ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित दारिद्रयदहन शिवस्तोत्र

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय 

कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय । 

कर्पूरकान्ति धवलाय जटाधराय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥ १ ॥

भावार्थ-समस्त चराचर विश्व के स्वामीरूप विश्वेश्वर, नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले, कानों से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा आभूषणरूप में धारण करने वाले, कर्पूर की कान्ति के समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।१।।

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय 

कालान्तकाय भुजगाधिप कंकणाय । 

गंगाधराय गजराज विमर्दनाय 

द्रारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥२॥ 

भावार्थ - माता गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अन्तक (यम) रूप, नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।२।।

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय 

उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय । 

ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥३॥

भावार्थ-भक्तिप्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले, ज्योति:स्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ॥३॥ 

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय 

भालेक्षणाय मणिकुण्डल मण्डिताय । 

नूपूरपादयुगलाय जटाधराय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥४॥ 

भावार्थ- व्याघ्रचर्मधारी, चिताभस्म को लगाने वाले, भालमें तीसरा नेत्र धारण करने वाले, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।४।।

पंचाननाय फणिराज विभूषणाय 

स्वर्णांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय । 

आनन्दभूमि वरदाय तमोमयाय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥५॥

भावार्थ- पांच मुख वाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्र वाले अथवा सुवर्ण के समान किरणवाले, तीनों लोकों में पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले, सृष्टि के संहार के लिए तमोगुणाविष्ट होने वाले तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ॥५॥

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय 

कालान्तकाय कमलासन पूजिताय । 

नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥६॥ 

भावार्थ- सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिए भी महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा) से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से युक्त तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।६।।

रामप्रियाय रघुनाथ वरप्रदाय 

नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय । 

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ।।७।।

भावार्थ- मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय अथवा राम से प्रेम करने वाले, रघुनाथजी को वर देने वाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में अत्यन्त पुण्य वाले, समस्त देवताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है । । ७॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय 

गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय । 

मातंगचर्म वसनाय महेश्वराय 

दारिद्रय दुःख दहनाय नमः शिवाय ॥ ८ ॥ ॥

भावार्थ- मुक्तजनों के स्वामीरूप, चारों पुरुषार्थों के फल को देने वाले, प्रमथादिगणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय, नन्दीवाहन, गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले, महेश्वर तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।८।।

स्तोत्र पाठ का फल

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोग निवारणम् । 

सर्व सम्पत्रं शीघ्रं च पुत्रपौत्रादि वर्धनम् । 

त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ।। 

भावार्थ- ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र समस्त रोगों को दूर करने वाला, शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करने वाला और पुत्र-पौत्रादि वंश-परम्परा को बढ़ाने वाला है। इस स्तोत्र का जो मनुष्य नित्य तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।९।।


।। इति श्रीवशिष्ठविरचितं दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्।। 

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