सीता केरि करेहु रखवारी। बुधि बिबेक बल समय बिचारी ॥

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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सीता की रक्षा

 रामचरितमानस’ का यह प्रसंग हमें सुन्दर और रोचक इसलिए लगता है, क्योंकि जहाँ इसमें चमत्कार का रोमांच है, वहीं श्रीराम के जीवन-दर्शन का बहुत गहरा अर्थ भी। तो सबसे पहले स्वर्ण मृग की बात। मृग वैसे भी बहुत प्यारा लगता है-कजरारी-सी भोली आँखें, लचीली छरकही देह, छोटी-छोटी कुलांचे और गोल-गोल धब्बे वाली खूबसूरत खाल। लेकिन यदि यही मृग स्वर्ण रंग का हो जाये, तो समझा जा सकता है कि उसकी सुन्दरता कितनी अधिक बढ़ गई होगी। तो सीता, जो वन में पिछले लगभग तेरह सालों से लगातार मृगों के बीच में रह रही थीं यदि अद्भुत और अनोखे उस स्वर्ण मृग को देखकर उससे सम्मोहित हो जाती हैं, तो इसमें उनका कोई विशेष दोष दिखाई नहीं देता। यहाँ दोष की बात इसलिए की जा रही है, क्योंकि यह स्वर्ण मृग ही सीता के अपहरण का कारण बना था। यहाँ स्वर्ण मृग के प्रति आकर्षित होकर सीता ने एक ऐसे सामान्य भाव को प्रदर्शित किया है, जो किसी के साथ भी हो सकता है।

  लेकिन सवाल यह है कि एक सामान्य आकर्षण और विवेकपूर्ण आकर्षण में क्या कोई फर्क होता है। लक्ष्मण को सीता की रखवाली का दायित्व सौंपते समय राम लक्ष्मण से यह बात विशेष रूप से कहते हैं ।

  मानस की यह चौपाई आज के परिवेश में हम जैसे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है, कोई भी काम करने केलिए समयानुसार वुद्वि , विवेक, आवश्यकता होने पर बल, का प्रयोग करना चाहिए।

 भगवान श्री राम कहते हैं कि हे लक्ष्मण, तुम बुद्धि, विवेक, बल और समय, इन चारों का अच्छी तरह विचार करके सीता की रखवाली करना। यहाँ पहली बात तो यह कि श्रीराम ने स्पष्ट रूप से बताया है कि बुद्धि एक बात है और विवेक इससे अलग बात है। बुद्धि ज्ञान का विषय होता है, जबकि विवेक सोचा-समझा हुआ निर्णय होता है। हो सकता है कि कोई व्यक्ति ज्ञान की दृष्टि से तो बहुत ऊँचा हो, लेकिन विवेक की दृष्टि से बहुत छोटा। ठीक इसका उलटा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति हो तो अनपढ़, जिसके पास कोई विशेष ज्ञान नहीं है, लेकिन विवेक की दृष्टि से वह विलक्षण हो। तो यहाँ श्रीराम ने लक्ष्मण को सतर्क कर दिया कि केवल बुद्धि से ही रखवाली नहीं करनी है, बल्कि विवेक का भी इस्तेमाल करना होगा। 

  बुद्धि वह मानसिक शक्ति है, जिसके द्वारा हम तथ्यों एवं विचारों को समझ सकते हैं, उनमें संबन्ध निर्धारित कर सकते हैं। यह तर्कपूर्ण होती है। विवेक एक ऐसा ज्ञान जो क्या सही है, क्या गलत है, इसको स्पष्ट कर दे।उसमें कोई संदेह न हो।तर्क रहित ज्ञान को विवेक कहा जाता है।

   बुद्धि का मतलब है दिमाग लगा कर कुछ सोचना या करना, विवेक का मतलब है जन्म से ही मिली होशियारी या ईश्वर द्वारा दी गई समझ। जैसे जानवर पढ़ लिख नहीं सकता क्योंकि उसमें बुद्धि की कमी होती है, पर वह शिकारी मनुष्य से अच्छा होता है क्योंकि ईश्वर ने उसे शिकार करने का विवेक दिया है।

  जरूरत पड़ने पर शक्ति का भी इस्तेमाल करना। शक्ति का इस्तेमाल समय के अनुरूप होना चाहिए न कि हर समय। बुद्धि, विवेक, बल और समय; इन चारों के सामंजस्य से ही किसी भी कार्य को सही तरीके से पूरा किया जा सकता है। केवल एक ही पर्याप्त नहीं होता। अंत में प्रभु से प्रार्थना है कि हे प्रभु -

जासु   नाम  भव भेषज हरन घोर त्रय सूल ।

सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥

 जिनका नाम जन्म-मरण रूपी रोग की (अव्यर्थ) औषध और तीनों भयंकर पीड़ाओं (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःखों) को हरने वाला है, वे कृपालु श्रीराम मुझ पर और आप पर सदा प्रसन्न रहें।

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