सिय राम मय सब जग जानी ।
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ॥
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए। राम की आदर्श प्रासंगिकता कैसे बरकरार रहे और अगली पीढ़ी को कैसे समृद्ध करे, इस पर हमें विचार करना चाहिए. हमारे पास सशक्त माध्यम हैं, जिनके जरिये राम के आदर्श को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. लेकिन विडंबना है कि आज राजनीति और धर्म हमारे समाज और मीडिया पर हावी हैं. लेखक और बुद्धिजीवियों की बात कोई सुननेवाला नहीं है।
नेता प्रवक्ता, मुल्ला - पंडित और ढोंगी बाबाओं की बातें ही सुनी जा रही हैं. ऐसे बुरे समय में हम जी रहे हैं, जिसमें न हम कुछ कर पा रहे हैं और न ही नयी पीढ़ी के लिए कुछ अच्छा सोच या कर पा रहे हैं. राम का संदेश पूरे समाज में पहुंचाने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए राजनीति से बचना होगा और लेखकों-बुद्धिजीवियों को ही आगे आना होगा. राम के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने को हमें अपना कर्तव्य समझना चाहिए।
हिंदू धर्म शास्त्र में भगवान के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों में विष्णु के ही अवतार बहुत हुए हैं. राम भी विष्णु के ही अवतार हैं. चूंकि वे विष्णु के अवतार हैं, इसलिए एक तरह से वे विष्णु ही हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक लोग राम के प्रति वैसी ही आस्था रखते हैं, जैसी आस्था विष्णु के प्रति है. और भारत के सर्वसाधारण जनमानस में राम आस्था के प्रतीक हैं. लेकिन, राम केवल आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे तो असीम हैं।
एक कहानी याद आ रही है
एक समय की बात है कबीर दास जी गंगा स्नान करके हरी भजन करते हुए जा रहे थे, वो एक गली में प्रवेश कर निकल रहे थे, गली बहुत बड़ी थी,
उनके आगे से रस्ते में कुछ माताएं जा रही थी, उनमे से एक की शादी कही तय हुई होगी तो, उनके ससुराल वालो ने लड़की के लिए एक नथनी भेजी थी नथनी बड़ी ही सूंदर थी तो वो लड़की जिसके लिए नथनी आई थी वो अपनी सहेलियों को बार बार नथनी के बारे में बता रही थी की नथनी ऐसी है वैसी है ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है ये नथनी वो नथनी बार बार नथनी की बात बस।
कबीर जी भी उनके पीछे पीछे चल रहे थे और उनकी बात उनके कान में पड़ रही थी तभी कबीर जी उनके पास से निकले और कहा कि -
नथनी दिनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार ।
नाक दिनी करतार ने, उनको दिया बिसार॥
सोचो की यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहा पहनती यही हमारे जीवन में भी हम करते है वस्तु का तो हमें ज्ञान रहता है परंतु ठाकुर जी ने जो दुर्लभ मनुष्य देह भजन के लिए दी है उनका कोई भी आभार नही मानते। देखा जाए तो आज हमारी आस्था राम के प्रति कम हो गई है। केवल दिखावा ज्यादा है। प्रायः हम अपने यहां राम चरित मानस का चौबीस घंटे का पाठ रखते हैं। तो हमारा ध्यान मानस पाठ पर कम, ढोल, हरमोनियम पर अर्थात साज पर ज्यादा रहता है। मानस पाठ कराने वाले तो बेचारे आवभगत में ही डूबे रहते हैं, उनको तो मानस एवं राम नाम का आंनद ही नहीं मिलता।
सब कुछ बिजनेस हो गया है आज राम चरित मानस करवाने का ठेका दस हजार पन्द्रह हजार रुपए में होने लगा है,। एक बात जान लीजिए जहां बिजनेस हो वहां प्रभु के प्रति आस्था एवं भाव की कमी होती है, प्रभु भक्तों के भाव के भूखें है न कि दिखावा के। एक कहानी के माध्यम से समझते हैं -
