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वैशेषिक दर्शन प्रश्नोत्तरी भाग 9 प्रमाण लक्षण से शाब्दज्ञान तक

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Important question answer of vaisheshik darshan
 Important question answer
of vaisheshik darshan

प्रश्न - प्रमाण किसे कहते हैं ?

उत्तर - प्रमायाः करणं प्रमाणम्, अर्थात्-  प्रमा के करण अर्थात् असाधारणकारण को प्रमाण कहा जाता है।

प्रश्न - चार्वाक दर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - एक(1) - प्रत्यक्ष ।

प्रश्न - जैन दर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - दो(2) - प्रत्यक्ष एवं परोक्ष ।

प्रश्न - बौद्धदर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - दो(2) - प्रत्यक्ष एवं अनुमान ।

प्रश्न - वैशेषिकदर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - दो(2) प्रत्यक्ष एवं अनुमान ।

प्रश्न - सांख्य एवं योग दर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - तीन(3)  - प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आप्तवचन (शब्द) ।

प्रश्न - न्याय दर्शन कितने प्रमाण मानता है ?

उत्तर - चार(4)प्रमाण -  प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा शब्द प्रमाण ।

प्रश्न - प्रभाकर मीमांसक कितने प्रमाण मानते हैं ?

उत्तर - पाँच(5) - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द और अर्थापत्ति ।

प्रश्न - भाट्टमीमांसक कितने प्रमाण मानते हैं ?

उत्तर - छः(6) - प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि ।

प्रश्न - वेदान्त दर्शन कितने प्रमाण स्वीकार करता है ?

उत्तर - छः(6) - प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि ।

प्रश्न - पौराणिक कितने प्माण मानते हैं ?

उत्तर - आठ(8) प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान शब्द अर्थापत्ति, अनुपलब्धि और सम्भव।

प्रश्न - शून्यवादी बौद्ध  कितने प्रमाण मानते हैं ?

उत्तर - कोई नहीं।

प्रश्न - किस विद्वान् दार्शनिक ने उपमान एवं शब्द प्रमाण के स्थान पर क्रमशः स्मृति तथा आर्षज्ञान को माना है ?

उत्तर -  प्रशस्तपाद ने ।

प्रश्न - प्रमाण की व्युत्पत्ति क्या होगी ?

उत्तर -  'प्रमीयते अनेन इति प्रमाणम्' ।

प्रश्न - उपलब्धिसाधनानि प्रमाणानि, यह किसका कथन है ?

उत्तर - वात्स्यायन का। इन्होने उपलब्धि अर्थात् ज्ञान के साधन को प्रमाण माना है।

प्रश्न - करण किसे कहते हैं ?

उत्तर - असाधारणं कारणं करणम् , अर्थात् - असाधारण कारण करण है।

प्रश्न - कारण किसे कहते हैं ?

उत्तर - कार्यनियतपूर्ववृत्तिकारणम्, अर्थात् - कार्य के पूर्व नियतरूप से रहने वाला कारण है।

प्रश्न - कार्य का क्या लक्षण है ?

उत्तर - प्रागभावप्रतियोगि कार्यम्, अर्थात् -  प्रागभाव का प्रतियोगी कार्य है।

प्रश्न - कारण के कितने भेद हैं ?

उत्तर - तीन(3) -(१) समवायिकारण (२) असमवायिकारण (३) निमित्तकारण।

प्रश्न - समवायिकारण किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'यत्समवेतं कार्यमुत्पद्यते तत्समवायिकारणम्' अर्थात्, जिसमें समवाय सम्बन्ध से कार्य उत्पन्न होता है, वह समवायिकारण है।

प्रश्न - असमवायिकारण किसे कहते हैं ?

उत्तर - "कार्येण कारणेन वा सहैकस्मिन्नर्थे समवेतत्वे सति यत्कारणं तद् असमवायिकारणम्' अर्थात् - कारण के साथ एक पदार्थ में समवेत होने पर जो कारण है, वह असमवायिकारण है। यथा (१) तन्तुसंयोगः पटस्य (२) तन्तुरूपं पटरूपस्य कार्य अथवा  यथा- पट का तन्तु संयोग तथा पटरूप का तन्तुरूप असमवायिकारण है।

प्रश्न - निमित्तकारण का क्या लक्षण है ?

