सीता हरण में मारीच की भूमिका

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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sitaharan_marich
sita haran me marich ki bhoomika

      त्रेतायुग से सम्बन्धित रामायणी कथा। सुंद राक्षस और ताड़का के दो पुत्र थे-- सुबाहु और मारीच। महर्षी अगस्त्य के श्राप से दोनों भाई असुर बने थे। असुर समाज आपस में सम्बंधित होने के कारण दोनों भाई भी लंकापति रावण का दुर के रिस्ते से मामा लगते थे। माता के साथ दोनों भाई मिलकर विश्वामित्र कर्त्तुक आयोजित यज्ञ को नष्ट- भ्रष्ट करने की भरपूर कोसिस किया था। ऐसी अनहोनी को रोकने के लिए उपस्थित यज्ञ- रक्षक श्रीराम जी ने ताड़का के साथ सुबाहु का तो वध कर दिया, मगर आघात प्राप्त मारीच ने वंहा से बचकर दक्षिणी समुद्र तट पर जा गिरा। फिर मारीच ने हिंसा और वैरता को छोड़कर साधु बनने की लक्ष्य के साथ शिव जी की तपस्या में निमग्न रहा। परन्तु इसके बाद आगे उनके साथ जो जबरदस्त हादसा हुआ, उस कांड के कारण ही रामायण में मारीच एक विशेष अंग बन गया था।।

सीता हरण में मारीच की भूमिका 

       श्रीरामचरित मानस में रावण का चाहत था-- जैसे भी हो, पंचवटी से सीता को हरण कर लंका ले जाएगा। इसके लिए वह तपस्यारत मामा मारीच के पास पहुंच कर जब उनको प्रणाम किया, मारीच समझ गया कि अब कोई संकट आने वाला है। गोस्वामी तुलसी- कृत श्रीरामचरित- मानस में इस तरह रावण और मारीच को लेकर एक प्रसंग बताया गया है। तदनुसार, सीता- हरण कांड को सफल रूप देने के लिए मारीच को मोहरा बनाने की कूट बुद्धि प्रयोग कर, रावण ने उनको समुद्री तट पर साक्षात किया था। त्रिपुर को त्रास देने वाला दुर्द्धर्ष रावण को ऐसे झुका देखकर मारीच ने समझ गया था की अब भविष्य में कोई विशेष संकट आने वाला है। इस संबंध श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-

"नवनि नीच कै अति दुखदाई। 

जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई॥

भयदायक खल कै प्रिय बानी। 

जिमि अकाल के कुसुम भवानी॥"

      इन चौपाइयों का सरल अर्थ यह है कि-- "रावण को इस प्रकार झुका देखकर मारीच सोचता है कि उच्च व्यक्ति को किसी नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुःखदायी है। रिस्ते से मारीच सिर्फ रावण का मामा लगता था; लेकिन रावण था राक्षसराज और अभिमानी, जो बिना मकसद से किसी के सामने झुक नहीं सकता। इसीलिए मारीच ने स्पष्ट अनुमान कर लिया था कि, रावण जैसे राक्षसराज को उन जैसे साधारण असुर के सामने झुकना किसी भयंकर परेशानी का संकेत है। ऐसी सोच से अत्यंत भयभीत होकर मारीच ने भी रावण के सामने सर झुकाया था।।"

      मारीच सोचता है कि जिस तरह कोई धनुष झुकता है, तो वह किसी के लिए मृत्यु रूपी बाण छोड़ने की लक्षण बन जाता है। जैसे कोई सांप झुकता है, तो वह डंसने के लिए ही झुकता है। जैसे कोई बिल्ली झुकती है, तो वह अपने शिकार पर झपटने के लिए झुकती है। ठीक इसी प्रकार रावण भी मारीच के सामने झुका था। किसी नीच व्यक्ति की मीठी वाणी भी बहुत दु:खदायी होती है, यह ठीक वैसा ही है, जैसे बिना मौसम का कोई फल। मारीच अब समझ चुका था कि निकट भविष्य में उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है।।

      जब रावण ने यंहा आने की उद्देश्य बताया, तब मारीच ने उनका असली मकसद को अच्छे से समझ गया कि, भांजे ने उनको स्वर्ण मृग बनकर सीता को लुभाने के लिए चारा बनने की आदेश दिया है, जिसको कैसे भी टालने की सामर्थ्य उन में नहीं है।।

      अनन्तर मायावी मारीच एक स्वर्ण मृग बनकर सीता के सामने पहुंच गया। सीता ने सोने के हिरण को देखकर श्रीराम से उसे लेकर आने के लिए कहा। सीता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीराम हिरण के पीछे चले गए। श्रीराम के बाण से मारीच जब अपनी रूप धारण कर मारा गया, ठीक इसी से पहले ही खुद श्रीराम के स्वर में "त्राहि लक्ष्मण" कहकर पुकारा था। ये पुकार सीता माता को भी सुनाई पड़ी और उनकी कठोर आदेश से कुछ देर बाद पहरेदारी छोड़कर लक्ष्मण भी श्रीराम की खोज में चले गए। इसीके बाद छद्म बेश में रावण ने सीता जी का हरण करने में कामयाब हुआ था।।

       इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें बुरे लोगों से सावधान रहना चाहिए। जब ऐसे लोग हमारे सामने झुकते हैं, तो और ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता रहती है। वरना हम मुसीबतों में फंस सकते हैं।

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