मेष संक्रांति (सतुआ संक्रांति) वैशाख माहात्म्य

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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satua sankranti


 न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्।

न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम्।।

  वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।

  इस मास को भगवान विष्णु के नाम 'माधव' से भी जाना जाता है,वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। 

  जब सूर्य मीन राशि से मेष राशि में संक्रमण करते हैं तब यह काल मेष–संक्रान्ति कहलाता है और तब से सौर वैशाख मास का प्रारंभ होता है। इसी संक्रान्ति को भगवान् सूर्य उत्तरायण की आधी यात्रा पूर्ण करते हैं। वैशाख मास वर्ष का दूसरा माह होता है, इस समय भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है।

  भगवान का स्मरण इस काल में बहुत पुण्य देता है,वैशाखी संक्रांति के दिन तिलों से युक्त जल से व्रती लोग स्नान करते हैं। अग्नि में तिलों की आहुति देते हैं, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान में भी दिया जाता है।

 वैशाख संक्रांति धार्मिक और लोक मान्यताओं में बहुत ही शुभ है, वैशाख संक्रांति में काशी कल्पवास, नित्य क्षिप्रा, स्नान-दान, दर्शन, सत्संग, धर्म ग्रंथों का स्मरण, संयम, नियम, उपवास आदि के संकल्प के साथ तीर्थवास का महत्त्व होता है।

  इस मास के दौरान मौसम में गर्माहट अधिक होने लगती है. इस स्थिति में मौसम के इस रुप और बदलाव को लेकर धार्मिक स्वरुप में भी कई नियम बताए गए हैं जो न केवल धर्म ही नहीं अपितु वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर भी खरे उतरते हैं।

  इस महीने में गरमी की मात्रा लगातार तीव्र होती जाती है और कई प्रकार के संक्रमण और रोग भी बढ़ने लगते हैं,इस लिये इस संक्रान्ति समय पर किए गए खान पान एवं पूजा पाठ से इन सभी समस्याओं से बचाव होता है।

  इस मौसम में मसाले एवं तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए, अधिक तेल और मसाले वाली चीजों को खाने से बचना चाहिये। रसदार फलों का सेवन व पानी अधिक मात्रा में ग्रहण करना चाहिये।

  इस मौसम में सत्तू के उपयोग पर भी अधिक बल दिया जाता है। अपनी दिनचर्या में शुद्धता एवं सरलता का असर डालना चाहिये। इस मौसम में अधिक समय तक सोने से भी बचना चाहिये,दिन में सोने की समय सीमा को कम करने की कोशिश करनी चाहिये।

  वैशाख संक्रांति के दिन प्रात:काल उठ कर अपने ईष्ट का ध्यान करना चाहिये.प्रयत्न करना चाहिये कि सदैव ही इस माह में सूर्योदय के पूर्व उठ कर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कार्य संपन्न कर लिया जाए,जल में तिल डाल कर भी स्नान किया जा सकता है।

  भगवान श्री हरि का नाम स्मरण,गंगा नदी, सरोवर या शुद्ध जल से स्नान करने के बाद शुद्ध साफ वस्त्र धारण करके भगवान का पूजन करना चाहिये,शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिये. इसके बाद संक्रांति के महात्म्य का भी पाठ करना चाहिये।

 संक्रान्ति के समय सूर्य उपासना का महत्व बहुत होता है। इस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस समय के दौरान सूर्य पूजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. यह सौर मास का आरंभ समय भी होता है। सूर्य को जल चढ़ाना चाहिये और सूर्य की पूजा करनी चाहिये,आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिये और सूर्य के नामों को स्मरण करना चाहिये। संक्रांति अर्थात एक संचरण होना, प्रकृति के एक बदलाव का रुप संक्रांति भी है।

  इस अवसर पर सूर्य का राशि परिर्वतन होना सौर वर्ष के लिहाज से अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है,इसी के साथ ये बदलाव मौसम पर भी अपना असर अवश्य छोडता है,ऎसे में वैशाख संक्रांति का दिन सृष्टि में मौजूद सभी जीवों पर अपना प्रभाव भी डालता है। इसलिए इस दिन सूर्य उपासना का महत्व बहुत होता है और इस संक्रांति के दिन किये गए दान पुण्य का फल अंजाने में किये गए पापों की शांति करता है और साथ ही शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक मजबूती देता है, पुराणों में संक्रांति के दिन किए गए दान और स्नान द्वारा सहस्त्रों यज्ञों के करने के समान फल प्राप्त होता है।

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