राम नाम का स्मरण करने से (गणिका एवं अजामिल आदि) अप्रिय स्वभाव वाले भी सुंदर कीर्ति के पात्र हो गए। स्वर्ग के राजमार्ग पर स्थित बुरे वृक्ष भी त्रिभुवन मे ख्याति पा जाते हैं।
राम नाम रति राम गति, राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल, दुहुँ दिसि तुलसीदास॥
तुलसीदास कहते हैं कि जिसका राम नाम में प्रेम है, राम ही जिसकी एकमात्र गति है और राम नाम में ही जिसका विश्वास है, उसके लिए राम नाम का स्मरण करने से ही दोनों ओर (इस लोक में और परलोक में) शुभ, मंगल और कुशल है।
एक महात्मा प्रतिदिन एक स्थान पर सत्संग करने जाते थे। वापस लौटते हुए रास्ते में एक वणिक की दुकान पड़ती थी। दुकान पर एक तोता पिंजरे में लटका रहता था। महात्मा को देख कर प्रतिदिन तोता प्रश्र करता-‘
महाराज, राम नाम सत्य है,इसका क्या भाव है ?’’
संत कहते, ‘‘प्रभु राम का जो नाम है वह सर्वथा सत्य है।
तोता कहता, सत्य बोले गति है, इसका क्या तात्पर्य है ?
संत कहते, ‘‘जो इस नाम का उच्चारण करता है, उसकी गति अर्थात मुक्ति होती है वह स्वतंत्र हो जाता है।’’
तोता, ‘‘महाराज! मेरे को तो राम नाम सत्य है, सत्य बोले गति है, उच्चारण करते-करते कितना समय हो गया है परन्तु मेरी तो इस पिंजरे से भी मुक्ति नहीं हुई। भवसागर से कैसे होगी?’’
संत, ‘‘शुक, तूने केवल उच्चारण ही किया है, उस पर अमल नहीं किया। यदि मोक्ष चाहता है तो कल एकादशी का दिन है, व्रत धारण करना और साथ ही मौन भी धारण करना।’’
दूसरा दिन आया। जैसे महात्मा ने बताया था, तोते ने वैसा ही किया। एकादशी का व्रत रखा, श्वास चढ़ा कर पिंजरे में लेट गया। वणिक प्रतिदिन की भांति दुकान पर आया। आते ही तोते को बुलाया। कहो, गंगाराम! राम! राम! पर गंगाराम तो आज मौनी साधक था। वणिक ने समझा, तोता मर गया है। उसने पिंजरे का कपाट खोला, तोते को पूंछ से पकड़ा और बाहर फैंक दिया। सब लोग एक ओर हुए तो तोता उठा और उठ कर वणिक की दुकान के सामने वाले वृक्ष पर जा बैठा और ऊंचे स्वर से बोलने लगा-राम का नाम सत्य है, सत्य बोलने से गति अर्थात मोक्ष मिलता है परन्तु मोक्ष का मार्ग संत के हाथ में है।
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस ।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकाम ॥
जो मनुष्य राम-नाम का सहारा लिये बिना ही परमार्थ अर्थात् मोक्ष की कामना करते हैं, उनकी स्थिति उन मनुष्यों जैसी होती है, जो वर्षा की बूँदों को पकड़कर आकाश पर चढ़ना चाहते हैं । अर्थात् राम नाम की शरण लिये बिना जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना असंभव।
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव॥
हे धनंजय! मेरे सिवाय इस जगत का कोई दूसरा कारण नहीं हो सकता। मैं ही इस सम्पूर्ण संसार का महकारण हूँ। जैसे मोती सूत के धागे की माला में पिरोए हुए होते हैं, वैसे ही यह सम्पूर्ण जगत मुझमें ही ओत-प्रोत है। यह संसार मुझसे ही उत्पन्न होता है, मुझमें ही स्थित रहता है और मुझमें ही लीन हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि– भगवान के सिवाय संसार की स्वतंत्र सत्ता नहीं है। एक और कहानी के माध्यम से समझते हैं।
किसी गांव में एक आदमी के पास बहुत सारी बकरियां थी वह बकरियों का दूध बेचकर ही अपना गुजारा करता था एक दिन उसके गांव में बहुत से महात्मा आकर यज्ञ कर रहे थे और वह वृक्षों के पत्तों पर चंदन से कृष्ण कृष्ण का नाम लिखकर पूजा कर रहे थे वह जगह गांव से बाहर थी वह आदमी बकरियों को वही रोज घास चराने जाता था साधु हवन यज्ञ करके वहां से जा चुके थे।
लेकिन वह पत्ते वहीं पड़े रह गए तभी पास चरती बकरियों में से एक बकरी ने वो कृष्ण नाम रूपी पत्तों को खा लिया जब आदमी सभी बकरियों को घर लेकर गया तो सभी बकरियां अपने बारे में जाकर मैं मैंकरने लगी लेकिन वह बकरी जिसने कृष्ण नाम को अपने अंदर ले लिया था।
वह मैं मैं की जगह कृष्ण कृष्ण करने लगी क्योंकि जिसके अंदर कृष्ण वास करने लगे उसका मैं यानी अहम तो अपने आप ही दूर हो जाता है जब सब बकरियां उसको कृष्ण कृष्ण कहते सुनती है तो वह कहती यह क्या कह रही हो अपनी भाषा छोड़ कर यह क्या बोले जा रही है मैं मैं बोल तो वह कहती कृष्ण नाम रूपी पता मेरे अंदर चला गया मेरा तो मैं भी चला गया सभी बकरियां उसको अपनी भाषा में बहुत कुछ समझाती परंतु वह टस से मस ना हुई और कृष्ण कृष्ण रटती रही सभी बकरियों ने यह निर्णय किया कि इसको अपनी टोली से बाहर ही कर देते हैं वह सब उसको सीग और धक्के मार कर बाड़े से बाहर निकाल देती हैं।
