माँ के दूध की ताकत

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  रावण वध हो चुका था। राम पूरे वानर व विभीषण के नेतृत्व में गणमान्य रक्ष नागरिकों के साथ अयोध्या की ओर लौट रहे थे। रास्ते में किष्किंधा में कुछ समय के लिए विश्राम तय हुआ और तब सहसा राम का ध्यान हनुमान के चेहरे की ओर गया। वे कुछ संकोच में दिख रहे थे। "हनुमान, आप कुछ कहना चाहते हैं?" राम ने स्निग्ध स्वर में पूछा। 

"भद्र, मेरी माँ यहीं पास में ही निवास करती हैं यदि वानरराज और आपकी आज्ञा हो तो पिताजी के साथ मैं उनके दर्शन कर आऊँ!" हनुमान ने संकोच के साथ अपनी बात रखी। चकित राम एकदम उल्लास से भर उठे। 

"अरे! आंजनेय यह क्या? क्या माता के दर्शन अकेले ही करोगे?? मुझे, वैदेही और सौमित्र उनके आशीर्वाद के अधिकारी नहीं ?" 

"पर....!" हनुमान ने कुछ कहना चाहा। 

"वानरराज आपको आपत्ति न हो तो..!" मर्यादापुरुषोत्तम सुग्रीव की ओर मुड़े। 

"आपको अनुमति की क्या आवश्यकता भद्र राम। मैं स्वयं ही आपके साथ चलकर माता अंजनी के दर्शन करूंगा।" सुग्रीव कम उल्लसित नहीं थे। 

 पूरा सार्थ किष्किंधा से थोड़ी दूर स्थित आंजनेय पर्वत की ओर मुड़ गया जहां यूथपति केसरी का यूथ निवास करता था। सार्थ केसरी के निवास पर पहुँच गया। 

  माता अंजना प्रायः शिवसाधना में लीन रहा करती थीं लेकिन हनुमान के साथ राम, लक्ष्मण, सीता व समस्त वानरों को आया देख वह आनंद के साथ-साथ सुखद आश्चर्य में डूब गईं। 

  हनुमान के साथ सभी को आशीर्वाद मिला। अंजना लंका अभियान की कथा सुनने को व्यग्र थीं। अंगद ने सारे अभियान को संक्षेप में सुनाया। 

  लेकिन सभी ने अनुभव किया कि माता अंजना के चेहरे पर अशांति की रेखाएं अंगद के वक्तव्य की समाप्ति तक खुले क्रोध में बदल चुकी थीं। उनका चेहरा तमतमा रहा था। उन्होंने अपने चरणों में बैठे हनुमान को हाथ से तनिक परे किया और क्रुद्ध स्वर में बोल उठीं,"तूने मेरे दूध को लजा दिया। तेरे रहते राम को युद्ध करना पड़ा। धिक्कार है मेरे दूध को।" सभी चकित थे। हनुमान सिर झुकाकर मौन खड़े रहकर माता की धिक्कार झेल रहे थे। 

"भद्र राम, मुझे और मेरे दूध को क्षमा कर दें। मैं स्वयं ही लज्जित हूँ।" माता अंजना सचमुच लज्जित भाव से क्षमा मांगने लगीं। 

"माँ, आप यह क्या कह रही हैं। हनुमान के पराक्रम से तो उनके शत्रु भी भलीभांति परिचित हैं।", राम ने प्रतिवाद किया। 

"नहीं राघव, मेरे...." सहसा अंजना चुप हो गईं क्योंकि उनका ध्यान लक्ष्मण की व्यंग्यात्मक स्मित की ओर चला गया। 

"लगता है, सौमित्र को माँ के दूध की क्षमता पर विश्वास नहीं है।", अंजना लक्ष्मण की ओर उन्मुख होकर मुस्कुराई। 

"नहीं, माता...", लक्ष्मण झेंप गये। 

"नहीं वत्स, स्वाभाविक ही है लेकिन तुम्हें एक माता के दूध पर शंका शोभा नहीं देती क्योंकि तुमने स्वयं ही सिंहनी जैसी निडर सुमित्रा का वीरत्व उसके दूध के साथ ग्रहण किया है।" स्तब्धता भरे वातावरण में अंजना माता की गर्जना गूंजी। 

"संसार बिना प्रमाण के कोई बात स्वीकार नहीं करता लेकिन मैं संसार को दिखाऊंगी कि हनुमान की माँ के दूध की तासीर क्या है।"

"लो देखो।" माता अंजना ने उत्तरासंग और कंचुकी हटाकर अपने स्तन को दबाकर दूध की धार सामने की चट्टान पर छोड़ी। 

चट्टान कड़कड़ाकर दो हिस्सों में टूट गई। 

"माता अंजना की जय", वानरों का जयघोष गूंज उठा। 

लक्ष्मण स्तब्ध थे। (आनंद रामायण)

  यह मूलतः एक प्रतीकात्मक कथा है जो बताती है कि हनुमान सरीखे महावीर अंजना जैसी माताओं के गर्भ से जन्म लेते हैं।

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