एक धनी व्यक्ति एक मंदिर में पहुँचा और वहाँ बैठे संत से कहने लगा- महाराज यह बताएँ कि आज मैं भगवान को क्या चढ़ाऊँ? मेरे पास अपार वैभव है, आप जो आदेश करें, वही मैं भगवान को अर्पित कर दूँ। संत हँसे और बोले।
मूर्ख! तुझे यह वैभव दिखाई पड़ता है, इसलिए सोचता है कि भगवान को भी यह वैभव लगेगा। जिन्होंने सारी सृष्टि बनाई, क्या वे तेरे हीरे-जवाहरातों के भूखे होंगे।
उनके लिए यह मिट्टी-ढेले के समान हैं। उन्हें कुछ चढ़ाना है तो भावनाएँ चढ़ा, समाज को उनका रूप मानकर उसकी सेवा कर, यही असली पूजा है। तो हां हम बात कर रहे थे राम चरित मानस की। दर्शक एवं सुनने वाले को भी ऐसा ही अच्छा लगता है कि गानें वाले अच्छी धुन में नहीं गा रहे हैं। हम फिल्मी गानों के तर्ज़ पर, कौव्वाली, आदि तर्ज़ पर रामचरितमानस कहते हैं, अच्छा भी है, अच्छा लगना भी चाहिए। लेकिन कहां अच्छा लगना चाहिए कहा नहीं कभी इस पर बिचार नहीं किया।
आप खुद सोचो कि यदि आपके घर में कोई बीमार है, भगवान न करे ऐसा हो लेकिन कल्पना करें, की कोई मरणासन्न अवस्था में हो, और वहां डी जे बज रहा हो तो क्या आपको अच्छा लगेगा, शायद नहीं, अब मानस पर आते हैं, कि चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी राम के बियोग में मरणासन्न अवस्था में है तो वहां फिल्मी गानों पर गाना, अच्छा लगेगा, शिव सती बियोग हो, मां सीता जी का हरण हो, तो कौव्वाली आदि तर्ज़ अच्छी लगेगी, आप खुद सोचो और बिचार करो।
अब आप पूछेंगे इसका उपाय क्या हैं, वैसे तो हर मानस प्रेमी स्वयं वुद्विजीवी है लेकिन हमारे बिचार से एक स्थायी, आचार्य ( चिंतक ) की वहां जरुरत है जो समय समय पर मार्गदर्शन करें, और मानस पाठ पूर्ण होने पर मानस पर चर्चा करें। राम के गुणों से हमें अवगत कराएं । लेकिन दुर्भाग्य हम आचार्य या चिंतक रखेंगे तो उनको भी मानदेय देना पड़ेगा, हम ठेका दे सकते है हम बड़े बड़े साउंड सिस्टम लगा सकते हैं लेकिन आचार्य को दक्षिणा नहीं देना चाहते क्योंकि सांउड सिस्टम से आवाज लोगों को सुनना अर्थात दिखाना चाहते हैं लेकिन आचार्य दक्षिणा तो कोई देखेगा नहीं, वह तो चुपके से जेब में रख लेगा, अर्थात् हमारा भाव ईश्वर के प्रति नहीं है केवल दिखावा है, ईश्वर भी इतना पागल नहीं है जैसे आप दिखावा करते हैं वैसे वह भी करेगा, सोच लो परिणाम क्या होगा?
अच्छा कभी आपने सोचा कि हमारे महाऋषिओ ने हमारे अठारह पुराणों के नाम इस प्रकार से क्यों रखें - ब्रह्म पुराण ,पद्म पुराण ,विष्णु पुराण , वायु पुराण , शिव पुराण, भागवत पुराण , देवीभागवत पुराण नारद पुराण ,मार्कण्डेय पुराण ,अग्नि पुराण ,आदि आदि ।
जाने दीजिए । मानस पर चर्चा कर रहे हैं। तुलसीदास जी ने सुंदर काण्ड नाम क्यों रखा। सुंदर काण्ड का तो हम प्रायः पाठ करते हैं, कभी आपने ध्यान दिया या सोचा, कि बाल कांड, अयोध्या काण्ड आदि आदि नाम क्यों पड़े। यहीं सब जानने एवं चिंतन करने के लिए आचार्य , शास्त्री , या अच्छा ज्ञाता एवं विद्वान की जरूरत है। वैसे मानस के केवल पांच चौपाई कोई भी, और राम के ०००००००१% गुण भी आप ग्रहण कर ले तो जीवन सफल हो जाएगा।
सीता राम चरन रति मोरें।
अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।।
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