दिशाशूल और उसके परिहार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 इस लेख में हम दिशाशूल और उसके परिहार के विषय में परिचय प्राप्त करेंगे |

दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करनी चाहिये । हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं 4 होती हैं |

१) पूर्व 

२) पश्चिम 

३) उत्तर 

४) दक्षिण

परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव में दिशाएँ दस होती हैं । 

दस दिशाओं के नाम

१) पूर्व

२) पश्चिम

३) उत्तर

४) दक्षिण

५) उत्तर - पूर्व (ईशान दिशा)

६) उत्तर - पश्चिम(वायव्य दिशा)

७) दक्षिण – पूर्व(आग्नेय दिशा)

८) दक्षिण – पश्चिम(नैऋत्य दिशा

९) आकाश

१०) पाताल

हमारे सनातन धर्म के ग्रंथो में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है । दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करनी चाहिए । हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है ।

१) सोमवार और शुक्रवार को - पूर्व

२) रविवार और शुक्रवार को - पश्चिम

३) मंगलवार और बुधवार को - उत्तर

४) गुरूवार को - दक्षिण

५) सोमवार और गुरूवार को - दक्षिण - पूर्व

६) रविवार और शुक्रवार को -  दक्षिण - पश्चिम

७) मंगलवार को - उत्तर-पश्चिम

८) बुधवार और शनिवार को -  उत्तर-पूर्व

  परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है । परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्य हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यह उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए –

रविवार – दलिया और घी खाकर

सोमवार – दर्पण देख कर

मंगलवार – गुड़ खा कर

बुधवार – तिल, धनिया खा कर

गुरूवार – दही खा कर

शुक्रवार – जौ खा कर

शनिवार – अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर

साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति के जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है | आशा करते हैं कि आपके जीवन में भी यह लेख उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे।

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