उत्तर - 'तदुभयभिन्नं कारणं निमित्तकारणम्' अर्थात् - समवायि एवं असमयवायि दोनों कारणों से भिन्न निमित्तकारण हैं जैसे- पट का तुरी, वेमा आदि। 

प्रश्न - समवायि, असमवायि और निमित्त कारणों में असाधारण कारण क्या कहलाता है ?

उत्तर - करण।

प्रश्न - प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'प्रत्यक्षज्ञानकरणं प्रत्यक्षम् ' प्रत्यक्षज्ञान का करण प्रत्यक्ष है, अथवा  "इन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम् इन्द्रिय तथा पदार्थ के सन्निकर्ष अर्थात् संयोग से उत्पन्न होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष है।

प्रश्न - प्रत्यक्ष की व्युत्पत्ति क्या होगी ?

उत्तर - ‘प्रतिगतम् अक्षं प्रत्यक्षम्’।

प्रश्न - प्रत्यक्ष प्रमाण के कितने भेद हैं ?

उत्तर - दो(2) - (1) निर्विकल्पक (2) सविकल्पक ।

प्रश्न - निर्विकल्पक  प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'निष्प्रकारकं ज्ञानं निर्विकल्पकम्, अर्थात् - निष्प्रकारक ज्ञान निर्विकल्पक है। यथा किञ्चिद् इदम् इति ( यह कुछ है)।

प्रश्न - सविकल्पक प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'सप्रकारकं ज्ञानं सविकल्पकम्, सप्रकारकज्ञान सविकल्पक है। यथा- डित्थोऽयम्, ब्राह्मणोऽयम्, श्यामोऽयम् ।

प्रश्न - प्रत्यक्षज्ञान का हेतु कौन है ?

उत्तर - इन्द्रियार्थसन्निकर्ष ।

प्रश्न - इन्द्रियार्थसन्निकर्ष कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर - छः(6) प्रकार का । (१) संयोग (२) संयुक्तसमवाय (३) संयुक्तसमवेत समवाय (४) समवाय (५) समवेतसमवाय (६) विशेषण विशेष्यभाव ।

प्रश्न - संयोगसन्निकर्ष का क्या लक्षण है ?

उत्तर -  'चक्षुषा घटप्रत्यक्षजनने संयोगः सन्निकर्षः' - चक्षु के द्वारा घट के प्रत्यक्ष ज्ञान में संयोग सन्निकर्ष होता है। 

प्रश्न - संयुक्तसमवायसन्निकर्ष क्या है ?

उत्तर - 'घटरूपप्रत्यक्षजनने संयुक्तसमवायः सन्निकर्षः' घट के रूप के प्रत्यक्षज्ञान में संयुक्तसमवाय सन्निकर्ष होता है, क्योंकि चक्षु से संयुक्त घट में रूप समवाय सम्बन्ध से रहता है।

प्रश्न - संयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष किसे कहते हैं ?

उत्तर -  'रूपत्वसामान्यप्रत्यक्षे संयुक्तसमवेतसमवायः सन्निकर्ष:'- रूपत्वजाति के प्रत्यक्ष में संयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष होता है, क्योंकि चक्षु से संयुक्त घट में रूप समवाय सम्बन्ध से तथा रूप में रूपत्व समवाय सम्बन्ध से रहता है।

प्रश्न - समवायसन्निकर्ष किसे कहते हैं ?

उत्तर - श्रोत्रेण शब्दसाक्षात्कारे समवायः सन्निकर्षः, अर्थात् - श्रोत्र (कर्ण) के द्वारा शब्द साक्षात्कार में समवायसन्निकर्ष होता है। कर्णविवर में विद्यमान आकाश ही श्रोत्र है। शब्द आकाश का गुण है तथा गुण एवं गुणी में समवाय सम्बन्ध होता है।

प्रश्न - समवेतसमवायसन्निकर्ष से क्या आशय है ?

