महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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mahamantra
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  यह ‘राम’ नाम महामंत्र है जिसे महेश्वर, भगवान शंकर जपते हैं और उनके द्वारा यह राम नाम उपदेश का काशी में मुक्ति का कारण है। ‘र’, ‘आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरों के मिलने से यह राम नाम तो हुआ ‘महामंत्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मंत्र।

सप्तकोट्य महामंत्राश्चित्तविभ्रमकारका:।

 एक  एव  परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यक्षरद्वयम्॥

  सात करोड़ मंत्र हैं। वे चित्त को भ्रमित करने वाले हैं। यह दो अक्षरों वाला राम नाम परम मंत्र है। यह सब मंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र है। सब मंत्र इसके अंतर्गत आ जाते हैं। कोई भी मंत्र बाहर नहीं रहता। सब शक्तियां इसके अंतर्गत हैं।

   यह ‘राम’ नाम काशी में मरने वालों की मुक्ति का हेतु है। भगवान शंकर मरने वालों के कान में यह राम नाम सुनाते हैं और इसको सुनने से काशी में उन जीवों की मुक्ति हो जाती है। एक सज्जन कह रहे थे कि काशी में मरने वालों का दायां कान ऊंचा हो जाता है- ऐसा मैंने देखा है। मानव के मरते समय दाएं कान में भगवान शंकर राम नाम मंत्र का उपदेश देते हैं। इस विषय में शालगरामजी ने कहा है कि जब प्राणों का प्रयाण होता है तो उस समय भगवान शंकर उस प्राणी के कान में राम नाम सुनाते हैं। क्यों सुनाते हैं? वे यह विचार करते हैं कि भगवान से विमुख जीवों की खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दंड देते हैं परंतु मैं संसार भर का मालिक हूं। लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरी में आकर यमराज दंड दे तो यह ठीक नहीं है। अरे भाई, किसी को दंड या पुरस्कार देना तो मालिक का काम है। राजा की राजधानी में बाहर से दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजा की पोल निकलती है न। सारे संसार में नहीं तो कम से कम वाराणसी में जहां मैं बैठा हूं, यहां आकर यमराज दखल दे, यह कैसे हो सकता है।

काशी में ‘वरुणा’ और ‘असी’ दोनों नदियां गंगाजी में आकर मिलती हैं। उनके बीच का क्षेत्र ‘वाराणसी’ है। इस क्षेत्र में ‘मंडूकमत्स्या: कृमयोऽपि काश्यां त्यक्तवा शरीरं शिवमाप्नुवन्ति। मछली हो या मेंढक हो या अन्य कोई जीव जंतु हों, आकाश में रहने वाले हों या जल में रहने वाले हों या थल में रहने वाले जीव हों उनको भगवान शंकर मुक्ति देते हैं। यह है काशी वास की महिमा। काशी की महिमा बहुत विशेष मानी गई है। यहां रहने वाले यमराज की फांसी से दूर हो जाएं इसके लिए शंकर भगवान हरदम सजग रहते हैं। मेरी प्रजा को काल का दंड न मिले ऐसा विचार हृदय में रखते हैं।

अध्यात्म रामायण में भगवान श्रीराम की स्तुति करते हुए भगवान शंकर कहते हैं- जीवों की मुक्ति के लिए आपका ‘राम’ नाम रूपी जो स्तवन है अंत समय में मैं इसे उन्हें सुना देता हूं जिससे उन जीवों की मुक्ति हो जाती है-

‘अहं हि काश्यां...दिशामि मंत्रं तव राम नाम।’

जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं।

अंत राम कहि आवत नाहीं॥

   अंत समय में राम कहने से वह फिर जन्मता-मरता नहीं। ऐसा राम नाम है। भगवान ने ऐसा मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया। कोई भी अन्न का क्षेत्र खोले तो पास में पूंजी चाहिए। बिना पूंजी के अन्न कैसे देगा? शंकर जी कहते हैं- हमारे पास ‘राम’ नाम की पूंजी है। इससे जो चाहे मुक्ति ले लो।

मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर।

जहं  बस  संभु  भवानि  सो  कासी  सेइअ  कस न॥

यह काशी भगवान शंकर का मुक्ति क्षेत्र है। यह राम नाम की पूंजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं। अनंत जीवों की मुक्ति कर देने पर भी इसमें कमी नहीं आती। आए भी तो कहां से। वह अपार है, असीम है। नाम की महिमा कहते-कहते गोस्वामीजी हद ही कर देते हैं। वे कहते हैं-

कहौं कहां लगि नाम बड़ाई।

रामु न सकैं नाम गुन गाई।।

  - रामचरितमानस, बालकाण्ड- २६ / ८

भगवान श्रीराम भी नाम का गुणगान नहीं गा सकते। इतने गुण राम नाम में हैं। ‘महामंत्र जोइ जपत महेसू’ इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामंत्र इतना विलक्षण है कि महामंत्र राम नाम जपने से ‘ईश’ भी महेश हो गए। महामंत्र का जप करने से कोई भी इस भवसागर से पार हो सकता है।

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