sri hanuman ji |
पुराणों के अनुसार स्वयम्भू शिव जी का ग्यारहवां अवतार है चिरंजीवी श्रीहनुमान जी। कहते हैं कि भगवान श्रीराम का पूजा- आराधना करने से हनुमान जी प्रसन्न होकर हर पीड़ा को दूर करते है। फिर यह मान्यता है कि जिस घर में हनुमान जी की पूजा- आराधना रोज होता है, उस घर में कोई भी नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता है।।
श्री हनुमान जी की जन्म वृत्तांत
एकदा इंद्रदेव के वंहा ऋषि दुर्वासा की अध्यक्षता में एक गुरुत्वपूर्ण बैठक चल रहा था और हर कोई गहन मंथन में डूबे हुए थे। तभी नित्य- अभ्यास वशः पुंजिकस्थली नाम की एक अप्सरा ने नृत्य आरम्भ कर दी, तो वंहा की नीरव- गम्भीर स्थिति में हलचल पैदा हो गयी। ऋषि दुर्वासा ने उनको निवृत्त करने की कोसिस किया; परन्तु पुंजिकस्थली ने इतनी खो गयी थी कि उनको ऋषि- आदेश सुनाई नहीं पड़ा। इस आचरण से क्रोधित दुर्वासा जी उसे श्राप देते हुए कहा कि-- "मना करने के बाद भी तुमने एक बंदर की तरह यंहा उछलकूद चालू रखी; इसलिए तुम उसी प्रकार एक बंदरिया बन जाओ।"
ऋषि दुर्वासा के श्राप को सुनकर अप्सरा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो रोते हुए क्षमा मांगने लगी-- "हे ऋषिवर, मुझे क्षमा कर दें। मैं यंहा उपस्थित किसी को भी परेशान करने के लिए नहीं आयी थी। मुझे इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं था कि मेरी ऐसी मूर्खता का मुझे ऐसा दंड मिलेगा।" दुर्वासा ने उसकी विनती से शांत होकर कहा-- "अब रोने से क्या होगा; मत रो। आगे तुम बन्दरी रूप में एक बंदरराज से शादी करोगी और पवन देव की आशीर्वाद से तुमसे जो पुत्र जन्मेगा, वह शिव जी के कृपा से बहुत ही तेजस्वी और शक्तिशाली होने के साथ, भगवान श्रीराम का प्रिय भक्त होकर जगत् का कल्याण करेगा।"
इसके बाद पुंजिकस्थली ने अंजना के नाम में विराज की पुत्री होकर जन्म लिया और विवाहयोग्या होने से बानर राजा केशरी के साथ उनकी विवाह हुआ। अंजना और केसरी एक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। एक दिन शंखबल नामक जंगली हाथी ने अपना नियंत्रण खो दिया और ऋषियों के हवन स्थान में हंगामा खड़ा कर दिया, जिससे कई लोगों की जान चली गई और ऋषिओं का यज्ञानुष्ठान भी बर्बाद हो गया। बानर राजा केसरी ने बाध्य होकर हाथी को तो मार डाला किन्तु ऐसे जीव हत्या के लिए शोक में डूब गए। यह देखकर संतों ने उन्हें सांत्वना देने के साथ यह वरदान भी दिया कि-- "बानर राज, शोक ना करो। तुम ने ऋषियों को सहायता प्रदान किया है। हमारे आशीर्वाद तुम पर है। तुम्हारे घर एक बच्चा जन्म लेगा, जो बहुत ही शक्तिशाली और हवा की शक्ति और गति के बराबर रहेगा।।"
इसके बाद एकदिन अंजना को पवन देव से आशीर्वाद मिला और यथा समय में उनकी गर्भ से श्रीहनुमान जी जन्म लिए। इसीलिए हनुमान जी को अंजनी पुत्र- केशरी नन्दन- पवन पुत्र कहा जाता है और शिव जी की ग्यारहवें अवतार के रूप में उनकी मान्यता है।
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