उत्तर - 'शब्दत्वसाक्षात्कारे समवेतसमवायः सन्निकर्षः, अर्थात् - शब्द जाति के प्रत्यक्ष में समवेतसमवायसन्निकर्ष होता है, क्योंकि शब्द में शब्दत्व समवायसम्बन्ध से रहता है। 

प्रश्न - विशेषणविशेष्यभाव सन्निकर्ष किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'अभावप्रत्यक्षे विशेषणविशेष्यभावः सन्निकर्षः" अर्थात् - अभाव के प्रत्यक्ष में विशेषणविशेष्यभाव सत्रिकर्ष होता है क्योंकि 'भूतल घटाभाव वाला है' इस प्रकार के ज्ञान में चक्षु से संयुक्त भूतल में घटाभाव विशेषण है। 

प्रश्न - अनुमान किसे कहते हैं ?

उत्तर -  'अनुमितिकरणम् अनुमानम्' अनुमिति का करण अनुमान है।

प्रश्न - अनुमिति किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'परामर्शजन्यं ज्ञानम् अनुमितिः ' - परामर्श से उत्पन्न होने वाला ज्ञान अनुमिति है।

प्रश्न - परामर्श क्या है ?

उत्तर - 'व्याप्तिविशिष्टपचधर्मताज्ञानं परामर्शः, अर्थात् -  व्याप्ति से विशिष्ट पक्षधर्मताज्ञान को परामर्श कहते हैं। यथा वह्निव्याप्यधूमवान् अयं पर्वतः ' यह ज्ञान परामर्श हैं। वह्निव्याप्य यह पर्वत धूमवान् है। इसी परामर्श से उत्पन्न 'पर्वतो वह्निमान्' यह ज्ञान अनुमिति है।

प्रश्न - व्याप्ति किसे कहते हैं ?

उत्तर - यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र अग्निः' इति साहचर्यनियमो व्याप्तिः, अर्थात् - जहाँ जहाँ धूम है वहाँ वहाँ अग्नि हैं' - यह साहचर्य नियम व्याप्ति है।

प्रश्न - पक्षधर्मता क्या है ?

उत्तर - व्याप्यस्य पर्वतादिवृत्तित्वं पक्षधर्मता, अर्थात् व्याप्य का पर्वतादि में रहना पश्चधर्मता है।

प्रश्न - अनुमान के कितने भेद हैं ?

उत्तर - दो(2) - (१) स्वार्थानुमान (२) परार्थानुमान ।

प्रश्न - स्वार्थानुमान किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'स्वार्थं स्वानुमितिहेतुः, अर्थात् - अपने अनुमिति ज्ञान का हेतु स्वार्थानुमान  है। जैसे कोई स्वयं ही बार-बार देखकर 'जहाँ जहाँ धुआँ है वहाँ वहाँ अग्नि हैं इसप्रकार रसोईघर आदि में व्याप्ति को ग्रहण करके पर्वत के समीप जाकर उसमें अग्नि का सन्देह होने पर पर्वत में धूम को देखता हुआ 'जहाँ जहाँ धुआँ वहाँ वहाँ अग्नि' इस व्याप्ति का स्मरण करता है। तत्पश्चात् 'यह पर्वत अग्नि से व्याप्त धुएँ वाला है' यह ज्ञान उत्पन्न होता है। यही लिङ्गपरामर्श कहलाता है। इससे पर्वत वह्निमान् है, यह अनुमितिज्ञान उत्पन्न होता है। यही स्वार्थानुमान है।

प्रश्न - परार्थानुमान किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'यत्तु स्वयं धूमादग्निमनुमाय परं प्रति बोधयितुं पञ्चावयववाक्यं प्रयुज्यते तत्परार्थानुमानम्' जो स्वयं धूम से अग्नि का अनुमान करके दूसरें को समझाने के लिए पञ्चावयववाक्य का प्रयोग किया जाता है, वह परार्थानुमान है।

प्रश्न - परार्थानुमान के पञ्चावयव कौन-कौन हैं ?

