साधना की चरम उपलब्धि आनन्द

SHARE:

  पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ॥   लोगों को नेकी करने की सलाह देते हुए इस क्षणभंगुर मानव शरीर की ...

 पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ॥

  लोगों को नेकी करने की सलाह देते हुए इस क्षणभंगुर मानव शरीर की सच्चाई लोगों को बता रहे हैं कि पानी के बुलबुले की तरह मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न वायुर्द्यौर्न वा भवान्।

एषां साक्षिणमात्मानं चिद्रूपं विद्धि मुक्तये॥

क्योंकि आप न पृथ्वी हैं, न जल, न अग्नि, न वायु अथवा आकाश ही हैं। मुक्ति के लिए इन तत्त्वों के साक्षी, चैतन्यरूप आत्मा को जानिए॥

यदि देहं पृथक् कृत्य चिति विश्राम्य तिष्ठसि।

अधुनैव सुखी शान्तो बन्धमुक्तो भविष्यसि॥

यदि आप स्वयं को इस शरीर से अलग करके, चेतना में विश्राम करें तो तत्काल ही सुख, शांति और बंधन मुक्त अवस्था को प्राप्त होंगे॥

   कबीरदासजी के अनुसार मनुष्य की श्रेष्ठता उसके ऊँचे कर्मों के कारण होती है कर्म से ही मनुषय जाना जाता है। वस्तुतः कबीर की सामाजिक चिन्ता उस सच्चे आध्यात्मिक व्यक्तित्व की चिता थी जो मानवतावाद, सर्वात्मवाद अद्वैतवाद की दृष्टि से समाज को जानता- पहचानता है । यह सुस्पष्ट तथ्य है कि कबीर की मूल चिन्ता आध्यात्मिक है, लेकिन अध्यात्म के क्षेत्र में उनका सजग व सचेत व्यक्तित्व प्रकाश में आता है ।

मांस गया पिंजर रहा, ताकन लागे काग।

साहिब अजहुं न आइया,मंद हमारे भाग ॥

  कबीरदास कहते है कि शरीर से मांस सूख गया, सिर्फ अस्थि पिंजर रह है जिसे कौए ताकने लगे हैं। फिर भी हमारा प्रिय परमात्मा अब तक नहीं आया है, यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है। 

चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए ।

वैद बेचारा क्या करे, कितना मरहम लगाए ॥

 कबीर जी कहते हैं कि चिंता वो अदृश्य डाकिनी है जो मनुष्य के हृदय को आघात पहुँचाती है, वह घाव किसी को नहीं दिखाई देता है। यहां तक की विश्व को कोई भी वैद्य जितना चाहे उतना मरहम लगा कर भी इसका इलाज नहीं कर सकता है।

अपना तो कोई नहीं, देखी ठोकी बजाय ।

अपना अपना क्या करि मोह भरम लपटायी ॥

 कि बहुत कोशिश करने पर बहुत ठोक बजाकर देखने पर भी संसार में अपना कोई नहीं मिला। इस संसार के लोग माया मोह में पढ़कर संबंधो को अपना पराया बोलते हैं। परन्तु यह सभी सम्बन्ध क्षणिक और भ्रम मात्र है। 

जहां काम तहां नाम नहि, जहां नाम नहि काम ।

दोनो कबहू ना मिले, रवि रजनी एक ठाम ॥

  कबीरदास कहते है कि जहाँ काम वासना होती है वहाँ प्रभु नहीं रहते हैं, और जहाँ प्रभु रहते हैं वहां काम वासना नहीं रह सकते हैं। इन दोनों का मिलन उसी प्रकार संभव नहीं है जिस प्रकार सूर्य और रात्रि का मिलन संभव नहीं है। इसके लिए भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि -

देवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥

 क्योंकि मेरी यह गुणमयी दैवी माया बड़ी दुरत्यय है अर्थात् इससे पार पाना बड़ा कठिन है। जो केवल मेरे ही शरण होते हैं, वे इस मायाको तर जाते हैं।

  तो फिर इस देव सम्बन्धिनी त्रिगुणात्मि का वैष्णवी माया को मनुष्य कैसे तरते हैं इस पर कहते हैं क्योंकि यह उपर्युक्त दैवी माया अर्थात् मुझ व्यापक ईश्वर की निज शक्ति मेरी त्रिगुणमयी माया दुस्तर है अर्थात् जिससे पार होना बड़ा कठिन है ऐसी है। इसलिये जो सब धर्मों को छोड़कर अपने ही आत्मा मुझ मायापति परमेश्वर की ही सर्वात्मभाव से शरण ग्रहण कर लेते हैं वे सब भूतों को मोहित करने वाली इस माया से तर जाते हैं वे इसके पार हो जाते हैं अर्थात् संसारबन्धन से मुक्त हो जाते हैं।

