एक युवक और राजा की कहानी ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -

empire
empire and young man

 एक युवक एक रात अपने मित्र के घर एक राजधानी में आकर ठहरा। चिंतित था, रात करवटें बदलता था, नींद नहीं आती थी। उसके मित्र ने पूछा, क्या बात है?

  पुराने दिनों की बात है, आज की बात नहीं। नहीं तो कितनी ही करवटें बदलिए, कोई मित्र न पूछेगा कि क्या बात है? यह तो बहुत पुरानी कहानी है, उस वक्त मित्र पूछते थे। किसी को करवट बदलते देखते थे तो पूछते थे—क्या बात है? अब तो कोई मित्र नहीं पूछता, आप करवट बदलिए तो वह और गहरी नींद में सो जाता है। लेकिन पुरानी कहानी है इसलिए मैंने उसको बदला नहीं, वैसे ही रहने दिया। वह करवट बदलता था तो उसके मित्र ने पूछा, क्या बात है? नींद नहीं आती, कोई पीड़ा? कोई बेचैनी?

  उस युवक ने कहा, बहुत मन में बेचैनी है। जिस गुरुकुल में मैं पढ़ता था, दस वर्ष वहां रहा, गुरु ने ही भोजन दिया, गुरु ने ही कपड़ा दिया, गुरु ने ही हैं ज्ञान दिया। सब कुछ लिया उनसे और मेरे पास एक कौड़ी भी न थी कि उनको भेंट कर सकता। जब अंत में विदा हुआ, सारे मेरे मित्रों ने कुछ न कुछ भेंट दिया, मैं कुछ भी भेंट नहीं दे पाया। आज वहीं से लौटा हूं गुरुकुल से, मेरी आंखों में आंसू हैं और मेरे हृदय में बड़ी वेदना है कि मैं गुरु को कुछ भी भेंट नहीं कर पाया हूं।

  उसके मित्र ने पूछा, क्या तुम भेंट करना चाहते हो? ज्यादा नहीं, उसने कहा, पांच स्वर्ण अशर्फियां मिल जाएं तो बहुत है। उसके मित्र ने कहा, चिंता मत करो। इस गांव का जो राजा है, उसका नियम है, उसका व्रत है कि पहला याचक उससे जो भी मांग ले, वह भेंट कर देता है। तो तुम कल जल्दी जाना सुबह, राजा से मांग लेना। पांच अशर्फियां मिल जानी कठिन नहीं हैं।

  वह युवक रात भर न सो सका। जिसको सुबह पांच अशर्फियां मिलनी हों वह कभी रात भर सो सकता है? वह भी नहीं सो सका। सुबह बहुत जल्दी अंधेरे में ही भागा हुआ राजमहल पहुंच गया। राजा निकला तो उसने कहा कि मैं पहला याचक हूं। मेरी मांग है थोड़ी सी, पूरी कर देंगे?

  राजा ने कहा, स्वागत है तुम्हारा। और तुम आज के ही पहले याचक नहीं, मेरे जीवन के ही पहले याचक हो। यह हमारा राज्य बड़ा समृद्ध है, कोई मांगने नहीं आता। इसीलिए तो मैं भी हिम्मत कर सका कि कोई जो भी मांगेगा उसको दे दूंगा। नहीं तो मैं भी कैसे हिम्मत कर सकता था! लेकिन आज तक कोई मागने आया नहीं, तुम पहले ही याचक हो, आज के ही नहीं, पूरे जीवन के। तुम जो भी मांगोगे, मैं दूंगा। राजा ने कहा, जो भी मांगोगे, मैं दूंगा। युवक के भीतर पांच अशर्फियां मिट गईं, खयाल उसे भूल गया। उसने सोचा, जो भी मांगोगे दूंगा, तो मैं पागल हूं जो मैं पांच मांग! पचास क्यों न मांग? या पांच सौ या पचास हजार या पांच लाख? संख्या बड़ी होती गई। राजा सामने खड़ा था, भीतर संख्या बड़ी होती जाती थी। युवक तय न कर पाता था कितने मांग र क्योंकि राजा कहता है जो भी मांगोगे। वह भूल गया यह कि पांच अशर्फियां मांगने आया था, जरूरत मेरी पांच की थी। जरूरत खतम हो गई अब, जरूरत कोई भी न थी, अब तो संख्या का सवाल था।