सुबह जब मालिक आता है तो उसको बाड़े से बाहर देखता है तो उसको पकड़ कर फिर अंदर कर देता है परंतु बकरियां उसको फिर सींग मार कर बाहर कर देती हैं मालिक को कुछ समझ नहीं आता यह सब इसकी दुश्मन क्यों हो गई मालिक सोचता है कि जरूर इसको कोई बीमारी होगी जो सब बकरियां इसको अपने पास भी आने नहीं दे रही तो वह सोचता है कि यह ना हो कि एक बकरी के कारण सभी बीमार पड़ जाए वह रात को उस बकरी को जंगल में छोड़ देता है सुबह जब जंगल में अकेली खड़ी बकरी को एक व्यक्ति जो कि चोर होता है देखता है तो वह उस बकरी को लेकर जल्दी से भाग जाता है और दूर गांव जाकर उसे किसी एक किसान को बेच देता है किसान जो कि बहुत ही भोला भाला और भला मानस होता है उसको कोई फर्क नहीं पड़ता की बकरी मै मैं कर रही है या कृष्ण कृष्ण वह बकरी सारा दिन कृष्ण कृष्ण जपती रहती।
अब वह किसान उस बकरी का दूध बेच कर अपना गुजारा करता है कृष्ण नाम के प्रभाव से बकरी बहुत ही ज्यादा और मीठा दूध देती है दूर-दूर से लोग उसका दूध उस किसान से लेने आते हैं किसान जो की बहुत ही गरीब था बकरी के आने और उसके दूध की बिक्री होने से उसके घर की दशा अब सुधरने लगी एक दिन राजा के मंत्री और कुछ सैनिक उस गांव से होकर गुजर रहे थे उसको बहुत भूख लगी तभी उन्हें किसान का घर दिखाई दिया किसान ने उसको बकरी का दूध पिलाया इतना मीठा और अच्छा दूध पीकर मंत्री और सैनिक बहुत खुश हुए उन्होंने किसान को कहा कि हमने इससे पहले ऐसा दूध कभी नहीं पिया किसान ने कहा यह तो इस बकरी का दूध है जो सारा दिन कृष्ण कृष्ण करती रहती है मंत्री उस बकरी को देखकर और कृष्ण नाम जपते देखकर हैरान हो गया वो किसान का धन्यवाद करके वापस नगर में राज महल चले गए तभी उन दिनों राजमाता जो कि काफी बीमार थी कई वैद्य के उपचार के बाद भी वह ठीक ना हुई राजगुरु ने कहा माताजी का स्वस्थ होना मुश्किल है अब तो भगवान इनको बचा सकते हैं राजगुरु ने कहा कि अब आप माता जी को पास बैठकर ज्यादा से ज्यादा ठाकुर जी का नाम लो राजा जो कि काफी व्यस्त रहता था वह सारा दिन राजपाट संभाल ले या माताजी के पास बैठे नगर में किसी के पास भी इतना इतना समय नहीं की राजमाता के पास बैठकर भगवान का नाम ले सके तभी मंत्री को वह बकरी याद आई जो कि हमेशा कृष्ण कृष्ण का जाप करती थी मंत्री ने राजा को इसके बारे में बताया पहले तो राजा को विश्वास ना हुआ परंतु मंत्री जब राजा को अपने साथ उस किसान के घर ले गया तो राजा ने बकरी को कृष्ण नाम का जाप करते हुए सुना तो वह हैरान हो गया राजा किसान से बोला कि आप यह बकरी मुझे दे दो किसान बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर राजा से बोला कि इसके कारण ही तो मेरे घर के हालात ठीक हुए अगर मैं यह आपको दे दूंगा तो मैं फिर से भूखा मरूगा राजा ने कहा कि आप फिकर ना करो मैं आपको इतना धन दे दूंगा कि आप की गरीबी दूर हो जाएगी ।
अब किसान ने खुशी-खुशी बकरी को राजा को दे दिया अब तो बकरी राज महल में राजमाता के पास बैठकर निरंतर कृष्ण कृष्ण का जाप करती कृष्ण नाम के कानों में पढ़ने से और बकरी का मीठा और स्वच्छ दूध पीने से राजमाता की सेहत में सुधार होने लगा और धीरे-धीरे वह बिल्कुल ठीक हो गई अब तो बकरी राज महल में राजा के पास ही रहने लगी तभी उसकी संगत से पूरा राजमहल कृष्ण कृष्ण का जाप करने लगा अब पूरे राज महल और पूरे नगर में कृष्ण रूपी माहौल हो गया एक बकरी जो कि एक पशु है कृष्ण नाम के प्रभाव से जो सीधे राज महल में पहुंच गई और उसकी मैं यानी अहम खत्म हो गई तो क्या हम इंसान निरंतर कृष्ण का जाप करने से हम भव से पार नहीं हो जाएंगे ।
तृषा जाइ बरु मृगजल पाना।
बरु जामहिं सस सीस बिषाना॥
अंधकारु बरु रबिहि नसावै।
राम बिमुख न जीव सुख पावै॥
मृगतृष्णा के जल को पीने से भले ही प्यास बुझ जाए, खरगोश के सिर पर भले ही सींग निकल आवे, अन्धकार भले ही सूर्य का नाश कर दे, परंतु श्री राम से विमुख होकर जीव सुख नहीं पा सकता॥
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना॥
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