हनुमान जयंती या जन्मोत्सव ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  आजकल  एक भ्रामक सन्देश सर्वत्र प्रेषित किया जा रहा हैं कि हनुमान जयन्ती न कहकर इसे हनुमान जन्मोत्सव कहना चाहिए ; क्योंकि जयन्ती मृतकों की मनायी जाती है और हनुमान जी तो अजर अमर हैं। उपरोक्त विषय केवल भ्रांति भ्रान्ति मात्र ही है । हमें जयंती ही मनाना चाहिए । सबसे पहले जयन्ती का अर्थ जानने की आवश्यकता है --

जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः ॥

                                                          (स्कन्दमहापुराण,तिथ्यादितत्त्व)

  अर्थात जो जय और पुण्य प्रदान करे उसे जयन्ती कहते हैं । कृष्णजन्माष्टमी से भारत का प्रत्येक प्राणी परिचित है । इसे कृष्णजन्मोत्सव भी कहते हैं । किन्तु जब यही अष्टमी अर्धरात्रि में पहले या बाद में रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो जाती है तब इसकी संज्ञा "कृष्णजयन्ती" हो जाती है -

रोहिणीसहिता कृष्णा मासे च श्रावणेऽष्टमी ।

अर्द्धरात्रादधश्चोर्ध्वं   कलयापि   यदा   भवेत्।

 जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशिनी ॥

  और इस जयन्ती व्रत का महत्त्व कृष्णजन्माष्टमी अर्थात् रोहिणीरहित कृष्णजन्माष्टमी से अधिक शास्त्रसिद्ध है । इससे यह सिद्ध हो गया कि जयन्ती जन्मोत्सव ही है । अन्तर इतना है कि योगविशेष में जन्मोत्सव की संज्ञा जयन्ती हो जाती है । यदि रोहिणी का योग न हो तो जन्माष्टमी की संज्ञा जयन्ती नहीं हो सकती -

चन्द्रोदयेSष्टमी पूर्वा न रोहिणी भवेद् यदि ।

तदा जन्माष्टमी सा च न जयन्तीति कथ्यते ॥

(नारदीयसंहिता)

  अयोध्या में श्रीरामानन्द सम्प्रदाय के सन्त कार्तिक मास में स्वाती नक्षत्रयुक्त कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को हनुमान् जी महाराज की जयन्ती मनाते हैं -

स्वात्यां कुजे शैवतिथौ तु कार्तिके 

कृष्णेSञ्जनागर्भत एव मेषके ।

श्रीमान् कपीट्प्रादुरभूत् परन्तपो 

व्रतादिना तत्र तदुत्सवं चरेत् ॥

                                                                 --वैष्णवमताब्जभास्कर

  कहीं भी किसी मृत व्यक्ति के मरणोपरान्त उसकी जयन्ती नहीं अपितु पुण्यतिथि मनायी जाती है । भगवान् की लीला का संवरण होता है । मृत्यु या जन्म सामान्य प्राणी का होता है । भगवान् और उनकी नित्य विभूतियाँ अवतरित होती हैं । और उनको मनाने से प्रचुर पुण्य का समुदय होने के साथ ही पापमूलक विध्नों किम्वा नकारात्मक ऊर्जा का संक्षय होता है । इसलिए हनुमज्जयन्ती नाम शास्त्रप्रमाणानुमोदित ही है ।

   जैसे कृष्णजन्माष्टमी में रोहिणी नक्षत्र का योग होने से उसकी महत्ता मात्र रोहिणीविरहित अष्टमी से बढ़ जाती है । और उसकी संज्ञा जयन्ती हो जाती है । ठीक वैसे ही कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी से स्वाती नक्षत्र तथा चैत्र मास में पूर्णिमा से चित्रा नक्षत्र का योग होने से कल्पभेदेन हनुमज्जन्मोत्सव की संज्ञा " हनुमज्जयन्ती" होने में क्या सन्देह है ?

   एकादशरुद्रस्वरूप भगवान् शिव ही हनुमान् जी महाराज के रूप में भगवान् विष्णु की सहायता के लिए चैत्रमास की चित्रा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा को अवतीर्ण हुए हैं --

यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान् स महाकपिः।

 अवतीर्ण:   सहायार्थं    विष्णोरमिततेजस: ॥

       पूर्णिमाख्ये  तिथौ   पुण्ये  चित्रानक्षत्रसंयुते ॥     

                (स्कन्दमहापुराण,माहेश्वर खण्डान्तर्गत, केदारखण्ड-८/१००)

   चैत्र में हनुमज्जयन्ती मनाने की विशेष परम्परा दक्षिण भारत में प्रचलित है।अरे भाई, जयन्ती का अर्थ पुण्यतिथि नहीं होता।  हनुमान जयन्ती मनाओ। धूमधाम से मनाओ। शास्त्र कहते हैं -

