ट्रैप्ड (Trapped )

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  हममें से ज़्यादातर लोग दो केटेगरी में आते हैं । एक वो, जो जीविकोपार्जन को ही जीवन बना लेते हैं । दूसरे वो, जो किसी हुनर या प्रतिभा के आस-पास ही पूरा जीवन निर्मित कर लेते हैं ।

  जीविकोपार्जन वाली केटेगरी में शिक्षक , वकील , डॉक्टर, नौकरीपेशा , व्यापारी आदि आते हैं । हुनर या कला वाली केटेगरी में गायक , चित्रकार,लेखक,कवि ,अभिनेता आदि आते हैं । दोनों ही प्रकार के लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं की बनाई छोटी सी दुनिया में ट्रेप हो जाते हैं ।

  शिक्षक या प्राध्यापक की पूरी ज़िंदगी एक ही सब्जेक्ट , सिलेबस पढ़ाने में निकल जाती है । उसका 90% वक़्त, साल दर साल वहीं पढ़ाने , वही विभागाध्यक्ष , डीन , कुलपति बनने की क़वायद , वहीं सेमिनार , कॉन्फ्रेंस , पेपर प्रेज़ेंटेशन में निकल जाता है । इसी तरह एक स्कूल टीचर स्कूल की बातों में ही जीवन गुजार देता है । यानि एक छोटे से दायरे में trapped होकर ।

  सरकारी अधिकारी का भी 90% समय विभागीय काम , बजट , लाभ , प्रमोशन , तबादला और कार्यालयीन राजनीति में निकल जाता है । यही हाल  वक़ील , दुकानदार , व्यापारियों का भी है ।

  दूसरी ओर , कलात्मक अभिरुचि या हुनर से ऑब्सेस्ड लोग वे लोग हैं जो अपने किसी कला संबंधी क्षेत्र विशेष के इर्दगिर्द ही पूरा जीवन बुन लेते हैं ।

 यानि , ज़रा सा गाना क्या आ गया - गायक बन गए । ज़रा चित्र बनाना क्या आ गया -चित्रकार ही हो गए । 

  ज़रा सा कविता लिखना क्या आ गया - कवि, लेखक बन गए । फिर जीवन ऊर्जा का 90 फ़ीसदी हिस्सा उस क्षेत्र विशेष में ही ख़र्च कर देते है ।

   उदाहरणतः एक लेखक या कवि .. किताबें पढ़ने , छपवाने , मंचों , समारोहों में जाने , अवार्ड पाने के जंजाल में फँसकर रह जाता है । यही हाल चित्र, गायन , नृत्य आदि कलाओं में संलग्न लोगों का भी होता है ।

  दोनों ही प्रकार के जीवन से जो मिलता है वह है थोड़ी सी आर्थिक सुरक्षा , ज़रा सी प्रसंशा और छुटभैया सा सेलेब्रिटी स्टेटस ।

  और जो खो जाता है , वह है ..जीवन की अन्य अपरिमित संभावनाएं, अनंत विस्तृत संसार से परिचय , बेशुमार वैविध्यपूर्ण अनुभवों का अथाह भंडार , जीवन के रहस्य और पहेली को सुलझा पाने का अंतर्भूत सामर्थ्य ।

  और , अंततः हम अपनी महत्वाकांक्षाओं की बनाई छोटी सी दुनिया में बद्ध (Trapped) होकर रह जाते हैं । हमें हमारी अनंत संभावनाओं का पता भी नही लगता और एक दिन मृत्यु की बेला आ जाती हैं ।

  इस तरह हम स्वयं ही अपनी अनंत संभावनाओं के पर कुतर देते हैं और अनंत विस्तृत आकाश में हमारी उड़ान रद्द हो जाती है और हम कभी जान ही नही पाते कि हमारे भीतर ही आनंद के असंख्य झरने थे और हमारी प्रतिभा और सामर्थ्य असीमित थी ।

