पुण्यतिथि 10 अप्रैल ; मोरारजी देसाई आपातकाल में तमाम विपक्षी नेताओं की तरह मोरारजी देसाई भी जेल में थे। वहां उन्होंने जो लिखा वह उनकी आत...
पुण्यतिथि 10 अप्रैल ; मोरारजी देसाई
आपातकाल में तमाम विपक्षी नेताओं की तरह मोरारजी देसाई भी जेल में थे। वहां उन्होंने जो लिखा वह उनकी आत्मकथा ' द स्टोरी ऑफ माई लाइफ ' का हिस्सा है। सिद्धांतो को लेकर अड़ने-लड़ने और न झुकने वाले मोरारजी भाई की शख्सियत को समझने में यह अंश मदद कर सकता है,
"उन्होंने (इंदिरा जी ने) आपातकाल की समाप्ति के लिए अनेक शर्तें लगा दीं। इसमें सत्याग्रह का अधिकार त्याग देना शामिल है। मैं इन पवित्र और अलग न किये जा सकने वाले मानवाधिकारों और कर्तव्यों का त्याग करने के बजाय मौत को पसंद करूंगा। मैं आपातकाल जैसी स्थिति में प्रधानमंत्री बनने की तुलना में जीवन भर जेल में रहना पसंद करूंगा। मेरे विचार में देश और समाज के भविष्य की आशा तब तक ही है, जब तक स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखने के लिए कुछ लोग कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। उस देश का कोई भविष्य नही है,जहां के लोग भयभीत रहते हैं। मानवीय स्वतंत्रता के बिना भौतिक और शारीरिक सम्पन्नता केवल अच्छा भोजन पाने वाले घरेलू जानवरों और पशुओं के लिए पर्याप्त है। यह इंसानों के लिए नही है।
इंदिरा बेन को मेरी बात माननी होगी
1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय चंद्रशेखर ने मोरारजी देसाई का जबरदस्त विरोध किया था। दोनो के रिश्ते तब काफी खराब थे। बावजूद इसके चंद्रशेखर मोरारजी भाई से अनशन तोड़ने के आग्रह के साथ उनके सामने बैठे थे। नवनिर्माण आंदोलन के दौरान 1975 में गुजरात की स्थिति विस्फोटक थी। चिमन भाई पटेल की सरकार की बर्खास्तगी की मांग को लेकर मोरारजी भाई ने 12 मार्च 1975 से आमरण अनशन शुरू कर रखा था। इसके चलते हालात और बिगड़ रहे थे। चंद्रशेखर ने मोरारजी भाई से कहा," आप इस तरह अनशन क्यों कर रहे हैं? आपको अगर कुछ हो गया तो देश की हालत बहुत खराब हो जाएगी। बड़ा उत्पात और हिंसा होगी। मैं आपका बहुत आदर करता हूँ।" मोरारजी भाई ने चंद्रशेखर से सवाल किया था कि आप ईश्वर में विश्वास करते हैं। चंद्रशेखर का जबाब था कि करता भी हूँ। नही भी करता हूँ। मैं दोनो के बीच में हूँ। मोरारजी बोले," यही आपकी दिक्कत है। अगर भगवान मुझे इसी तरीके से ले जाना चाहेगा तो ऐसे ही चला जाऊंगा। नही तो इंदिरा बेन को मेरी बात माननी होगी।"
वह मर जाएंगे अनशन नहीं तोड़ेंगे
उनकी दृढ़ता चंद्रशेखर को भीतर तक छू गई। चंद्रशेखर ने बाबू जगजीवन राम और वाई बी चव्हाण से कहा कुछ कीजिये। दोनो ने मजबूरी जाहिर कर दी। चंद्रशेखर इंदिरा जी के पास पहुंचे। उनका एक लम्बा भाषण सुना। उन्होंने कहा कि अगर हम गुजरात विधानसभा भंग कर दें तो फिर कहीं से भी मांग उठ सकती है। चंद्रशेखर ने कहा था कि कहीं और गुजरात में अंतर है। वहां मोरारजी भाई अनशन पर हैं। अगर उनको कुछ हो गया तो आप स्थिति संभाल नही पाएंगी। इंदिरा जी का गुस्सा बढ़ा और उन्होंने कुछ तीखी बातें कहीं। चंद्रशेखर ने उन्हें जबाब दिया था ( यू हैव टू डिसाइड. यू आर रेडी टू लूज गुजरात ऑर यू वांट टू लूज होल इंडिया. ) चंद्रशेखर ने उन्हें मोरारजी से अपनी मुलाकात की जानकारी दी। कहा ," वह दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति हैं। वह मर जायेंगे पर अनशन नही तोड़ेंगे।" इसके बाद इंदिराजी कुछ नरम पड़ीं।कहा आप बात कीजिये। मैं देखती हूँ। इस जबाब ने चन्द्रशेखर को कुछ उम्मीद बंधाई।