उत्तर - प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमन । 

1. प्रतिज्ञा  - पर्वतो वह्निमान् (पर्वत वह्निमान् है)

2. हेतु  - धूमवत्त्वात् (क्योंकि वह धूमवान् है )

3. उदाहरण - यो यो धूमवान् स स वह्निमान् यथा- महानसः (जो जो धूमवान् होता है)

4. उपनय - तथा चायम् (उसीप्रकार यह है ) 

5. निगमन - तस्मात् तथा इति (अतः इसमें भी वैसी ही अग्नि है) 

प्रश्न - अनुमान का क्या लक्षण है ?

उत्तर - लिङ्गपरामर्शोऽनुमानम्। (लिङ्ग का परामर्श ही अनुमान है ।

प्रश्न - लिङ्ग के कितने भेद हैं ?

उत्तर - तीन(3) - (१) अन्वयव्यतिरेकी (२) केवलान्वयी (३) केवलव्यतिरेकी।

प्रश्न - अन्वयव्यतिरेकी किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'अन्वयेन व्यतिरेकेण च व्याप्तिमद् अन्वयव्यतिरेकि' अर्थात् अन्वय एवं व्यतिरेक से व्याप्तिमान् अन्वयव्यतिरेकी होता है । यथा - वह्नौ साध्ये धूमवत्त्वम् - वह्नि के साध्य होने पर धूमवत्त्व लिङ्ग । यत्र धूमः तत्र अग्निः यथा- महानसः - जहाँ धुआँ होता है, वहाँ आग होती है। जैसे रसोईघर। यह अन्वयव्याप्ति है। यत्र वह्निर्नास्ति तत्र धूमोऽपि नास्ति, यथा - ह्रदः, जहाँ आग नहीं होती वहाँ धुआँ नहीं होता, जैसे - सरोवर, यह व्यतिरेक व्याप्ति है।

प्रश्न - केवलान्वयी किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'अन्वयमात्रव्याप्तिकं केवलान्वयि' अर्थात् - अन्वयमात्र व्याप्ति वाला लिङ्ग केवलान्वयी है। यथा घटोऽभिधेयः प्रमेयत्वात् पटवत् जैसे - घट अभिधेय है क्योंकि वह प्रमेय है । यहाँ प्रमेयत्व तथा अभिधेयत्व की व्यतिरेक व्याप्ति नहीं है, क्योंकि सभी कुछ प्रमेय और अभिधेय है।

प्रश्न - केवलव्यतिरेकी किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'व्यतिरेकमात्रव्याप्तिक केवलव्यतिरेकि' अर्थात् - व्यतिरेक मात्र वाला लिङ्ग केवलव्यतिरेकी है। जैसे- पृथिवी इतर से भिन्न हैं, क्योंकि गन्धवती हैं, जो इतर से भिन्न नहीं है वह गन्धक्ती नहीं है, जैसे- जल यह पृथिवी वैसी (गन्धरहित ) नहीं है इसलिए उसके समान नहीं है यहाँ जो गन्धवान् है, वह इतर पदार्थों से भिन्न हैं । इसका अन्वय दृष्टान्त नहीं है क्योंकि पृथिवी मात्र ही पक्ष है।

प्रश्न - पक्ष किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'सन्दिग्धसाध्यवान् पक्षः, अर्थात् - जहाँ साध्य सन्दिग्ध रूप से पाया जाये, उसे पक्ष कहा जाता है। यथा धूमवत्त्वे हेतौ पर्वतः । जैसे- धूमवत्त्व हेतु में पर्वत ।

प्रश्न - सपक्ष किसे कहते हैं ?

उत्तर - निश्चितसाध्यवान् सपक्षः।' निश्चित साध्य वाला सपक्ष होता है। यथा- रसोईघर । 

प्रश्न - विपक्ष का क्या आशय है ?

उत्तर - 'निश्चितसाध्याऽभाववान् विपक्षः।' निश्चित साध्य का अभाव वाला विपक्ष होता है। जैसे- महासरोवर ।

प्रश्न - हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - हेतुवद् आभासन्ते इति हेत्वाभासः, अर्थात् - जो हेतु के समान भासित होता है किन्तु हेतु नहीं हो, वह हेत्वाभास कहलाता है। इसे दुष्ट हेतु या दोषयुक्त हेतु भी कहते हैं ।

प्रश्न - हेत्वाभास कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर - पाँच(5) -1.सव्यभिचार 2.विरुद्ध 3.सत्प्रतिपक्ष 4. असिद्ध 5. बाधित। 

प्रश्न - सव्यभिचारी किसे कहते हैं ?

