आचार्य चाणक्य कहते हैं- "आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे। राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:॥" आचार्य...
आचार्य चाणक्य कहते हैं-
"आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:॥"
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कुछ बातें ऐसी बताई हैं, जिनसे हम अपने और पराए लोगों की पहचान कर सकते हैं। चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति आपकी बीमारी में, दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रु द्वारा कोई संकट खड़ा करने पर, शासकीय कार्यों में, शमशान में ठीक समय पर आ जाए वही इंसान आपका सच्चा हितैषी हो सकता है।
सामान्यत: ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति ज्यादा अच्छी वस्तु प्राप्त करने के लिए जो उसके पास है उसे छोड़कर दूसरी की ओर भागता है। इस परिस्थिति में दोनों ही वस्तुएं उसके हाथों से निकल जाती है। ऐसी परिस्थितियों के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
"यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि॥"
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की ओर भागता है उसके हाथों से दोनों ही वस्तुएं निकल जाती है। अत: जीवन में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की गलतियां हमें नहीं करना चाहिए।
1- कुछ लोग गुण के धनी होते हैं। कुछ लोग धन के धनी होते हैं। जो धन के धनी होते हुए भी गुणों के कंगाल हैं, ऐसे व्यक्तियों का साथ तुरंत छोड़ देना चाहिए।
2- इस जीवन का कोई ठिकाना नहीं है। जिस काम को करने के बाद खाट में बैठकर पछताना पड़े ऐसे काम को पहले से ही नहीं करना चाहिए।
3- समुद्र में गिरी हुई वस्तु नष्ट हो जाती है। जो सुनता नहीं है उससे कही हुई बात नष्ट हो जाती है। अजितेंद्रिय पुरुष बिना वजह कलह करना मूर्खों का काम है। बुद्धिमान लोगों को इससे बचना चाहिए। ऐसा करके वे लोक में यश पाते हैं और अनर्थ से बच जाते हैं।
4- मित्र तो ऐसा होना चाहिए जो कृतज्ञ, धार्मिक, सच बोलने वाला, उदार, अनुराग रखने वाला, दृढ़, जितेंद्रिय और मर्यादा के अंदर रहने वाला हो।
5- जो अधर्म से कमाए हुए धन से परलोक साधन यज्ञादि कर्म करता है, वह मरने के बाद उसके फल को नहीं पाता है। क्योंकि उसका धन अधर्म से कमाया होता है।
6- आग में जल रहे मृत पुरुष के पीछे तो सिर्फ उसका भला या बुरा कर्म ही जाता है। इसलिए पुरुषों को चाहिए कि वे धीरे-धीरे प्रयत्नपूर्वक धर्म का संग्रह करें।
7- जो व्यक्ति अधर्म से मिली बड़ी से बड़ी धन राशि को भी छोड़ देता है। वह जैसे सांप अपनी केंचुली को छोड़ता है उसी तरह दुख से मुक्त हो सुखपूर्वक सोता है।
8- दो काम करने वाला मनुष्य इस लोक में प्रसिद्ध हो जाता है। पहला किसी भी व्यक्ति से कठोर वचन न कहना। दूसरा, दुष्टजनों से दूर रहना।
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