तद्विज्ञाने न परिपश्यन्ति धीरा 

आनन्द रूपमभृतं यद्विभाति।

अर्थात् ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अन्तर में स्थित उस आनन्द रूपी ब्रह्म का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों में भी परम ज्ञानी हो जाते हैं।" आनन्द हर साधक की साधना की चरम उपलब्धि है, चाहे उसकी अनुभूति के रूप भिन्न-भिन्न हो।

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।

निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥

  तू मेरे में मन को लगा और मेरे में ही बुद्धि को लगा; इसके बाद तू मेरे में ही निवास करेगा -- इसमें संशय नहीं है।यहाँ 'अत ऊर्ध्वम्' -- पदों का भाव यह है कि जिस क्षण मन-बुद्धि भगवान् में पूरी तरह लग जायँगे अर्थात् मन-बुद्धि में किञ्चिन्मात्र भी अपनापन नहीं रहेगा, उसी क्षण भगवत्प्राप्ति हो जायगी। ऐसा नहीं है कि मन-बुद्धि पूर्णतया लगने के बाद भगवत्प्राप्तिमें काल का कोई व्यवधान रह जाय। 

   आनन्द की प्राप्ति आदिकाल से मानव का लक्ष्य रहा है। परमेश्वर की अन्तःकरण में अनुभूति जिन अनेकानेक रूपों में हो सकती है आनन्द उनमें सर्वोपरि है। सुख भौतिक है तो आनन्द आध्यात्मिक भौतिक उपादानों का ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से अनुभव प्रायः सभी को एक-सा ही होता हैं। फूल की गन्ध, वस्तुओं का सौंदर्य, फलों के स्वाद से जो अनुभूति हमें होती है, लगभग स्वस्थ इन्द्रियों वाले सभी व्यक्तियों को एक समान ही होती है। लेकिन आनन्द इससे नितान्त भिन्न है। इसका रसास्वादन हर व्यक्ति को अलग-अलग रूपों में होता है। मीरा ने जिस आनन्द रस का पान किया, जिसके लिए सामाजिक मर्यादाएं तोड़ी एवं विष का प्याला पिया उसे कौन अपने अन्त में उसी प्रकार अनुभव कर सकता है। मीरा की तरह प्रेम बेलि बोना और आनन्द फल पाना सबके लिए सहज नहीं। किसी के लिए मिलन में आनन्द है तो किसी के लिए विरह में। कबीर इसी विरह सुख की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं।

विरह कमण्डल कर लिए बैरागी दो नैन।

माँगे दरस मधूकरी छके रहें दिन रैन ॥

  वस्तुतः यह आनन्द अध्यात्म वेत्ताओं की दृष्टि में उस पूर्णता का पर्याय है। जिसकी प्राप्ति की पुरुषार्थ साधना हेतु ऋषि मनीषियों ने गहन मन्थन किया है एवं उसे योग की चरम उपलब्धि घोषित किया है।

 उपनिषद्द्वारों के अनुसार ज्ञान, भक्ति एवं कर्मयोग की सभी धाराएँ अन्ततः इसी आनन्द रूपी अमृत समुद्र में समा जाता है। हमारे अध्यात्म दर्शन की सभी धाराएं चाहे वे किसी वाद का समर्थन करती हों, हैं अन्ततः आनन्दवाद ही।

तद्विज्ञाने न परिपश्यन्ति धीरा 

आनन्द रूपमभृतम् यद्विभाति।

अर्थात् ज्ञानी लोग विज्ञान से अपने अन्तर में स्थित उस आनन्द रूपी ब्रह्म का दर्शन कर लेते हैं एवं ज्ञानियों में भी परम ज्ञानी हो जाते हैं। आनन्द हर साधक की साधना की चरम उपलब्धि है, चाहे उसकी अनुभूति के रूप भिन्न-भिन्न हो।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: साधना की चरम उपलब्धि आनन्द
साधना की चरम उपलब्धि आनन्द
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/04/blog-post_92.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2023/04/blog-post_92.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content