राधा कुण्ड का माहात्म्य

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  एक बार राधाजी ने अरिष्टासुर को मारने के बाद भगवान कृष्ण से सभी तीर्थों में स्नान करके पवित्र हो जाने को कहा, तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- अगर मैं इन सब तीर्थों को यहीं बुला लूँ तो। राधा रानी चौंक गयीं।

  श्रीकृष्ण ने जहां अरिष्टासुर को मारा था, उसका नाम “पदग्या” आरिठ, (आरिठ गाँव) जो आज राधा कुंड कहलाता है- आरिट में जोर से एड़ी की चोट मारी, जिससे वहाँ एक गड्डा बन गया और श्रीकृष्ण की शक्ति से वो गड्डा बढ़ता- बढ़ता एक विराट कुंड हो गया।

  भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी के समस्त तीर्थों का आवाहन किया, सभी धामों का आवाहन किया, और वो सब अपने अपने तीर्थों का जल ले करके आकाश में एकत्रित हो गए, भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करी- हे प्रभु हमारे लिए क्या आज्ञा है, कृष्ण बोले ; आओं अपना जल इस कुंड में डाल दो।

  सभी तीर्थों ने अपना-अपना जल उस कुंड में डाल दिया और फिर श्री कृष्ण ने सखियों के समुख उस कुंड में स्नान किया, स्नान करके बोले- राधे, देखो; मैं पवित्र हो गया हूँ, मैंने सभी तीर्थों की यात्रा एक साथ कर ली।

  इस बात पर श्रीकृष्ण के सखाओं ने राधा रानी को चिढ़ा दिया, राधे हमारे कन्हैया के पास हमारे मित्र के पास कितना सुंदर कुंड है जिसमें समस्त तीर्थों का जल है- “श्याम कुंड” है और तुम्हारे पास तो कुंड है ही नहीं। इसलिए कृष्ण श्रेष्ठ है, राधा से कृष्ण श्रेष्ठ हैं। तब राधा रानी ने अपना कंगन निकाला उस कंगन से छोटा सा गड्डा किया, वो गड्डा राधा रानी की शक्ति से बढ़ता- बढ़ता एक विराट कुंड हो गया। किंतु जल कहाँ से लाए ? तीर्थ तो चले गए ! तीर्थ तो श्री कृष्ण के नियंत्रण में थे।

  राधा रानी ने कहा- हम कृष्ण से सहायता नहीं लेंगे; ये मेरी सखियाँ मानसी गंगा से जल कलश में, मटकियों में भर-भर के लाएँगी। राधा रानी की सभी १०८ सखियाँ जल ढोने में लग गयी और जितना जल लेके आएँ वो फिर सूख जाए, कुंड भरने में ना आए, राधा रानी निराश हो गईं। तब श्रीकृष्ण ने कहा- राधे, यदि तुम्हारी अनुमति हो तो मैं अपने श्याम कुंड का जल तुम्हारे कुंड में उढेल दूँ।

  राधा रानी ने हामी भर दी तब श्री कृष्ण ने बांसुरी की नोक से श्याम कुंड और राधा कुंड के बीच में एक लकीर बना दी, वो लकीर एक रास्ता बन गयी और श्याम कुंड का जल दूसरे वाले कुंड में भरने लगा और राधा रानी ने सखियों सहित उसमें स्नान किया।

  श्रीकृष्ण ने उस कुंड का नामकरण किया- “राधा कुंड” और ये आशीर्वाद दिया कि ये जो राधा कुंड है ये मुझे राधा के समान ही प्रिय होगा, जो उस राधा कुंड पर बैठ करके भक्ति साधना करेगा उससे मैं अति-शीघ्र प्रसन हो जाऊँगा।