 राजा ने कहा, तुम चिंतित मालूम पड़ते हो, विचार नहीं कर पाते। तुम सोच लो ठीक से, मैं घूम कर आया, बगिया में एक चक्कर लगा आऊं।

  युवक ने कहा, ठीक है, बड़ी कृपा है। आप चक्कर लगा आएं, मैं थोड़ा विचार कर लूं।

 विचार क्या करना था? संख्याओं पर संख्याएं बढ़ती चली गईं। आखिर संख्या का अंत आ गया, जितनी संख्याएं उसे मालूम थीं। आज उसके हृदय में बड़ा दुख और बड़ी पीड़ा घिर गई। उसके गुरु ने बहुत कहा कि और गणित सीखो, लेकिन गणित में वह कमजोर रहा। सोचता था गणित का फायदा क्या है आखिर इतना सीखने का? आज पता चला कि फायदा था, आज संख्या अटक गई एक जगह जाकर, उसके बाहर, उसके ऊपर कोई संख्या उसे मालूम नहीं। इतना ही मांग कर लौट जाना पड़ेगा। पता नहीं राजा के पास पीछे और कितना बच जाए? एक मौका मिला था वह खोया जा रहा है। मिलने की खुशी न रही, जो छूटता था उसका दुख पकड़ लिया। सभी के साथ ऐसा होता है, उसके साथ भी ऐसा ही हुआ। राजा लौट कर आ गया, उसने पूछा कि मालूम होता है निश्चिंत तुमने सोच लिया।

  तब युवक ने अंतिम छलांग ली, उसे एकदम अंतर्दृष्टि मिली। संख्याएं तो खत्म हो गई थीं, उसने सोचा संख्याओं की बात ही बंद करूं। राजा के पास जो कुछ है सब मांग लूं। राजा से कह दूं कि दो वस्त्र तुम्हारे लिए काफी हैं, पहने हो, बाहर निकल जाओ। अब भीतर जाने की कोई भी जरूरत नहीं। जैसे मैं दो वस्त्र पहन कर आया, ऐसे ही आप भी विदा हो जाएं। सब मेरा हुआ। संख्या में भूल—चूक हो सकती थी इसलिए सब मांग लेना उचित था।

  जो भी गणित में ठीक—ठीक समझता है, वह भी यही करता। सोचा था राजा घबड़ा जाएगा। बात लेकिन उलटी हो गई। कई बार नाव पर लोग सवार होते हैं, कभी—कभी नाव भी लोगों पर सवार हो जाती है। उस दिन भी ऐसा ही हो गया। उस युवक ने सोचा था राजा घबड़ा जाएगा। एकदम सम्राट से हो जाएगा दो कौड़ी का भिखारी। कोई भी घबड़ा जाएगा। हो सकता है मर ही जाए। लेकिन बात हो गई उलटी। जैसे ही उस युवक ने कहा कि सब मुझे दे दें, जो दो कपड़े पहने हुए हैं, केवल ये ही लेकर बाहर निकल जाएं। उस राजा ने जोड़े हाथ आकाश की तरफ और कहा, हे परमात्मा, जिसकी मैं प्रतीक्षा और प्रार्थना करता था, तूने उसे भेज दिया! उस युवक को लगा लिया गले और कहा, दो कपड़े नहीं, दो कपड़े भी नहीं ले जाऊंगा। इतना भी दुख तुझे न दूंगा कि दो कपड़े ले जाऊं, वे भी छोड़ देता हूं नग्न ही बाहर निकल जाता हूं।

