रावण के विनाश का कारण

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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पद पाताल सीस अज धामा।

अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥

भृकुटि बिलास भयंकर काला।

नयन दिवाकर कच घन माला॥

  महारानी मंदोदरी रावण को समझा रही हैं कि पाताल (जिन विश्व रूप भगवान का) चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य (बीच के सब) लोकों का विश्राम (स्थिति) जिनके अन्य भिन्न-भिन्न अंगों पर है। भयंकर काल जिनका भृकुटि संचालन (भौंहों का चलना) है। सूर्य नेत्र है, बादलों का समूह बाल है।

  वे साक्षात् ईश्वर नारायण हैं उनकी धर्म पत्नी को वापस कर उनकी शरण में चले जाओं, रावण विद्वान है, लेकिन अंहकारी है, सब म़ंदोदरी कि बात को बडे ध्यान से सुनता है, ओर मुस्कुरा रहा है, साधारण सी बात है कि जब कोई आपकी बात को ध्यान से सुने मुस्कराये तो यही लगता है कि बात का कुछ असर पड़ रहा है, महरानी भी खुश कि रावण, उनकी बात को समझ रहा है, मंदोदरी पूछती है कि महराज कुछ समझें , रावण हां कहता है, चलो यह तो बडी खुशी की बात है।

लेकिन महराज क्या समझे ?

  रावण यही कि तुम नाम तो राम का ले रही हो, लेकिन बात हमारी कर रही हो, साधारण सी बात है कि पत्नियाँ अपने पति का नाम नहीं लेती हैं, तुम भी धर्म परायण नारी हो,इसलिए राम का लेकर सम्बोधन हमें कर रही हो। अब आप सोचों मंदोदरी क्या सोचती होगी कि सब सत्यानाश...।

यहां भैंस के आगे बीन बजाने वाली बात हो गई।

चलत दसानन डोलति अवनी।

गर्जत गर्भ स्रवहिं सुर रवनी॥

 रावण बहुत ही बलशाली था, कहते हैं रावण के दस सिर थे। क्या सचमुच यह सही है? कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। कुछ विद्वानों अनुसार रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए।

  रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था।

रन मद मत्त फिरइ गज धावा।

प्रतिभट खोजत कतहुँ न पावा॥

  रावण मद मे पागल हो गया था, जैसा कि आज हर आदमी मे एक रावण हैं, जो दस तरह की बात करें, अपने बात पर अडिग न रहे, वह रावण, जिसे पराई संम्पत्ति ओर पराई स्त्री का मोह हो, वह रावण, आप खुद कल्पना करो,कि मंदोदरी जैसी सती एवं सुंदर नारी, दस सिर वाले कुरुप व्यक्ति से शादी क्यों करेगी, क्या आज के परिवेश में यह संम्भव है, शायद नहीं। ग्यानी ओर बुद्धिमान होना अलग बात है लेकिन अंहकारी होना, अपने सामने दूसरे को तुक्ष समझना। 

भोगावति जसि अहिकुल बासा।

अमरावति जसि सक्रनिवासा॥

तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका।

जग बिख्यात नाम तेहि लंका॥

  जैसी नागकुल के रहने की (पाताल लोक में) भोगावती पुरी है और इन्द्र के रहने की (स्वर्गलोक में) अमरावती पुरी है, उनसे भी अधिक सुंदर और बाँका वह दुर्ग था। जगत में उसका नाम लंका प्रसिद्ध हुआ॥

  क्या नहीं था रावण के पास सोने की लंका, पुष्पक विमान, सैकड़ों सुंदर स्त्री, तुलसीदास जी लिखते हैं -

देव जच्छ गंधर्ब नर किंनर नाग कुमारि।

जीति बरीं निज बाहु बल बहु सुंदर बर नारि॥

  देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य, किन्नर और नागों की कन्याओं तथा बहुत सी अन्य सुंदरी और उत्तम स्त्रियों को उसने अपनी भुजाओं के बल से जीतकर ब्याह लिया॥ उसका परिवार बिशाल काय था

सुत समूह जन परिजन नाती।

गनै को पार निसाचर जाती॥

  लेकिन परस्त्री का मोह उसको कभी पूरा नहीं हुआ,यही उसके विनाश का कारण बना। 

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