  पूरे पृथ्वी के समस्त तीर्थों, (जो हज़ारों की संख्या में हैं), का फल इस राधा कुंड की दो बूँद के आचमन करने से मिल जाएगा; केवल दो बूँद जल मुँह में डाल लो, दो बूँद सिर पर छिड़क लिया, उसी से पूरी पृथ्वी के समस्त तीर्थों का फल राधा कुंड में प्राप्त होगा, ऐसा पद्म पुराण में कहा गया है।

  रूप गोस्वामीजी ने उपदेशामृत में लिखा है कि चौदह लोक वाले ब्रह्मांड से श्रेष्ठ है वैकुंठ लोक क्यूँकि चोदह लोकों का जो ब्रह्मांड है ये तो प्रलय में नष्ट हो जाएगा, वैकुंठ अविनाशी है ये नष्ट नहीं होगा। वैकुंठ से भी श्रेष्ठ है मथुरा, मथुरा से भी श्रेष्ठ है वृंदावन, वृंदावन से भी अधिक श्रेष्ठ है गोवर्धन और गोवर्धन से श्रेष्ठ है राधा कुंड और ये राधा कुंड जो है केवल भूमंडल पर ही नहीं, अनंत कोटि ब्रह्मांड, अनंत कोटि वैकुंठों में सर्वश्रेष्ठ है।

  राधा कुंड के श्रेष्ठ होने का एक गूढ़ कारण है- राधा और कृष्ण रस स्वरूप है। श्रीकृष्ण है रस की मूरत और राधाजी है प्रेमरस की मूर्ति, राधाजी का प्रेम जो है उसे कहते है- मादन (आख्या माहाभव प्रेम)। अत्यंत उच्चकोटि का प्रेम, जो मनुष्य में तो क्या, भगवान श्रीकृष्ण में भी इतने उच्चकोटि का प्रेम नहीं है, और श्री कृष्ण में है- मोदन (आख्या माहभाव), तो ये अत्यंत उच्चकोटि का विशुद्ध प्रेम है।

  गोलोक में एक बार श्रीकृष्ण ने श्रीराधा जी की आँखों में देखा, तो राधाजी की आँखों में अपार- अतः उच्चकोटि का महाभव प्रेम था, तो उस प्रेम के कारण श्रीकृष्ण का शरीर पिघलने लगा और राधाजी ने श्रीकृष्ण की आँखों में देखा, तो राधाजी का शरीर भी द्रवित होने लगा जैसे मोम अग्नि में द्रवित होने लगता है और देखते ही देखते, तरल हो गये।

  सखियाँ और सखा ढूँढते फिर रहे हैं कि कन्हैया कहा हैं राधा कहाँ है, कहीं नहीं मिले। तब आकर के वृंदा देवी ने देखा कि वहाँ दो कुंड बने हैं जों यहाँ पहले नहीं थे, एक तो श्रीकृष्ण जी के रंग का उज्जवल नीलमणि कुंड है और एक पिंघले सोने के समान सुनहरा कुंड है, ये कुंड कहा से प्रकट हो गये ! सभी सखियों ने बैठ करके हरिनाम संकीर्तन किया, जिसके के उपरांत उन कुंडो से श्रीकृष्ण और राधाजी पुनः प्रकट हो गये। ये कुंड थे श्याम कुंड और राधा कुंड। 

  गोलोक में जो श्याम कुंड और राधा कुंड है, वो राधा और कृष्ण के नाम पर ही श्याम कुंड- राधा कुंड है। वे राधा कुंड श्याम कुंड ही तीर्थों के माध्यम से और अरिष्टासुर की लीला के माध्यम से धरती पर प्रकट हुए हैं। राधा कुंड साक्षात राधा है और कृष्ण कुंड साक्षात श्रीकृष्ण है।

  जो लोग श्रीकृष्ण को ढूंढ रहे हैं उनके लिए श्याम कुंड राधा कुंड साक्षात राधा कृष्ण है। इसलिए इनके महिमा सबसे अधिक है। पूरे ब्रह्मांड के सब तीर्थ एक तरफ और राधा कुंड श्याम कुंड एक तरफ़। राधा कुंड ही सबसे बड़ा है।

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