उत्तर - जो अनैकान्तिक है वह सव्यभिचारी है।

प्रश्न - अनैकान्तिक का क्या आशय है ?

उत्तर - साध्य के अभाव में रहने वाला साधारण अनैकान्तिक है।

प्रश्न - सव्यभिचारी हेत्वाभास कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर - तीन(3) -  (१) साधारण (२) असाधारण (३) अनुपसंहारी 

प्रश्न - साधारण सव्यभिचारी हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर -  साध्य अभाववद्वृत्तिः साधारणोऽनैकान्तिकः। जैसे - पर्वतो वह्निमान् प्रमेयत्वात् इति पर्वत वह्निमान है, क्योंकि वह प्रमेय है। प्रमेयत्व वह्नि के अभाव वाले सरोवर में रहता है।

प्रश्न - असाधारण सव्यभिचारी हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - सर्वसपक्षविपक्षव्यावृत्तः पक्षमात्रवृत्तिरसाधारण:'अर्थात् - जो सपक्ष एवं विपक्ष में न रहकर केवल पक्ष में रहे, वह असाधारण है। यथा - शब्दो नित्यः शब्दत्वात् इति । जैसे- शब्द नित्य है, क्योंकि वह शब्द है। शब्द सारे नित्य एवं अनित्य में न रहकर केवल शब्द में रहता है।

प्रश्न - अनुपसंहारी सव्यभिचारी हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर -  'अन्वयव्यतिरेकदृष्टान्तरहितोऽनुपसंहारी' अर्थात् - अन्वय एवं व्यतिरेक दृष्टान्त से रहित हेत्वाभास अनुपसंहारी होता है। यथा - सर्वम् अनित्यं प्रमेयत्वात् इति । सब अनित्य है प्रमेयत्व के कारण । यहाँ 'सर्व' पक्ष है इसलिए दृष्टान्त नहीं है।

प्रश्न - तर्कभाषा में अनैकान्तिक(सव्यभिचारी) हेत्वाभास के कितने भेद कहे गए हैं ?

उत्तर -  दो(2) -  साधारण एवं असाधारण ।

प्रश्न - विरुद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'साध्याभावव्याप्ति हेतुर्विरुद्धः' अर्थात् - साध्य के अभाव से व्याप्त हेतु विरुद्ध हैं। यथा शब्दो नित्यः कृतकत्वात् इति। जैसे शब्द नित्य है कार्य होने के कारण यहाँ कृतकत्व नित्यत्व का अभाव अनित्यत्व से व्याप्त है।

प्रश्न - सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'यस्य साध्य - अभावसाधकं हेत्वन्तरं विद्यते स सत्प्रतिपक्ष: ' अर्थात् - जिस हेतु के साध्य के अभाव को सिद्ध करने वाला अन्य हेतु है, वह सत्प्रतिपक्ष है। शब्द नित्य है। श्रावणत्व के कारण शब्द के समान । शब्दो अनित्यः कार्यत्वाद् घटवत् इति । शब्द अनित्य है, कार्य होने के कारण, घट के समान ।

प्रश्न - असिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'स्वयम् असिद्धः कथं परान् साधयति' अर्थात् जहाँ हेतु की पक्ष में विद्यमानता निश्चित नहीं होती वहाँ असिद्ध हेत्वाभास होता है।

प्रश्न - असिद्ध हेत्वाभास कितने  प्रकार का होता है ?

