सूर्य ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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surya grah ki shanti


सूर्य ग्रह का परिचय

सूर्य का उद्भव  -  कलिंग देश में 

सूर्य का गोत्र - कश्यप गोत्र 

सूर्य की जाति - क्षत्रिय । 

सूर्य की माता का नाम - अदिति । 

सूर्य ग्रह के बचपन का नाम - मार्तण्ड ।

सूर्य की प्रथम पत्नी का नाम -   संज्ञा।

सूर्य की द्वितीय पत्नी का नाम -  छाया।

सूर्य और संज्ञा से उत्पन्न सन्तान - वैवस्वत मनु, यम और यमी ।

सूर्य और छाया से उत्पन्न सन्तान - सावर्णि मनु, शनि, ताप्ती और अश्विनी।

सूर्य का स्वभाव - क्रूर ग्रह ।

सूर्य का भोगकाल - एक मास या 30 दिन ।

सूर्य का बीज मंत्र - 1. ॐ घृणिः सूर्याय नमः 2. ॐ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः      3. ॐ सूर्याय नमः ।

सूर्य के लिए तांत्रिक मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।

सूर्य के लिए वैदिक मंत्र - 

  ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥

सूर्य के लिए पुराणोक्त मंत्र मन्त्र -

ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । 

तमोरिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥

सूर्य ग्रह की जप संख्या -  7000 

(कलियुगे चतुर्गुणो अर्थात् कलियुग में चार गुना -  28000 + दशांश हवन - 2800 + दशांश तर्पण - 280 + दशांश मार्जन 28 = 31108)।

सूर्य ग्रह के लिए जप करने का समय - सूर्योदय

सूर्य ग्रह के लिए हवन की सामग्री विशेष - अर्क या मन्दार की लकड़ी

सूर्य ग्रह के लिए रत्न - 6.5 रत्ती माणिक या विद्रुम

सूर्य ग्रह के लिए दान सामग्री - सुवर्ण, ताँबा, माणिक, गुड़, गेहूँ, लाल गाय, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, लाल चंदन आदि।


अथ सूर्य कवचम् 

विनियोग -

  अस्य श्रीसूर्यकवचस्य। ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छन्द:। सूर्यो देवता। श्रीसूर्यनारायण देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

याज्ञवल्क्य उवाच

शृणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् । 

शरीरारोग्यं दिव्यं च सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १॥

देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकरकुण्डलम् । 

ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत् ॥२॥

शिरो मे भास्कर: पातु ललाटे मेऽमितद्युति: । 

नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३॥

घ्राणं धर्मघृणि: पातु वदनं वेदवाहनः ।

जिह्वां मे मानद: पातु कण्ठं मे सुरवन्दितः ॥४॥

इमं रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके । 

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्व सिद्धयः ॥५॥

सुस्नातो यो जपेत् सम्यग् योऽधीते स्वस्थमानस: । 

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विन्दति ॥६॥

                ॥इति सूर्य कवचम् ॥


              अथ सूर्य स्तोत्रम् 

नवग्रहाणां सर्वेषां सूर्यादीनां पृथक् पृथक्। 

पीडा च दुःसहा राजन्जायते सततं नृणाम् ॥१॥

पीडानाशाय राजेन्द्र नामानि शृणु भास्वतः । 

सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति शृण्वतः ॥२॥

आदित्यः सविता सूर्यः पूषाऽर्कः शीघ्रगो रविः। 

भगस्त्वष्टाऽर्यमा हंसो हलिस्तेजोनिधिर्हरिः ॥३॥ 

दिननाथो दिनकरः सत्पतिश्च  प्रभाकरः। 

विभावसुर्वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहनः ॥४॥ 

हरिदश्वः कालवक्त्रः कर्मसाक्षी जगत्पतिः । 

पद्मिनीबोधको भानुर्भास्करः करुणाकरः ॥५॥ 

द्वादशात्मा विश्वकर्मा लोहितांगस्तमोनुदः। 

जगन्नाथोऽरविन्दाक्षः कालात्मा कश्यपात्मजः ॥६॥ 

भूताक्षयो ग्रहपतिः सर्वलोकनमस्कृतः । 

जपाकुसुमसंकाशो भास्वानदितिनन्दनः ॥७॥ 

ध्वान्तेभसिंहः सर्वात्मा लोकनेत्रो विकर्तनः । 

मार्तण्डो मिहिरः सूरस्तपनो लोकतापनः ॥८॥ 

जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जयः । 

सहस्त्ररश्मिस्तरणिर्भगवान्भक्तवत्सलः ॥९॥

विवस्वानादिदेवश्च देवदेवा दिवाकरः । 

धन्वन्तरिव्याधिहर्ता ददुरकुष्ठविनाशकः ॥१०॥

नारायणो महादेवो रुद्रः पुरुष ईश्वरः ।

लोकशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभूः ॥११॥

चराचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णुर्विकर्तनः । 

जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुखः ॥१२॥ 

इन्द्रोऽनलो यमश्चैव नैर्ऋतो वरुणोऽनिलः । 

श्रीद ईशान इन्दुश्च भौमः सौम्यो गुरुः कविः ॥१३॥ 

शौरिर्विधुन्तुदः केतुः कालः कालात्मको विभुः। 

सर्वदेवमयो देवः कृष्णः कामप्रदायकः ॥१४॥ 

य एतैर्नामभिर्मत्र्यो भक्त्या स्तौति दिवाकरम्। 

सर्वापापविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः ॥१५॥

पुत्रवान् धनवान् श्रीमांजायते स न संशयः । 

रविवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वतः ॥१६॥ 

पीड़ाशान्तिर्भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषतः । 

सद्यः सुखमवाप्नोति चायुर्दीर्घं च नीयजम् ॥१७॥

॥ इति श्री भविष्य पुराणे आदित्य स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥


भगवान सूर्य के पवित्र, शुभ एवं गोपनीय 21 नाम 

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः । 

लोक प्रकाशकः श्रीमाँल्लोकचक्षुर्मुहेश्वरः॥१॥ 

लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा । 

तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥२॥

गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः । 

एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः ॥ ३ ॥

     (विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान्, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत)।

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