बुद्ध के जीवन में घटना है उनके अंतिम दिन की। सुबह हुई है, पक्षियों ने गीत गाए हैं, फूल खिले हैं और उन्होंने अपने सारे शिष्यों को इकट्ठा...
बुद्ध के जीवन में घटना है उनके अंतिम दिन की। सुबह हुई है, पक्षियों ने गीत गाए हैं, फूल खिले हैं और उन्होंने अपने सारे शिष्यों को इकट्ठा किया है, और उनसे कहा है कि मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। ध्यान करना, उन्होंने कहा, मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। वे सब निश्चित बहुत आतुर हो उठे। क्योंकि बुद्ध ने चालीस वर्षों के शिक्षण में कभी भी यह न कहा था कि मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। हालांकि उनके हर शब्द में सिवाय सुखद समाचार के और कुछ भी न था। आज कौन सी अनूठी बात घटनी थी? आज कौन सा कोहिनूर उनके शब्दों में जगेगा? आज कौन सा सूरज उगेगा? एक सन्नाटा छा गया। बुद्ध ने कहा, आज मैं शरीर छोड़ रहा हूं। जीवन को बहुत देख लिया। जीवन को बहुत जी लिया। आज मैं मौत के अंधेरे में प्रवेश कर रहा हूं। लेकिन वह अंधेरा दूसरों के लिए होगा। वह अंधेरा मेरे लिए नहीं है। मैं इतना ही ज्योतिर्मय, इतना ही प्रकाशोज्ज्वल उस अंधेरे से भी गुजर जाऊंगा जैसे जीवन से गुजरा हूं। इसलिए मैंने कहा कि तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। मृत्यु का समाचार और सुखद। तुम्हें कुछ पूछना हो, तुम पूछ लो। दस हजार भिक्षुओं में किसकी हिम्मत थी और किसकी जुर्रत थी कि जिस आदमी ने चालीस वर्षों तक हर बात को समझाया हो, आज मरने की घड़ी में भी उसको चैन से न मरने दिया जाए। उनकी आंखों में आंसू थे लेकिन उनकी जुबानों पर कोई सवाल नहीं था। उन्होंने कहा, हमें कुछ पूछना नहीं है। आपने हमें इतना दिया है कि जितना हमने कभी सोचा भी न था। आपने हमारे वे उत्तर भी हमारे हाथों में थमा दिए हैं जिनके लिए हमारे पास प्रश्न भी नहीं हैं। मैं आपसे क्या पूछें? तो बुद्ध ने कहा, मैं विदा ले सकता हूं? और उन्होंने आंखें बंद कीं।
और घटना बड़ी प्यारी है कि उन्होंने पहले चरण में शरीर को छोड़ दिया। दूसरे चरण में मन को छोड़ दिया। तीसरे चरण में हृदय को छोड़ दिया। और तभी एक गांव से, पास के गांव से एक आदमी भागा हुआ आया और उसने कहा कि ठहरो, चालीस साल से बुद्ध मेरे गांव से गुजरते रहे हैं लेकिन मैं अंधा आदमी हूं। हमेशा सोचता रहा कि अगली बार जब जाएंगे। तब मिल लूंगा। यूं जल्दी भी क्या है? और कभी मेहमान घर में थे, कभी दुकान पर भीड़ थी और कभी पत्नी बीमार थी। और बहाने ही खोने हों तो अंतहीन बहाने उपलब्ध हैं। बुद्ध आते रहे, जाते रहे। अभी—अभी मैंने सुना कि वे जीवन छोड़ रहे हैं। और मुझे एक प्रश्न पूछना है। बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद ने कहा, अब देर हो गयी, अब बहुत देर हो गयी। वे तो जा भी चुके।
लेकिन बुद्ध ने आंखें खोल दीं और बुद्ध ने कहा, आनंद, तू मेरे ऊपर दोषारोपण करवा देगा। आने वाली सदियां कहेंगी कि मैं जिंदा था और एक आदमी मेरे द्वार से प्यासा लौट गया। शरीर छूट जाए, मन छूट जाए, हृदय छूट जाए लेकिन मैं तो हूं; और मैं तो कभी छूटने वाला नहीं हूं। तुम मेरे शरीर को जाकर अर्थी पर चढ़ाकर जला देना। लेकिन अगर किसी के हृदय से भरकर मुझसे प्रश्न पूछा तो उसे उत्तर मिल जाएगा। क्योंकि मैं तो हूं, मैं तो रहूंगा। मुझे जलाने का कोई उपाय नहीं है और मुझे मिटाने का कोई उपाय नहीं है। मैं अमृत हूं।
इस देश की प्रार्थना बड़ी अदभुत है। दुनिया में बहुत मंदिर हैं और बहुत मस्जिदें हैं और बहुत गिरजाघर हैं लेकिन उनकी प्रार्थनाएं बचकानी हैं। सिर्फ इस देश ने प्रार्थना की है कि हमें क्षणभंगुर से शाश्वत की ओर ले चलो। इसमें कोई भी बात शूद्र नहीं है। और यह प्रार्थना किसी और से नहीं की गयी है। क्योंकि कोई और तुम्हें लग जा नहीं सकता। केवल तुम ही, और केवल तुम ही मृत्यु से अपने को अमृत की ओर ले जा सकते हो। अपने जानने की सारी क्षमता को स्वयं पर केंद्रित कर लो। दूसरे शब्दों मग मैं इसे ध्यान कहता हूं। ज्ञान दूसरे का होता है, ध्यान अपना होता है। ज्ञान पराए का होता है, ध्यान स्वयं का होता है। अपने ज्ञान को ध्यान में बदल लो। तो इसके पहले कि तुम्हारी अर्थी उठे, तुम उसे जान लोगे जिसकी कोई अर्थी नहीं उठती है और न कभी उठ सकती है।
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