जयंतीनामपूर्वोक्ता       हनूमज्जन्मवासरः।

 तस्यां भक्त्या कपिवरं नरा नियतमानसाः॥

जपंतश्चार्चयंतश्च           पुष्पपाद्यार्घ्यचंदनैः ।

 धूपैर्दीपैश्च नैवेद्यैः         फलैर्ब्राह्मणभोजनैः॥

समंत्रार्घ्यप्रदानैश्च         नृत्यगीतैस्तथैव च ।

तस्मान्मनोरथान्सर्वान्लभंते   नात्र संशयः॥

  हनुमान के जन्म का दिन जयंती नाम से बताया गया है। उस दिन भक्तिपूर्वक, मन को वश मे करके, पुष्प, अर्घ्य चंदन से, धूप, दीप से, नैवेद्य से, फलों से, ब्रह्मणों को भोजन कराने से, मंत्रपूर्वक अर्घ्य प्रदान करने से तथा नृत्यगीता आदि से कपिश्रेष्ठ का जप, अर्चना करते हुए मनुष्य सभी मनोरथों को प्राप्त करते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।जयंती का अर्थ होता है जिसकी विजय पताका निरंतर लहराती रहती है । जिसकी सर्वत्र जय जय है । ये किसने निकाल दिया कि जयंती मरे हुए लोगों की होती है ? मरे हुए लोगों की "पुण्यतिथि" होती है।  "जयंती" शब्द का अर्थ है जिनका यश , जिनका जय , जिनका विजय अक्षुण है और नित्य है , सदा विद्यमान है। जयंती महापुरुषों की या भगवान की ही होती है । नश्वर शरीर धारियों के लिए जयंती नहीं है । जिनकी कीर्ति , यश ,सौभाग्य , विजय निरंतर हो और जिसका नाश न हो सके ,उसे जयंती कहते हैं । आदिशक्ति महामाया जगतजननी का नाम भी जयंती है । तो क्या आपके हिसाब से इनकी मृत्यु हो चुकी है ? ये कौन से शास्त्र में है , मतलब यह किस पाणिनि के व्याकरण से आप लोगों ने यह अर्थ लगाया कि जयंती मरे हुए लोगों की होती है ? जयंती का प्रयोग मुख्यत: किसी घटना के घटित होने के दिन की, आगे आने वाले वर्षों मे पुनरावृत्ति को दर्शाने के लिये किया जाता है । अरे आज के युग में भी आप अपने माता पिता या किसी जीवित महापुरुष के 25 वर्ष विवाह ,सन्यास या साक्षात्कार दिवस के पूर्ण होने पर  मनाते हैं न , तो क्या माता पिता मर गए या उस महापुरुष की मृत्यु हो गयी ??? रजत जयंती , स्वर्ण जयंती , हीरक जयंती  में क्या सब मर जाते हैं ???  हनुमान जी की कीर्ति , यश , विजय पताका , भक्ति , ज्ञान , विज्ञान ,  जय निरंतर और नित्य है , इसलिये इनकी जयंती मनाई जाती है । ऐसे तो नृसिंह जयंती , वामन जयंती ,मत्स्य जयंती इत्यादि भगवान के सभी अवतारों की जयंती मनाई जाती है तो मुझे यह प्रमाण लाकर दिखा दें जहाँ इन अवतारों के मृत्यु का वर्णन है । जयंती मृत्यु से नहीं , उनके नित्य, सदा विद्यमान , अक्षुण , कभी न नष्ट होने वाली कीर्ति और जयत्व के कारण मनाई जाती है । चाहे वह जन्म हो या मृत्यु हो । महावीर जयंती ,बुद्ध जयंती , कबीरदास जयंती ,  गुरुनानक जयंती इत्यादि सभी उनके जन्म दिन ही मनाई जाती है । जयंती का किसी भी तरह जन्म और मृत्यु से कोई सम्बंध नहीं है । जन्मोत्सव साधारण से लोगों का मनाया जाता है , लेकिन "जयंती"  शब्द विराट है ,वृहद है और यह मात्र दिव्य पुरुषों का ही मनाया जाता है। 

 श्रीहनुमानजीके जन्मके विषयमें कल्पभेद का प्रभाव -

1.चैत्र शुक्ला पूर्णिमा मंगलवार के दिन में 

चैत्रे मासि सितेपक्षे पौर्णिमास्यां कुजेऽहनि।

2. कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी

 भौमवार स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में  महानिशा में  अंजना देवीने हनुमानजीको जन्म दिया था।

ऊर्जस्य चासिते पक्षे स्वात्यां भौमे कपीश्वरः।

मेषलग्नेऽञ्जनीगर्भाच्छिवः प्रादुर्भूत् स्वयम् ॥  

                                                                           (उत्सवसिन्धु) 

कार्तिकस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि।

                      भौमवारेऽञ्जना    देवी     हनुमंतमजीजनत्॥                                                                                              ( वायुपुराण )

3. कल्पभेदसे कुछ विद्वान इनका प्राक़ट्य काल चैत्र शुक्ल एकादशीके दिन मघा नक्षत्रमें मानते हैं।

चैत्रे मासि सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे।

 नक्षत्रे  समुत्पन्नो        हनुमान् रिपुसूदनः॥

(आनंदरामायण,सारका० 13.162)

  श्रीहनुमानजीके प्राकट्यको लेकरके और भी कई विकल्प शास्त्रोंमें उपलब्ध होते हैं। हनुमानजीका जन्म मूँजकी मेखलासे युक्त,कौपीनसे संयुक्त और यज्ञोपवीत से विभूषित ही हुआ था ।और ये सब शृंगार सदा हनुमान जी के साथ ही रहता है।

चैत्रे मासि सिते पक्षे पौर्णमास्यां कुजेऽहनि।

मौञ्जीमेखलया युक्तः कौपीनपरिधारकः।।

अतः कल्पभेद भिन्नता के कारण ऐसा होता है।

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