पौराणिक कथाओं में समुद्र के जल को दूध की तरह सफ़ेद और मीठा बताया गया है, जिसमें श्री हरि विष्णु शेषनाग पर विश्राम करते दर्शाए जाते हैं ।
लेकिन आज के समय में हमें समुद्र का जल खारा देखने को मिलता है और यह किसी मनुष्य के पीने योग्य नहीं है | आखिर क्या है इसके पीछे का कारण, आइये जानते हैं पौराणिक कथा के द्वारा |
शिव महापुराण के अनुसार, एक बार हिमालय की पुत्री उमा जिन्हें पार्वती के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
उनकी तपस्या के तेज से तीनो लोक कुपित हो उठे | जब सभी देव मिलकर इसका निवारण खोज रहे थे, उस दौरान समुद्र देव उमा की पर मोहित हो उठे।
जब उमा का तप पूर्ण हुआ । तब समुद्र देव ने उमा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा । उमा ने समुद्रदेव की भावनाओं का सम्मान किया और उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि वे पहले से ही भगवान शिव से प्रेम करती हैं ।
यह सुनकर समुद्र देव क्रोध से भर उठे और उन्होंने भोलेनाथ को बुरा भला कहना शुरू कर दिया । उन्होंने कहा कि ऐसा क्या है उस भस्मधारी आदिवासी में जो मेरे भीतर नहीं है, मैं सभी प्राणियों की प्यास बुझाता हूँ और मेरा वर्ण दूध सा श्वेत है । हे उमा आप मुझसे विवाह कर समुद्र की देवी बन जाएं ।
महादेव का अपमान सुनकर देवी उमा को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने उन्होंने समुद्र देव को श्राप दिया कि जिस मीठे जल पर तुम्हें इतना अहंकार है, वह खारा हो जाएगा और किसी भी मनुष्य के पीने योग्य नहीं बचेगा । इसके पश्चात समुद्र का जल खारा हो गया ।
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