  युवक तो बहुत घबड़ा गया। बात क्या है? उसने पूछा, बात क्या है? इतने प्रसन्न क्यों हैं? इतने आनंदित क्यों हैं? राजा ने कहा, मुझसे मत पूछ। महलों में रह और देख। राज्य को सम्हाल और समझ। आखिर मैंने भी मुफ्त में नहीं जाना, तीस साल इन दीवालों के भीतर बिताए हैं तब जान पाया हूं। तो तू भी रह और विचार। अभी तू युवा है, इतनी जल्दी क्या है, मुझसे क्या पूछता है? और दुनिया में कोई किसी से पूछ कर कभी समझा है? कोई भी नहीं समझ पाता। तू रुक! तू रुक और ठहर और मैं जाता हूं ये कपड़े भी सम्हाल।

  वह युवक बोला, ठहरें! एक क्षण ठहरें! मैं अनुभवी नहीं हूं एक मौका मुझे सोचने का और दें। राजा ने कहा कि नहीं, जो सोचता है वह मुश्किल में पड़ जाता है। इसीलिए तो दुनिया में कोई सोचता नहीं, हर आदमी बिना ही सोचे चला जाता है। तू भी मत सोच। सोचने वाले मुश्किल में पड़ जाते हैं; सोचने वालों के सामने जीवन एक समस्या बन जाता है; सोचने वालों के लिए जीवन एक साधना बन जाता है। सोच मत। अभी जिंदगी पड़ी है, खूब सोच लेना बाद में। पहले तू भीतर जा, मैं बाहर जाऊं। जितना राजा ने आग्रह किया कि तू सम्हाल, उतना ही युवक ढीला होता गया। उस युवक के हाथ—पैर ढीले हो गए। उसने कहा, माफ करें, एक मौका मुझे दें। मैं नासमझ हूं और आप मेरे पिता की उम्र के हैं, मुझ पर इतनी कृपा करें—एक बगिया का चक्कर और लगा आएं, मैं एक दफा और सोच लूं। राजा ने कहा कि देख, बगिया का चक्कर तो मैं लगा आऊंगा, लेकिन तू यहां मुझे वापस मिलेगा इसमें संदेह है। और यही हुआ, राजा चक्कर लगाकर लौटा, वह युवक वहां नहीं था। वह भाग गया था। वह पांच अशर्फियां भी छोड़ गया जो कि उसे लेनी थीं। क्यों? क्या हो गया?

  उस युवक के पास देखने वाली आंखें थीं, वह देख पाया। इसको मैं देखना कहता हूं। जिंदगी में ऐसी आंख जिसके पास है वही आदमी धार्मिक हो सकता है। देखने वाली आंख! आंखें तो हम सबके पास हैं, हम उनसे कभी देखने का काम ही नहीं लेते। जिंदगी भी चारों तरफ मौजूद है, सब कुछ मौजूद है, हम आंखों का काम ही नहीं लेते। आंख खोलें और थोड़ा देखें, जिंदगी में वे सारे इशारे हैं जो निरंतर दोहराई गई भूलों से किसी भी आदमी को जगा देने में समर्थ हैं। कोई शास्त्र नहीं कर सकता जो, कोई गुरु नहीं कर सकता जो, जिंदगी वह कर सकती है, लेकिन खुली हुई आंख चाहिए। कौन खोलेगा यह आंख? कोई दूसरा आपकी आंख खोल सकता है? नहीं, आंखें आपके पास हैं, आज से ही खोल कर देखें जिंदगी को चारों तरफ, छोटी छोटी  घटनाओं को देखें।तो मैं निवेदन करूंगा, अगर जीवन में कहीं पहुंचना हो तो थोड़ी देर रुकना भी सीखना चाहिए। वे ही थोड़े से लोग जो रुकने में समर्थ हो पाते हैं, देखने में समर्थ हो पाते हैं। देखने की पहली शर्त है रुकना। थोड़ी देर रुक कर देखें तो! चारों तरफ देखें क्या हो रहा है? अगर चारों तरफ आप गौर से देखेंगे, तो उन्हीं भूलों को आप नहीं कर पाएंगे जो आपके चारों तरफ हो रही हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!