उत्तर - तीन(3) - (१) आश्रयासिद्ध (२) स्वरूपासिद्ध (३) व्याप्यत्वासिद्ध।

प्रश्न - आश्रयासिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - जिस हेतु का आश्रय(पक्ष) प्रमाणसिद्ध न हो, वह आश्रयासिद्ध है- 'यस्य हेतो: आश्रयो नावगम्यते स आश्रयासिद्धः' यथा गगनारविन्दं सुरभि अरविन्दत्वात्। आकाशकमल सुगन्धित होता है, क्योंकि वह कमल है, सरोवर में उत्पन्न कमल की तरह यहाँ साध्य सुरभित्व का आश्रय गगनारविन्द की सत्ता ही नहीं है।

प्रश्न - स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - स्वरूपासिद्ध वह हेत्वाभास है जिसके पक्ष में हेतु का अभाव होता है। जैसे- 'शब्दो गुणः चाक्षुषत्वात् रूपवत् । ' शब्द गुण हैं, दिखाई पड़ने के कारण, रूप के समान ।यहाँ 'चाक्षुषत्व' शब्द में नहीं है क्योंकि शब्द श्रवण से ग्राह्य है।

प्रश्न - व्याप्यत्वासिद्ध हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'सोपाधिको हेतुर्व्याप्यत्वासिद्धः' उपाधियुक्त हेतु व्याप्यत्वासिद्ध होता है।यथा पर्वतो धूमवान् वह्निमत्त्वात् पर्वत धूमवान् है, वह्नियुक्त होने के कारण।सोपाधिक होने से वह्निमत्त्व व्याप्यत्वासिद्ध है।

प्रश्न - उपाधि का क्या लक्षण है ?

उत्तर - 'साध्यव्यापकत्वे सति साधन अव्यापकत्वम् उपाधिः ' अर्थात् - साध्य के व्यापक होने पर साधन की अव्यापकता उपाधि है।

प्रश्न - बाधित हेत्वाभास किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'यस्य साध्याभावः प्रमाणान्तरेण निश्चितः सः बाधितः ।' जिस हेतु के साध्य का अभाव किसी अन्य प्रमाण से निश्चित होता है वह बाधित हेत्वाभास है। यथा वह्निरनुष्णो द्रव्यत्वात् इति - अग्नि शीतल है, द्रव्य होने के कारण। यहाँ 'अनुष्णत्व' (शीतलता) साध्य है उसका अभाव उष्णत्व स्पार्शनप्रत्यक्ष से ज्ञात होता है। इसलिए इसमें बाधित हेत्वाभास है।

प्रश्न - उपमान का क्या अर्थ है ?

उत्तर - उपमितिकरणम् उपमानम्' अर्थात् - उपमिति का करण उपमान है।

प्रश्न - उपमिति का क्या अर्थ है ?

उत्तर -  'संज्ञासंज्ञिसम्बन्धज्ञानम् उपमितिः ' संज्ञा तथा संज्ञी के सम्बन्धज्ञान को उपमिति कहते हैं उसका करण सादृश्यज्ञान है।

प्रश्न - अवान्तरव्यापार का क्या आशय है ?

उत्तर - 'अतिदेशवाक्यार्थस्मरणम् अवान्तरव्यापारः ' प्रामाणिक व्यक्ति के कहे हुए वाक्यार्थ का स्मरण अवान्तर व्यापार है ।। उपमिति की प्रक्रिया जैसे कोई गवय शब्द के अर्थ को बिना जानता हुआ किसी जंगली पुरुष से गाय के सदृश गवय होता है ( गो सदृशो गवयः ) यह सुनकर वन में जाता हुआ वाक्य के अर्थ को स्मरण करते हुए गो सदृश पिण्ड को देखता हैं। तदनन्तर यह गवय शब्द से वाच्य है। यह उपमिति उत्पन्न होती है।

प्रश्न - शब्द किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'आप्तवाक्यं शब्दः ' आप्तपुरुषों का वाक्य शब्द प्रमाण है।

प्रश्न - आप्त का क्या अर्थ है ?

उत्तर - 'आप्तस्तु यथार्थवक्ता' आप्त तो यथार्थवक्ता हैं। 

प्रश्न - वाक्य किसे कहते हैं ?

उत्तर - 'वाक्यं पदसमूहः' वाक्य पदों का समूह है। जैसे- गाम् आनय (गाय लाओ ) ।

प्रश्न - वाक्य से प्राप्त होने वाला अर्थ क्या कहलाता है ?

