ब्राह्मणों से यज्ञ, पूजा,पाठ आदि कराने के बाद जो दक्षिणा दान नहीं करता है, उसका क्या परिणाम होता है यह जानकर आप हैरान हो सकते हैं। तो आइय...
ब्राह्मणों से यज्ञ, पूजा,पाठ आदि कराने के बाद जो दक्षिणा दान नहीं करता है, उसका क्या परिणाम होता है यह जानकर आप हैरान हो सकते हैं। तो आइये जानते हैं ब्राह्मणों को यज्ञकी दक्षिणा न देने का क्या फल होता है ।
ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के अनुसार -
कृत्वा कर्म च कर्ता तु तूर्णं दद्याच्च दक्षिणाम्।
तत्क्षणं फलमाप्नोति वेदैरुक्तमिदं मुने ॥
कर्ता कर्मणि पूर्णेऽपि तत्क्षणाद्यदि दक्षिणाम्।
न दद्याद्ब्राह्मणेभ्यश्च दैवेनाज्ञानतोऽथवा ॥
मुहूर्ते समतीते च द्विगुणा सा भवेद्धुवम्।
एकरात्रे व्यतीते तु भवेद्रसगुणा च सा ॥
त्रिरात्रे वै दशगुणा सप्ताहे द्विगुणा ततः।
मासे लक्षगुणा प्रोक्ता ब्राह्मणानां च वर्धते॥
संवत्सरे व्यतीते तु सा त्रिकोटिगुणा भवेत्।
कर्म तद्यजमानानां सर्वं वै निष्फलं भवेत्॥
स च ब्रह्मस्वापहारी न कर्मार्होऽशुचिर्नरः।
दरिद्रो व्याधियुक्तश्च तेन पापेन पातकी।
तद्गृहाद्याति लक्ष्मीश्च शापं दत्वा सुदारुणम्॥
पितरो नैव गृह्णन्ति तद्दत्तं श्राद्धतर्पणम्।
एवं सुराश्च तत्पूजां तद्दत्तां पावकाहुतिम् ।
दाता ददाति नो दानं ग्रहीता तत्र याचते ॥
उभौ तौ नरकं याति निरज्जुर्यथा घटः ।
नार्पयेद्यजमानश्चेद्याचितारं च दक्षिणाम् ॥
भवेद्ब्रह्मस्वापहारी कुम्भीपाकं व्रजेद् ध्रुवम्।
वर्ष लक्षं वसेत्तत्र यमदूतेन ताडितः ॥
ततो भवेत्स चाण्डालो व्याधियुक्तो दरिद्रकः ।
पातयेत् पुरुषान् सप्त पूर्वान् वै पूर्वजन्मनः ॥
(ब्रह्मवैवर्त प्रकृतिखण्ड ४२।५३-६३)
1. 'यज्ञादि कर्म के पूर्ण हो जाने पर भी दैववश अथवा अज्ञानवश ब्राह्मणों को दक्षिणा न देने से प्रतिक्षण वह दक्षिणा द्विगुणित हो जाती है ।
2. एक रात बीत जाने पर वह छगुनी, तीन रात बीत जाने पर दशगुनी, सात दिन बीतने पर बीसगुनी, एक मास बीतने पर लाख गुनी, एक वर्ष बीतने पर तीन करोड़ गुनी बढ़ जाती है और साथ ही यजमान का किया हुआ सम्पूर्ण कर्म भी सर्वथा निष्फल हो जाता है।
3. वह यजमान ब्रह्मांश का चोर, सत्कर्मो के अयोग्य, अपवित्र होकर उसी भयङ्कर पाप से दरिद्र और व्याधियुक्त हो जाता है।
4. उसके घर से लक्ष्मी भी कठिन शाप देकर अन्यत्र चली जाती है ।
5. पितृगण भी उसके दिये हुए श्राद्ध, तर्पणादि को ग्रहण नहीं करते और देवगण उसकी पूजा तथा आहुति स्वीकार नहीं करते ।
6. देने वाला दक्षिणा न देवे और पाने वाला याचक उससे दक्षिणा का तगादा न करे, ऐसी स्थिति में जिस प्रकार टूट जाने से भरा हुआ घड़ा जल में डूब जाता है उसी प्रकार दाता और ग्रहीता दोनों ही नरक को प्राप्त करते हैं।
7. जो यजमान अपने वृत याचक के माँगने पर भी दक्षिणा नही देता, वह ब्राह्मणांश का चोर होकर निश्चय ही 'कुम्भीपाक' नामक नरक में जाता है। वहाँ जाकर एक लाख वर्ष तक दुःख भोगता है।
अतः कभी भी ब्राह्मणों से यज्ञ पूजा पाठ आदि कोई भी कार्य करायें तो दक्षिणा अवश्य दान करें। और ब्राह्मण का कर्तव्य है कि यदि दक्षिणा देने का वादा करके यजमान भूल गया है तो उसे बार -बार याद दिलायें नहीं तो आप भी दोष के भागीदार होंगे।
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