महत्त्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था।

  युधिष्ठिर ने कहा- जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये।

  भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं|

  तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान करके पवित्र हो और फूलों से भगवान केशव की पूजा करे। फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे।

  यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिये। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी।

  भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना।

  भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि ! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।

   व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे। वर्षभर में जितनी एकादशियाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।’

  एकादशी व्रत करने वाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते। अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाव वाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आख़िर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं। अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो। स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है। जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है। उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है। मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है। निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है। इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है।

  जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे। जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं।

  कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो- उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है। पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठानों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं। जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है। पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि "मैं भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा।" द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे।

   संसारसागर से तारने वाले हे देव ह्रषीकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये। 

  भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया। तबसे यह लोक में ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई।

 

श्रीभगवान जगदीश्वर जी की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।

सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।

मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।

करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…

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अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
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भागवत दर्शन: निर्जला एकादशी माहात्म्य एवं व्रत विधि
निर्जला एकादशी माहात्म्य एवं व्रत विधि
स्तोत्र पाठ,कर्मकाण्ड,व्रत एवं उपवास,सूरज कृष्ण शास्त्री,
भागवत दर्शन
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