  क्योंकि जितना सीमित जीवन होता है उतनी ही धीमी चेतना की लौ होती है । जितना बद्ध , एकरस , यांत्रिक जीवन होता है .उतना ही डल , बोरिंग , चिड़चिड़ा और पथराया व्यक्तित्व होता है ।

  हमें पता ही नही चलता कि हम अपनी इच्छाओं में फंसकर इतना यंत्रवत जी लेते हैंं कि कोई रोबोट भी, ख़ास कमांड इनस्टॉल किए जाने पर वैसा ही जी सकता है ।

  नहीं,यह मनुष्य की तरह जीना नहीं है । जीवन का रहस्य खुलता है..परिवर्तन में , त्वरा में, कौंध में, कौतुक में, अपरिसीम संभावना में, अपरिमित सृजन में । 

  किंतु यह तब ही संभव है जब हम कहीं भी फंसने से बचें , चीजों को झटकना सीखें । आप किसी भी क्षेत्र में , कितने ही हुनरमंद क्यों न हों , अपने हुनर से बाहर आकर भी जिएँ ।

  अपनी पकड़ को छोड़ना सीखें , थोड़ा दांव लगाकर जिएं, थोड़ा असुरक्षा में उतरें, थोड़ा बदनामी, निंदा को भी आमंत्रित करें। अपने अहंकार और विशिष्ट होने की आकांक्षा से बाहर आ जाएं ।

  स्वास्थ्य को बचाने के लिए भी बहुत ऊर्जा और समय न लगाएं, किसी भी चीज की खब्त न पालें । क्योंकि ऐसा करते ही आप एक जंजाल निर्मित कर लेते हैं और फिर उसमें ट्रैप हो जाते हैं ।

  ज़रा निगरानी करें कि हम क्या कर रहे हैं , कैसा जी रहे हैं ? अगर आपके आनंदित होने के ढंग भी बंधे बंधाए हैं मसलन शराब , दावत , डांस , सेक्स, तॊ भी जानिए कि आप ट्रैप्ड ही हैं ।

   एक ही रूचि से प्रभावित होकर हम जीवन की समग्रता को खो बैठते हैं । यह ऐसा ही है कि आप अनंत दृश्यों से भरी मनोहर वादी में हैं और आपकी दृष्टि किसी एक ही ऑब्जेक्ट पर है । जबकि वहां असंख्य वृक्ष , पुष्प ,पक्षी , जल प्रपात , और नानाविध मनभावन दृश्य मौजूद हैं । एक जगह देखते ही अन्य जगहों से हमारी आँख हट जाती है और हम दृश्य की समग्रता से चूक जाते हैं । जब हम किसी विशिष्ट क्षेत्र विशेष से आसक्ति नही बांधते हैं, तब हम अन्य को भी देख सकते हैं । हमारी क्षमताएं अनंत हैं । हज़ार दृश्य , एक दृष्टि में समा सकते हैं । हज़ार अनुभव, एक सांस के साथ संभव हैं ।

  विराट की तृप्ति , विराट से ही संभव है । असीम , ससीम में नही समा सकता । जीवन को उसकी पूरी संभावना में जी लेना ही बड़ी से बड़ी सफ़लता है ।

  तॊ मॉरल ऑफ़ द स्टोरी यह है कि चीज़ों को छोड़ना सीखें । एक ही जैसा जीवन रोज़ रोज़ न जिएं , स्वयं को चुनौती दें , नए-नए क्षेत्रों में उतरें , नए-नए अनुभवों से गुजरें ।

  वो चाहे धन हो , सुरक्षा हो या संसाधन हों ..उसे छोड़ना सीखें वो चाहे मेहनत से कमाई प्रतिष्ठा हो , या किसी व्यक्ति , संस्था , विचार के प्रति आग्रह हो  या, किसी कला , कर्म , कार्य में दक्षता ही क्यों न हो उसे छोड़ना सीखें , उसमें बंधें नहीं । थोड़े से धन और ज़रा सी साख के पीछे अपनी अनंत संभावनाओं को न गंँवाए । क्योंकि, जीवन के समग्र अनुभव से चूक जाना बड़ी से बड़ी असफलता है ।

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