उत्तर - शाब्दबोध अथवा वाक्यार्थज्ञान ।

प्रश्न - पद किसे कहते हैं ?

उत्तर -  'शक्तं पदम्' शक्त अर्थात् शक्तियुक्त (सामर्थ्यवान् ) पद है। 

प्रश्न - शक्ति का क्या अर्थ है ?

उत्तर - 'अस्मात् पदात् अयमर्थो बोद्धव्यः इति ईश्वरसङ्केतः शक्तिः ' इस पद से यह अर्थ जानना चाहिए इस प्रकार का ईश्वरसङ्केत ही शक्ति है। अर्थस्मृत्यनुकूलः पदपदार्थसम्बन्धः शक्तिरिति।

प्रश्न - वाक्यार्थज्ञान के कितने हेतु हैं ?

उत्तर - तीन(3) - आकांक्षा, योग्यता और सन्निधि ।

प्रश्न - आकांक्षा का क्या अर्थ है ?

उत्तर - पदस्य पदान्तरव्यतिरेकप्रयुक्तान्वयाननुभावकत्वम् आकाङ्क्षा' एक पद का दूसरे अर्थ के बिना प्रयुक्त होने पर शाब्दबोध करवाने की असमर्थता आकाङ्क्षा है।

प्रश्न - योग्यता का क्या अर्थ है ?

उत्तर - 'अर्थाबाधो योग्यता' अर्थात् -अर्थ का बाधारहित होना योग्यता है।

प्रश्न - सन्निधि का क्या अर्थ है ?

उत्तर - पदानामविलम्बेन उच्चारणं सन्निधिः" पदों का बिना विलम्ब के उच्चारण सन्निधि है।

प्रश्न - वाक्य के कितने भेद हैं ?

उत्तर - दो(2) - वैदिक और लौकिक ।

प्रश्न- वैदिक वाक्य का क्या आशय है ?

उत्तर -  'वैदिकमीश्वरोक्तत्वात् सर्वमेव प्रमाणम्' अर्थात् ईश्वर वचन होने के कारण सारे वैदिक वाक्य प्रमाण हैं।

प्रश्न - लौकिक वाक्य किस प्रकार के प्रमाण हैं ?

उत्तर - आप्तकथित प्रमाण । "लौकिकं तु आप्तोक्तं प्रमाणम् अन्यद् अप्रमाणम्'

प्रश्न - शाब्दज्ञान का क्या अर्थ है ?

उत्तर - वाक्यार्थज्ञानं शाब्दज्ञानम् । वाक्य के अर्थों का ज्ञान ही शाब्दज्ञान है, उसका करण शब्द है।

प्रश्न -आत्मख्याति (विज्ञानख्यातिवाद) को कौन  मानते हैं ?

उत्तर - विज्ञानवादी बौद्ध ।

प्रश्न - शून्यवादी बौद्ध किस प्रकार की ख्याति मानते हैं ?

उत्तर - असत्ख्याति (शून्यताख्यातिवाद) ।

प्रश्न - अख्यातिवाद को कौन मानता है ?

उत्तर - प्राभाकरमीमांसक ।

प्रश्न - कुमारिलभट्ट किस ख्याति को मानते हैं ?

उत्तर - विपरीतख्यातिवाद ।

प्रश्न - अन्यथाख्यातिवाद को कौन मानता है ?

उत्तर - नैयायिक ।

प्रश्न - अनिर्वचनीयख्यातिवाद (अध्यास) को कौन मानते हैं ?

उत्तर - वेदान्ती ।

प्रश्न - प्राचीनसांख्य और रामानुज किस प्रकार की ख्याति मानते हैं ?

उत्तर - सत्ख्यातिवाद ।

प्रश्न - उत्तरसांख्य और जैनमत का ख्यातिवाद है ?

उत्तर -  सदसत्ख्यातिवाद ।

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भागवत दर्शन: वैशेषिक दर्शन प्रश्नोत्तरी भाग 9 प्रमाण लक्षण से शाब्दज्ञान तक
वैशेषिक दर्शन प्रश्नोत्तरी भाग 9 प्रमाण लक्षण से शाब्दज्ञान तक
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भागवत दर्शन
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