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SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  अरे मोहन भैया आइए-आइए ! जैसे ही आकाश ने मोहन को देखा तो उसका स्वागत करते हुए बोला - क्या बात है आकाश भाई ? नये कपड़े पहने कहीं जाने की तैयारी कर रहे हो। लगता है मैं गलत समय पर आ गया फिर कभी आऊंगा।

  अरे नहीं ! मैं तो बस मंदिर जा रहा था। वो नया टैंडर होने वाला है तो भगवान से प्रार्थना करने की ये टेंडर मुझे मिल जाए। मंदिर ! अरे तो चलो मैं भी साथ चलता हूँ। भाई वाह ! एक और एक ग्यारह तो चलो !

  मोहन ने बाइक स्टार्ट की और आकाश पीछे बैठ गया दोनों पास के मंदिर में भगवान जी के दर्शन करने पहुंचे। दोनों ने मंदिर में भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया और बाहर निकल आए मोहन जहाँ बाइक पार्किंग से लेने चला गया तो आकाश वहीं बाहर उसका इंतजार करने लगा। तभी बाबूजी-बाबूजी ! भगवान के नाम पर कुछ दीजिए भगवान आपका भला करेंगे !

एक बुजुर्ग आकाश की और आते हुए बोला उसके कपड़े लगभग मैले कुचैले से थे ।

अबे चल, दूर हट !

बाबूजी, भूखा हूं कुछ !

 सुना नहीं चल हट ! जाकर कमा कर खाओ ! आ जाते हो मुंह उठाकर बेशर्म कही के मांगने के लिए !

  ये देखकर मोहन ने बाइक स्टैंड पर खड़ी की और बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा आप कुछ खाएंगे भूख लगी है आपको बाबा - हां बेटा !

  मोहन तुरंत पास की दुकान से पूड़ी सब्जी लेकर आया और बुजुर्ग व्यक्ति को देते हुए बोला - वो बाबा खा लो !

  बुजुर्ग बड़े चाव से खाने लगा तब तक बाइक में रखी पानी की बोतल निकालकर मोहन ने उस बुजुर्ग व्यक्ति को देते हुए कहा, साफ पानी है बाबा - पी लीजिएगा !

  ये सब देख रहे आकाश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था क्योंकि उसकी तरह मोहन भी भीख देना अच्छा नहीं मानता था मगर आज ?

   इससे पहले वो मोहन को कुछ कहता, मोहन उससे बोला क्या यार ! आकाश देखकर तो बोला कर बुजुर्ग आदमी है। पता नहीं किस मजबूरी में और अगर तुम्हें कुछ भी नहीं देना था तो कोई बात नहीं मगर इतना डांटना तो नहीं था।

  मोहन मेरी बात सुन ! ये लोग ऐसे मानने वाले नहीं है और तू कबसे इनका हिमायती बनने लगा, तू भी भीख देने के खिलाफ रहता है ना !

  हां ! मैं भी किसी को भीख देने के खिलाफ रहता हूँ मगर उन बुजुर्ग व्यक्ति ने पैसे नहीं भूख का हवाला देकर कहा था कि वह भूखे हैं और भूखे को खाना खिलाना भीख नहीं होती। मैं तो तुझे बस ये कह रहा था कि भाई अगर तुम्हें उसे कुछ नहीं भी देना था तो कम से कम प्यार से मना कर देता ।

 अच्छा ! उससे क्या हो जाता और क्यों मना करता प्यार से वो मुझसे मांग रहा था समझा कोई कर्जा नहीं ले रखा मैंने उससे। ये होते ही बेशर्म लोग हैं एकबार दे दो तो मुंह उठाए चले आते हैं मांगने को !

सही कहा मेरे भाई तुमने बेशर्म लोग ! अब एकबार यही बात खुदपर भी लागू करते हुए सोचकर देख तो !

क्या मतलब ?

   मतलब ये हम भी तो आए दिन भगवान जी से कुछ ना कुछ मांगते रहते हैं। अगर भगवान जी ने भी इसी तरह से हमें डांटना शुरू कर दिया कि जो मेहनत कर बेशर्म कही के आ जाता है। बार बार मांँगने के लिए तो फिर कैसा रहेगा। अब आकाश शर्मिंदगी से सिर झुकाए खड़ा हुआ था ।

  मेरे भाई मैं नहीं कहता कि तुम किसी को भीख दो मगर किसी जरूरतमंद की मदद तो कर सकते हो तो करो ना इसी का नाम तो दुनियादारी है जैसे हमें उम्मीद होती हैं किसी से की वो हमारे लिए ये काम कर दे तो आसानी होगी काम बन जाएगा वैसे ही हम जैसे लोगों से भी कुछ लोग उम्मीद बांधे देखते हैं तो उन जरुरतमंद लोगों की मदद करने में हिचकिचाहट कैसी ? चल अब घर चले कहते हुए मोहन ने बाइक स्टार्ट की और आकाश पीछे मुस्कुरा कर बैठ गया।

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