करियर की शुरुआत प्रशासनिक सेवा से
29 फरवरी 1895 को भदैली (बम्बई प्रेसिडेंसी) में जन्मे मोरारजी भाई देसाई 1917 में बम्बई प्रोविंशियल सर्विसेज़ में चुने गए थे। 1927-28 में गोधरा के दंगों के वक्त उन पर पक्षपात के आरोप लगे थे। खिन्न मोरारजी ने 1930 में उपायुक्त के पद से इस्तीफा दे सरकारी सेवा को अलविदा कह दिया था। जल्दी ही वह आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। जेल यात्राएं की। 1937 में राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य बने। 1952 में बम्बई के मुख्यमंत्री चुने गए। 1956 से लेकर 1969 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक महत्वपूर्ण सदस्य के तौर पर उन्होंने बड़ी जिम्मेदारियां निभाईं। पंडित नेहरू के निधन के बाद वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। इस पद पर उन्हें आगे पहुंचना था लेकिन बीच में 13 साल का इंतजार था। हालांकि 1969 तक केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और आखिरी दो सालों में उपप्रधानमंत्री के तौर पर उनकी प्रभावी उपस्थिति बनी रही। 1969 में कांग्रेस के ऐतिहासिक विभाजन के वक्त मोरारजी कांग्रेस (ओ) के पाले में थे। उनके लिए अगले आठ साल सत्ता से संघर्ष के थे जिसमें 19 महीने की जेल यात्रा भी शामिल थी
कड़क प्रशासक ,अड़ियल छवि
1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी की एक बार फिर से दावेदारी थी। बाबू जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह की चुनौती सामने थी। प्रदेश से केंद्र तक की सरकारों में कामयाबी के साथ बड़ी जिम्मेदारियां निभा चुके मोरारजी की छवि एक कड़क प्रशासक के साथ ही अपने विचारों को लेकर अड़ियल नेता की थी। विभिन्न घटकों को समेटे जनता पार्टी की सरकार को चलाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। मोरारजी की जिद्दी छवि उनका दावा कमजोर कर रही थी। पलड़ा बाबू जगजीवन राम की ओर झुकता देख आखिरी समय में चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी के नाम का समर्थन करके उनका प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया। बात दीगर है कि अगले कुछ दिनों में चौधरी साहब मोरारजी और उनकी सरकार के लिए बड़ी समस्या बने। चौधरी साहब की उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पद से 1जुलाई 1978 को राज नारायण जी के साथ सरकार से बर्खास्तगी हुई। मोरारजी भाई उन्हें फिर से सरकार में वापस लेने को कतई तैयार नही थे। फिर उन्होंने 24 जनवरी 1979 को चरण सिंह को वित्त मंत्री और उप प्रधानमन्त्री की जिम्मेदारी क्यों दी ? इसका जबाब लाल कृष्ण आडवाणी ने दिया है। आडवाणी जी के अनुसार ,' इस मोड़ पर अटलजी और मैंने गलत फैसला किया। नवजात पार्टी की एकता के बारे में हमारे भावनात्मक लगाव ने हमारे राजनीतिक निर्णय को प्रभावित किया । हमने चरण सिंह और प्रधानमंत्री को फिर साथ लाना और चरण सिंह को सरकार में पुनः सम्मिलित कराना सुनिश्चित किया। चरण सिंह को दोबारा सरकार में शामिल करना ही पार्टी और सरकार के विनाश का कारण बना।'
मोरारजी सरकार की असमय विदाई की थीं अनेक वजहें
23 मार्च 1977 को मोरारजी भाई प्रधानमंत्री बने। 28 जुलाई 1979 को उनका इस्तीफा हुआ। इस सरकार की असमय विदाई के कारणों की फेहरिस्त है। उसके कामकाज को लेकर भी बहुत से सवाल हैं। जनता पार्टी और उसकी सरकार आपातकाल के विरोध की देन थी। आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान के 42 वें संशोधन ने उसके मौलिक ढांचे पर आघात किया था। मोरारजी सरकार की देश की जनता को सबसे बड़ी देन 44वें संशोधन के जरिये संविधान की पवित्रता और सर्वोच्चता को पुनः स्थापित करना था। इस संशोधन ने आंतरिक गड़बड़ी बताकर आपातकाल लागू करने की शक्ति कार्यपालिका से वापस ले ली । सुनिश्चित किया कि अनुच्छेद 352 के अंर्तगत आपातकाल की उदघोषणा वास्तव में संविधान संशोधन के समान है। उस समय में एकात्मक राज्य व्यवस्था स्थापित हो जाती है, जिसमे नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के लिए न्यायालय नही जा पाते और उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार निलंबित कर दिए जाते हैं। इस शक्ति का दुरुपयोग न किया जा सके इसलिए व्यवस्था की गई कि आपातकाल केवल तभी लागू किया जाएगा जब वाह्य आक्रमण और सैन्य विद्रोह का खतरा हो। आंतरिक गड़बड़ी जो सैन्य विद्रोह जैसी न हो , को आपातकाल लागू करने का आधार नही बनाया जा सकता। ऐसी घोषणा पर राष्ट्रपति की सहमति के लिए मंत्रिमंडल के स्वीकृत प्रस्ताव की लिखित सहमति अनिवार्य की गई। ऐसी घोषणा को दोनो सदनों की एक माह के भीतर संविधान संशोधन के लिए अपेक्षित बहुमत की सहमति की शर्त जोड़ी गई। आपातकाल की अवधि छह माह निश्चित की गई। इस अवधि के विस्तार के लिए एक बार फिर दोनो सदनों की पूर्व प्रक्रियानुसार सहमति अनिवार्य की गई। ये संशोधन उस राज्य सभा से भी पारित हुआ, जहां जनता पार्टी सरकार के पास संख्या बल नही था। तब कांग्रेस भी इन संशोधनों को जरूरी मानने लगी थी। आडवाणी जी ने लिखा है,' जब मैं कमलापति जी के पास आपातकाल विरोधी विधेयक के प्रस्ताव लेकर जाता था, वे अपना हाथ हिलाते और कहते अरे भाई आपको जो करना हो करो। हमे कोई आपत्ति नही है।
पद से हटने के बाद सरकारी बंगला कुबूल नहीं
मोरारजी भाई ने सत्ता से हटने के बाद लम्बा समय मुम्बई के नरीमन प्वाइंट स्थित अपने फ्लैट में बेहद सादगी और शांति के साथ बिताया। उन्होंने सरकारी बंगले की पेशकश ठुकरा दी थी। 99 वर्ष की उम्र में 10 अप्रैल 1995 को उनका निधन हुआ। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा,' जेल में रहने के दौरान ईश्वर में मेरा विश्वास और दृढ़ हुआ। मैंने आत्ममंथन किया कि अपने को कैसे सुधार सकता हूँ? मैं लगातार अपने से यह प्रश्न करता रहा। मैंने महसूस किया कि चिंता कोई मदद नही करती। इसके विपरीत यह निर्णय में बाधा डालती है। यह प्रगति और दूसरों की मदद से रोकती है। मैं स्वयं को पूरी तौर पर ईश्वर की इच्छा पर सौंपकर हर मानसिक क्लेश से मुक्ति पा लेता हूँ।
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